
तीसरी दुनिया के देशों में भूख और कुपोषण सर्वाधिक चर्चा में रहते हैं, लेकिन कथित आधुनिक जीवन-शैली के चलते जरूरत से ज्यादा भोजन भी आजकल संकट पैदा करने लगा है। क्या होते हैं, इसके नतीजे? बता रही हैं, डॉ. नमिता शर्मा।
मोटापा, स्थूलता, ओबेसिटी यानि शरीर में जरूरत से ज्यादा फैट, चर्बी या वसा जमा हो जाना। कम लोग जानते हैं कि मोटापा अब एक रोग में शामिल हो गया है। केन्द्र, राज्य सरकारों और स्वास्थ्य प्रणाली के लिये मोटापा बड़ा गम्भीर विषय बन गया है। ये रोग हर उम्र में तेज़ी से पनप रहा है। बहुत से मंत्रालयों ने एकजुट होकर मोटापे से जूझने के अभियान और योजनाएं शुरू कर दी हैं, जैसे – ‘फिट इंडिया,’ ‘ईट इंडिया,’ ‘खेलो इंडिया’ और पोषण आहार के विभिन्न कार्यक्रम। इन कार्यक्रमों का क्रियान्वयन अच्छे ढंग से हो तो आने वाले दिनों में कुछ सुधार संभव है, किन्तु फिलहाल तो मोटापे के आंकड़े कुछ और ही कहते हैं।
निरंतर मोटा होता देश
अपने देश में मोटापे के आंकड़े चौंका देने वाले हैं। सन् 2005 से 2015 तक मोटापे की दर दुगनी हो गयी थी। उसके बाद इन आंकड़ों में तेज़ी से इजाफा हुआ। आज देश के 40.3 प्रतिशत लोग मोटापे से ग्रस्त हैं। जापान में यह दर केवल 4.5% है और अमेरिका में 41.9 प्रतिशत। एक अध्ययन के मुताबिक भारत में हर पांचवां व्यक्ति मोटापा-ग्रस्त है। बच्चे, जवान, अधेड़, बूढ़े और सभी वर्ग, लिंग के लोग मोटापे की चपेट में आ रहे हैं। एक जमाने में मोटापा केवल समृद्ध लोगों की बीमारी माना जाता था, किन्तु अब यह निम्न-आय वर्ग के लोगों में भी देखने को मिल रहा है। इसी तरह पहले यह केवल शहरों की समस्या थी, किन्तु अब गाँवों में भी बड़ी संख्या में लोग मोटापे से ग्रसित हैं। आंकडे बताते हैं कि पुरुषों की अपेक्षा महिलायें मोटापे की शिकार ज़्यादा हो रही हैं।
मोटापा एक बीमारी है
स्वास्थ्य के लिये शरीर का ज्यादा वज़नी होना बहुत नुकसानदेह होता है। मोटापे से बहुत सारी बीमारियों की सम्भावना बढ़ जाती है, जैसे – डायबिटीज, बल्डप्रेशर, दिल और दिल से जुड़े दूसरे रोग, फैटी-लिवर, जोड़ों में दर्द, बांझपन, अल्जाइमर और कैंसर के कुछ प्रकार। पहले ये सब बीमारियां बड़ी उम्र के लोगों को होती थीं। अब मोटापे के कारण 35/40 वर्ष की उम्र में ये रोग होने लगे हैं। हर वर्ष 100 में से 63 लोगों की मृत्यु का कारण ये बीमारियां हैं। छोटे बच्चों में भी मोटापा तेज़ी से बढ़ रहा है। ये संक्रामक रोग न होकर भी उसी तरह पसर रहा है। मोटापे से होने वाले कुछ रोग असाध्य हैं। इससे जुड़े कुछ रोगों के लिये जीवनभर दवाएं खानी पड़ती हैं, परहेज़ करना पड़ता है।
सिर्फ खान-पान से ही नहीं बढ़ता मोटापा
मोटापे से राहत पाने के लिये इसके होने के कारण जानना बहुत ज़रूरी है। मोटापा सिर्फ खान-पान से नहीं बढ़ता। कुछ ऐसी बीमारियां हैं जिनमें वज़न बढ़ता है, जैसे – ‘थायराइड,’ ‘क्रशिंग सिन्ड्रोम’ (मांसपेशियों का एक रोग), ‘आर्थराइटिस,’ ‘पीसीओडी’ (एक हार्मोनल विकार जो महिलाओं के प्रजनन अंगों को प्रभावित करता है)। इसके अलावा कुछ दवाएं हैं जो वज़न बढ़ा सकती हैं। ‘स्टेराइड,’ ‘डायबिटीज’ और ‘ब्लडप्रेशर’ की कुछ दवाओं से वजन बढ़ सकता है, लेकिन इन दवाओं का मोटापे के आंकड़े बढ़ाने में कोई बड़ा योगदान नहीं है।
