आधुनिक खेती में किसानों के सलाहकार हैं अजीत
आधुनिक खेती में किसानों के सलाहकार हैं अजीत
प्रस्तुति: मोईनुद्दीन चिश्ती
लेखक देश के जाने माने युवा कृषि, पर्यावरण पत्रकार एवं कृषि परिवर्तन के विशेष संवाददाता हैं
देशभर में नवाचारी किसानों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। साथ ही ऐसे किसानों की तादाद में भी इज़ाफा हुआ है जो अपने आस-पास के किसान साथियों की समस्याओं का समाधान दिल से करते हैं। जयपुर के एक ऐसे ही प्रगतिशील किसान हैं अजीत सिंह पूनिया।
आधुनिक खेती में अपने प्रायोगिक अनुभवों से बेहतर परिणाम देने वाले अजीत की सेवाएँ लेने के लिए हर समय किसान साथी इंतज़ार करते हैं और अजीत भी उन्हें हितकारी सलाह देने हेतु हर समय तत्पर रहते हैं। श्री शुभराम पूनिया जी के घर बनगोठड़ी खुर्द पिलानी में जन्मे अजीत को खेती-बाड़ी विरासत में मिली। बीए करने के बाद वे चंडीगढ़ चले गए। वहाँ उन्होंने एडवांस एग्रीकल्चर को देखा, समझा और सीखा। आधुनिक युग की खेती के पीछे की कमियों को दूर कैसे किया जाए, इस पर भी ज्ञान प्राप्त किया।
अजीत बताते हैं, ”धीरे-धीरे गहराई में जाकर यह जाना कि एडवांस तकनीक की खेती-बाड़ी में भी विज्ञान का सही इस्तेमाल नहीं होने के कारण अधिकतम किसान लाभ की बजाय हानि की ओर चले जाते हैं। पानी का इस्तेमाल ढंग से न किया जाए तो फसलों में फंगस की समस्या आ जाती है या कम पानी से आद्र्रता कम होती जाएगी, परिणामस्वरूप फसलों में नुकसान हो जाता है। किसानों को वॉटर मैनेजमेंट, एटमॉस्फियर तथा एनवायरनमेंट कंट्रोल संबंधी कई समस्याओं से जूझना पड़ता है।” अजीत का कहना है कि फसल की ज़रूरत के मुताबिक एटमॉस्फियर को नियंत्रित करने के लिए उन्होंने एक छोटा-सा स्वचालित डिवाइस भी बनाया है, जो दिनभर फसल के एटमॉस्फियर को नियंत्रित किए रहता है।
जलसंकट में करें संतुलित उपयोग…
इरिगेशन के बारे में बात करने पर उन्होंने बताया कि दिनोंदिन पानी का संकट गहराता जा रहा है। पानी की एक-एक बूंद के संतुलित सदुपयोग से ही हम भविष्य की परेशानियों से बच सकते हैं। सभी जानते हैं कि खेती-बाड़ी का आधार ही पानी है, खेती पानी पर ही टिकी हुई है। इरिगेशन में शेड्यूल की बड़ी भूमिका है। फसल को जब पानी की ज़रूरत हो तभी पानी देने में भलाई है, बिना ज़रूरत के पानी देने में कोई फायदा नहीं।
फसल को ऊपरी तौर पर 5 से 6 एमएम मॉइस्चर की ज़रूरत होती है। यदि हम एक दिन निर्धारित कर लें कि इतने दिन बाद इतना पानी देना है तो हम सिर्फ नॉर्मल मॉइस्चर से ही कम पानी में ज़्यादा सिंचाई कर सकते हैं। इन दिनों एक एडवांस टेक्नोलॉजी आई है जिसे ‘सब सॉइल इरिगेशन’ कहा जाता है। इस विधा में फसल को ज़मीन के एक फुट नीचे पानी दिया जाता है। इस विधि से 90 प्रतिशत पानी की बचत होती है। इसलिए इस विधि के सहारे कम पानी से ज़्यादा जगह में सिंचाई की जा सकती है। मार्केट में जो नॉर्मल इरिगेशन सिस्टम उपलब्ध हैं, यह उनसे 25 से 30 प्रतिशत महंगा है।
पॉलीहाउस है मुनाफे की दुकान…
