
हाल ही में एक और युवा का निधन लीवर की गंभीर बीमारी के कारण हुआ। आपको बताते चले कि इससे पहले भी इसी गांव के दो और युवा हार्ट अटैक के कारण इस दुनिया को छोड़कर जा चुके हैं । यह कोई नई घटना नहीं है, क्योंकि अब तो हर रोज़ ही किसी न किसी युवा की अचानक हार्ट अटैक, कैंसर, लीवर की समस्या या अन्य बीमारियों के कारण मौत की खबरें आम हो चुकी हैं। सिर्फ युवा ही नहीं, बल्कि किसी भी उम्र के व्यक्ति के लिए अब ये मौतें सामान्य होती जा रही हैं।
भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में इस वर्ष 11% की वृद्धि देखी गई है, और इसके कई कारण हो सकते हैं। हालाँकि जहाँ एक ओर किसानों की संख्या साल दर साल घटती जा रही है, वहीं दूसरी ओर प्राइवेट अस्पतालों की संख्या बढ़ती जा रही है। छोटे कस्बों तक सर्वसुविधायुक्त अस्पतालों की ब्रांचें खुल रही हैं। एक कृषि प्रधान देश में जहाँ खेती करने वालों की संख्या में बढ़ोतरी होनी चाहिए, वहाँ अस्पतालों की संख्या का बढ़ना यह साफ संकेत देता है कि हमारा देश स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहा है। अब सवाल उठता है, क्या रासायनिक खेती इसके लिए ज़िम्मेदार हो सकती है?
वहीं, हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी मार्च में कई राज्यों में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के कारण किसानों को भारी नुकसान हुआ है। यदि पिछले 10 वर्षों के आँकड़े देखें, तो मार्च में किसानों को लगातार इस प्रकार के नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण धरती का तापमान तेजी से बढ़ रहा है और मौसम का संतुलन बिगड़ रहा है। जहाँ वर्षा होनी चाहिए, वहाँ सूखा पड़ रहा है और जहाँ गर्मी होनी चाहिए, वहाँ मूसलधार बारिश हो रही है। यह परिवर्तन प्राकृतिक-चक्र के बिगड़ने का परिणाम है, जो हमें साफ संकेत देता है कि हमारे पर्यावरण को लेकर हमारी लापरवाही अब एक गंभीर समस्या बन चुकी है।
हर व्यक्ति यह जानता है कि हमारा पर्यावरण प्रदूषित हो चुका है और जो भोजन हम खा रहे हैं, वह भी मिलावटी और रासायनिक पदार्थों से युक्त है। बढ़ती बीमारियाँ और बिगड़ते पर्यावरण के मुख्य कारणों में बेतरतीब उद्योगों का निर्माण, कृषि योग्य ज़मीन पर कॉलोनियों और फैक्ट्रियों का निर्माण, बड़े-बड़े बाँधों का निर्माण, और जंगलों तथा पहाड़ों का उत्खनन है। इन सभी कारणों के साथ-साथ रासायनिक खेती भी पर्यावरण और स्वास्थ्य पर भारी असर डाल रही है।
क्या आपने कभी सोचा है कि आपकी इतनी भागदौड़ से आपको क्या हासिल हो रहा है? हम आज टेक्नोलॉजी के चरम युग में जी रहे हैं, लेकिन हमारे पास न तो शुद्ध और पौष्टिक भोजन है और न ही शुद्ध पर्यावरण। फिर चाहे आप एक सफल उद्योगपति हों या आईटी प्रोफेशनल, डॉक्टर, इंजीनियर, नेता, क्रिकेटर, अभिनेता, किसान या फिर देश के गरीब या मिडिल क्लास नागरिक हों। क्या आपके पास शुद्ध भोजन और शुद्ध पर्यावरण की व्यवस्था है? इसका जवाब शायद हर किसी के लिए “न” ही होगा।
इसका सबसे बड़ा कारण है हमारा खेती और पर्यावरण के प्रति सुस्त रवैया। हम प्रकृति और किसानों को समझते हैं कि ये तो हमेशा हमारे लिए उपलब्ध रहते हैं, फिर चाहे हम इनके साथ कितना ही क्रूर व्यवहार करें। लेकिन इस रुख को ज़्यादा समय तक सहन नहीं किया जा सकता। और इसलिए प्रकृति ने तो अपना रौद्र रूप दिखाना शुरू कर दिया है। दूसरी ओर किसान भी सोचने लगे हैं कि जब देश की जनता हमारी चिंता नहीं करती तो हम क्यों शुद्ध और रसायन-मुक्त भोजन उगाने के लिए मेहनत करें।
भारत सरकार और राज्य सरकारें जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास कर रही हैं, लेकिन ये प्रयास धरातल पर ठोस परिणाम नहीं दे पा रहे हैं। रासायनिक खादों की खपत और कीटनाशक विक्रेता बढ़ रहे हैं, जो यह दर्शाता है कि रासायनिक खेती को छोड़ना कितना मुश्किल हो गया है। सरकार को किसानों को प्राकृतिक खेती की ओर प्रेरित करने के लिए ठोस और दूरदर्शी योजनाएँ बनाने की ज़रूरत है, साथ ही एक सफल पायलट प्रोजेक्ट को लागू करने की आवश्यकता है।
किसान भी अब समझ रहे हैं कि रासायनिक खेती से उनकी ज़मीन तो खराब हो ही रही है, साथ ही मौसम में हो रहे बदलावों के कारण उनकी फसलों के उत्पादन पर भी असर पड़ रहा है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि रासायनिक खेती से अब उनके घरों में भी बीमारियाँ प्रवेश कर चुकी हैं। भले ही उन्होंने रासायनिक खेती से बड़े आलीशान घर बना लिए हों, लेकिन वे वही अनाज खाकर बीमार हो रहे हैं। अब किसी किसान की पत्नी कैंसर से पीड़ित है, तो किसी किसान के बच्चे कुपोषित पैदा हो रहे हैं, और किसान खुद भी कई बीमारियों से ग्रस्त है।
रासायनिक खेती ने भले ही हमें कुछ सुविधाएँ दी हों, लेकिन यह हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए खतरे का कारण बन रही है। हमारे परिवार और पर्यावरण के बिना जीना कितना मुश्किल है, यह हमें अब समझना होगा। पर्यावरण को सुधारने के लिए प्राकृतिक खेती को अपनाना बेहद ज़रूरी है, अन्यथा रासायनिक खेती के दुष्प्रभाव अब हर घर तक पहुँच चुके हैं।
इसलिए देर न करें, प्राकृतिक खेती की शुरुआत करें। साथ ही पर्यावरण की रक्षा के लिए आवाज़ उठाएँ। यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम अपने परिवार के लिए शुद्ध भोजन और शुद्ध पर्यावरण की व्यवस्था करें। यह ज़िम्मेदारी सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि हर नागरिक की है। और हमें इसे पूरा करने के लिए प्रकृति और जैविक खेती पर ध्यान देना होगा। यही वक्त की माँग है।
पवन नागर, संपादक