औषधीय खेती में सफलता की इबारत बनकर उभरे हैं 65 वर्षीय राम सांवले
सफलता की यह कहानी है उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिले की है, जहाँ के किसान मेंथा और केले की खेती में नाम कमा चुके हैं। इस जगह को इनकी खेती के गढ़ का दर्जा दिलवा चुके हैं। अब यही किसान औषधीय, यानि जड़ी-बूटियों की खेती में मुनाफा कमाकर भी इतिहास रचने में जुटे हुए हैं।
ये वो किसान हैं, जिन्होंने पारंपरिक खेती को लीक से हटकर करते हुए अपने खेतों में नए प्रयोगों की बहार ला दी। फलस्वरूप आमदनी के समीकरण बदल गए हैं और अब मुनाफे की बयार बहने लगी है।
इसी फेहरिस्त में सूरतगंज ब्लॉक के टांड़पुर (तुरकौली) गाँव के 65 वर्षीय किसान राम सांवले शुक्ला द्वारा किए जा रहे नवाचारों को इस क्षेत्र के दूसरे किसानों ने अब अपनाना शुरू कर दिया है। वैसे शुक्ला जी ज़्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं, लेकिन खेती में इनके नवाचार अब कामयाबी हासिल कर रहे हैं।
इन दिनों राम सांवले अपने खेतों में पीली सतावरी, सहजन, अदरक और कौंच की खेती कर रहे हैं। इन फसलों की उपज को बेचने के लिए उन्होंने दिल्ली और मध्यप्रदेश की कई औषधीय कंपनियों से करार भी किया है। वे अब किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए शुरू किए गए ‘एरोमा मिशन’ से भी जुड़ गए हैं।
बातचीत के दौरान प्रगतिशील किसान राम सांवले बताते हैं, ”धान और गेंहूँ की खेती में जितने पैसे लगाओ, उतने ही मिलते थे, इसलिए कुछ साल पहले ‘वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद’ (सीमैप) के माध्यम से औषधीय पौधों की खेती शुरू की। सबसे पहले मलेरिया की दवा आर्टीमीशिया के लिए मध्यप्रदेश की एक फार्मेसी कंपनी से करार किया। अब नोएडा की एक बड़ी दवा कंपनी से करार किया है और सहजन व कौंच की खेती भी कर रहा हूँ। इसमें एक बार लागत थोड़ी ज़्यादा लगती है, लेकिन फसल तैयार होने पर उपज बेचने का झंझट खत्म हो जाता है और हमारी मेहनत व खून-पसीने की कमाई का खरा पैसा सीधे हमारे खाते में आ जाता है।”
राम सांवले के मुताबिक, ”4-5 साल पहले जब मैंने पहली बार एक एकड़ में पीली सतावरी की फसल लगाई थी, तब आसपास के किसान भाइयों ने कहा, ‘पंडित जी, क्या झाडि़य़ाँ उगा रहे हो? ‘ कई लोगों को लगा कि अब मेरी बर्बादी के दिन नज़दीक आ गए हैं। मज़े की बात यह रही कि जब फसल कटी तो करीब चार लाख रुपए मिले। पिछले अनुभवों को देखते हुए बाकी फसलों के मुकाबले यह रकम कई गुना बड़ी थी। तब मेरा मज़ाक उड़ाने वाले सैकड़ों लोगों को मैंने सतावरी की प्रोसेसिंग में रोज़गार भी दिया।
हमारे खेत में मुनाफे के बढ़ते आँकड़ों को देखकर 2 साल पहले दूसरे किसानों ने भी इसकी खेती शुरू कर दी है। मुझे मुनाफा कमाता देख लखनऊ में प्राइवेट नौकरी करने वाले मेरे एक बेटे ने भी खेती करनी शुरू की है। अब वह नौकरी से ज़्यादा पैसा खेती में कमा रहा है। मैं खुश हूँ क्योंकि फिर से युवा जड़ें गाँवों में लौटने लगी हैं।