पुनिया ने बताया कि पॉलीहाउस एक ऐसी संरचना है जिससे हम बेमौसम और छोटे रकबे में कोई भी फसल लेकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। पर इसमें एटमॉस्फियर को नियंत्रित करना समस्या रहती है। इसमें नॉर्मल ड्रिप लाइन से पानी प्रबंधन किया जा सकता है। परंपरागत खेती में एक एकड़ में 20 से 25 हज़ार की उपज ली जाती है जबकि पॉलीहाउस में सालाना 5 से 25 लाख का उत्पादन लिया जा सकता है। सब्ज़ी, फल और फूल के उत्पादन की दृष्टि से पॉलीहाउस सही साबित होता है और किसान को मुनाफा पहुँचाने के लिहाज से भी विश्वसनीय है।
पॉलीहाउस में लगने वाली शीट की लाइफ 3 से 5 साल होती है, जबकि स्ट्रक्चर की लाइफ 10 से 15 साल होती है। यह सब शुरू में भले महंगा पड़े पर 2 से 3 साल में सारे खर्च निकालकर आपको फायदे में कर ही देता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि एटमॉस्फियर और पेस्ट कंट्रोल के साथ-साथ पानी की भी बचत होती है। मैंने अब तक 50 से अधिक किसानों को पॉलीहाउस लगवाए हैं और वे मुनाफे की खेती कर रहे हैं।
कैसे करें वॉटर मैनेजमेंट…
यह बात हम सभी जानते हैं कि पानी की दिनोंदिन कमी होती जा रही है और भूमि में लवणीयता बढ़ती जा रही है। इतना ही नहीं, पीएच और ईसी भी हाई होते जा रहे हैं। आधुनिक खेती में इसका भी तोड़ निकाला जा चुका है। बिना केमिकल, बिना खाद और बिना बिजली के भी पानी को फसल के योग्य बनाया जा सकता है। खारे पानी में भी फसलें ली जा सकती हैं।
अब तो एक डिवाइस भी उपलब्ध है जिसमें रेडॉक्स टेक्नोलॉजी है, जो नासा द्वारा विकसित है। इसकी कीमत 30 हज़ार से शुरू होती है।
अब अगर हम जल संरक्षण की बात करें तो इसकी बचत के लिए हमें ड्रिप-सब सॉइल में ही जाना होगा। हाइड्रोजेल भी आता है, इसे भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके प्रयोग का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि जहाँ पानी हर 5वें दिन दिया जाता है, वहाँ 20 से 25वें दिन दिया जा सकता है।
किसानों के लाभ का समीकरण…
अजीत की सलाह है कि किसान भाइयों को एग्रोफॉरेस्ट्री मॉडल विकसित करना चाहिए। इंटरक्रॉपिंग को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि एक फसल के साथ ही दूसरी फसल के तैयार होने से भी मुनाफा हो। मेडिसिनल प्लांट्स में किसानों को रुचि लेनी होगी क्योंकि दिनोंदिन आयुर्वेद की मांग बढ़ रही है और ऐसे में जड़ी-बूटियों की खेती करने वाले किसान लाखों में खेल सकते हैं। इस संदर्भ में ‘कृषि परिवर्तनÓ के गत अंक में छपी राकेश चौधरी की सफलता की कहानी किसानों के लिए मार्गदर्शक साबित हो सकती है।
मान-सम्मान...
अजीत जी को इसी वर्ष नागौर में ‘कर्णधार सम्मान’ दिया गया तो 20 मई को करनाल में ‘एन्टी करप्शन फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ द्वारा ‘राष्ट्र गौरव सम्मान’ भी भेंट किया गया।
संपर्क कर सकते है:
ए-238, सेकंड फ्लोर, डॉ. राजेंद्र प्रसाद नगर,
गौतम मार्ग, अजमेर रोड, जयपुर (राजस्थान)
मोबाइल: 09414062944