इस सबके अतिरिक्त एक बड़ा कारण है, जीवन शैली। यह सिर्फ बड़े शहरों तक सीमित नहीं है। छोटे शहर, गांव और दूर-दराज के क्षेत्र सब इसके शिकार होते जा रहे हैं। बाजारवाद, प्रचार और ऑनलाइन ने हर तरह के नुकसानदेह खाद्य पदार्थों को सहज सुलभ करवा दिया है। शरीर को सुचारू रूप से चलाने के लिये कुछ विटामिन और मिनरल युक्त भोजन ज़रूरी होता है। हर दिन, व्यक्ति के काम के हिसाब से शरीर को 1500 से 2000 कैलोरीज़ की ज़रूरत होती है। कम काम और ज्यादा खाने से अतिरिक्त कैलरीज़ फैट में बदलकर शरीर में जमा होने लगती हैं और इसी से व्यक्ति मोटा होने लगता है।
मोटापे में सहयोगी जीवन-शैली
फास्ट फूड, डिब्बा-बंद खाना या प्रासेस्ड-फूड खूब प्रचलन में हैं, कैलरी से भरे होते हैं और पौष्टिकता से खाली। सभी जानते हैं कि सॉफ्ट-ड्रिंक चीनी और नुकसानदायक कैमिकल्स के कारण बहुत ख़तरनाक होते हैं, किन्तु फिर भी इनकी खूब पब्लिसिटी और उससे भी ज़्यादा बिक्री है। शहरी नौजवान बर्गर या पिज़्ज़ा के साथ कोल्डड्रिंक पीना शान समझते हैं। शहरों में बच्चों को बाजार के खाने की लत लग गई है।
मोटे होते बच्चे
भारत में स्कूल जाने वाले बच्चों में मोटापे का प्रतिशत 10 से 20% के बीच है। 5 से 9 वर्ष के बच्चों का मोटापे का आंकड़ा बहुत अधिक है। राजधानी दिल्ली में बच्चों का मोटा होने का प्रतिशत देश में सबसे ज्यादा है। इस बीच थोड़ी जागरूकता देखने मिली है। बहुत से स्कूल के बच्चों ने अनाप-शनाप खाने की आदत बदलने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने अपने स्कूल की कैंटीन में बनने वाली खाद्य सामग्री पर निगाह रखना शुरू किया है और खाने की सूची में पौष्टिक खाद्य पदार्थ शामिल करवाये हैं।
नींद की कमी से मोटापा
नींद की कमी भी मोटापे का एक कारण है। कम नींद से रक्त में ‘लैप्टिन’ हार्मोन कम हो जाता है जिससे शरीर की ऊर्जा की खपत कम हो जाती है। नतीजे में फैट जमा होने लगता है और वज़न बढ़ना शुरु हो जाता है। लगातार टीवी, मोबाइल, लेपटॉप याने ‘ब्लू स्क्रीन’ से शारीरिक गतिविधि का कम होना भी मोटापे का बड़ा कारण है। ‘ब्लू स्क्रीन’ से ‘मैलाटोनिन’ हार्मोन कम हो जाता है और उसके कारण नींद कम हो जाती है। कम नींद के कारण ‘ग्रेलिन’ हार्मोन ज्यादा होकर भूख बढ़ाता है। इससे खासकर मीठा और तला खाने की इच्छा बढ़ती है।
मानसिक तनाव से मोटापा
इसी तरह मानसिक तनाव से भी मोटापा बढ़ता है। कई लोग जब मानसिक तनाव में होते हैं तो उन्हें खूब भूख लगती है। मानसिक तनाव से शरीर में ‘कार्टीसाल’ हार्मोन बढ़ जाता है। इससे पेट के आसपास चर्बी जमा हो जाती है। ये फैट इंसुलिन हार्मोन के असर को कम करके डायबिटीज होने की सम्भावना बढ़ा देता है। कई बार परिवार के एक से ज्यादा सदस्य मोटे होते हैं। ये अनुवांशिक होने के साथ-साथ एक जैसी जीवन-शैली के कारण भी होता है।
कैसे करें, मोटापे पर काबू
जब तक मोटे व्यक्ति को खुद यह एहसास नहीं होगा कि उसका भविष्य खतरे में है, दूसरा कोई कुछ नहीं कर सकता। बढ़ता वज़न रोकना बहुत ज़रूरी है। भविष्य में मोटापे से जीवन कितना कठिन हो सकता है इसका एहसास खुद करना पड़ेगा। अपना खान-पान बदलना होगा। भोजन में ज्यादा प्रोटीन, फाइबर युक्त पदार्थों का समावेश करें। याने ज्यादा फल, दूध, दही, सब्जियां,अंडा, मछली और अलग-अलग तरह की दालों का उपयोग करें। चावल, रोटी, मीठा और तली चीज़ें कम खायें। रोटी और चावल हमारे मुख्य खाद्य पदार्थ अवश्य हैं, किन्तु आधुनिक जीवन शैली में जब हमारा शारीरिक श्रम बहुत कम हो गया है, हमें रोटी-चावल की मात्रा घटाकर सब्जियों और फलों की मात्रा बढ़ानी होगी। ये काम सिर्फ और सिर्फ अपनी इच्छा शक्ति से ही किया जा सकता है। (साभार: सप्रेस)