दूसरे किसानों को सतावरी की नर्सरी के लिए भागदौड़ न करनी पड़े, इसलिए मैंने इस बार अपने खेत में ही नर्सरी तैयार कर ली है, जिसे खरीदने के लिए मध्यप्रदेश से लेकर झारखंड के धनबाद तक से किसानों के फोन कॉल्स आ रहे हैं। इस बार मैंने 3 एकड़ से भी ज़्यादा क्षेत्र में सहजन (मोरिंगा) लगाया है।”
राम सांवले जी के अनुसार, वे आसपास के तमाम गाँवों में सहजन की खेती करने वाले पहले नवाचारी किसान बन गए हैं। एक बार बोने पर 4-5 साल तक लाभ देने वाली इस फसल को लेकर वे काफी उत्साहित नज़र आ रहे हैं।
खेती की लागत में कमी लाने के लिए अब वे घर पर ही केंचुआ खाद बनाने लग गए हैं। खेतों में फसल अवशेष जलाने न पड़ें इसलिए वे वेस्ट डीकंपोज़र के ज़रिए खाद बनाते हैं। वेस्ट डीकंपोज़र की खोज गाजियाबाद स्थित जैविक कृषि केंद्र ने की थी, उन्होंने उसे वहीं से मँगाया है। इसकी 20 रुपए की एक शीशी से कई ड्रम जैविक तरल खाद बनती है, जिससे वो फसल में पानी का छिड़काव करते हैं।
खेती से कमाई का अपना सूत्र बताते हुए वे कहते हैं कि किसान का ज़्यादातर पैसा खाद-बीज और कीटनाशकों आदि में लगता है, इसलिए किसानों को चाहिए कि ऐसी खेती करें जिसमें लेबर कम लगे, डीएपी यूरिया का पैसा बचे। घर पर केंचुआ खाद बनाएँ, फसलों के अवशेष की कंपोस्ट खाद बनाएँ और अपने खेतों के एक हिस्से में ऐसी खेती ज़रूर करें जिसमें एक बार बुआई या रोपाई करने पर कई साल तक मुनाफा हो। सजहन एक ऐसी ही फसल है।
अपने खेतों में कुछ न कुछ नया करने की कोशिश करने वाले राम सांवले कहते हैं कि सीमैप जैसी संस्थाओं में जाने-आने पर ज्ञान मिलता है। मोबाइल पर भी कई वीडियो देखकर वे खेती की कई आधुनिक विधियाँ सीखते हैं। उनकी इन्हीं उपलब्धियों के चलते उन्हें किसानों के बीच नवाचार पसन्द किसान के तौर पर सम्मानित भी किया जा चुका है।
फसलें-पीली सतावरी, सहजन, आर्टीमीशिया एनुआ, कौंच और अदरक।
पीली सतावरी में एक एकड़ में लागत करीब 70 से 80 हज़ार रुपये आती है। मुनाफा 4 से 5 लाख रुपये (रेट पर निर्भर करता है) होता है। 30 से 70 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक का भाव रहा था पिछले दिनों। एक एकड़ में 15 से 20 क्विंटल उपज होती है।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क कर सकते हैं-
ग्राम टांड़पुर (तुरकौली), पोस्ट-दौलतपुर, ब्लॉक-सूरतगंज, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर- 097933 71782
(नरेंद्र शुक्ला)
अभिनव उदाहरण
किसान राम सांवले जी का कदम हम सब किसानों के लिए प्रेरणादायी है। आज जब एक वर्ग खेती-किसानी को घाटे का सौदा बताकर दूर भाग रहा है, वहीं राम सांवले जी जैसे मेहनतकश किसान साथी खेती को खेत से जोड़कर उसे लाभदायक सिद्ध करते हुए गाँव से शहर की ओर जाकर रोज़गार के लिए पलायन करते युवाओं के लिए एक अभिनव उदाहरण बन गए हैं। इनको अपने छोटे रकबे से ही लाखों की आय प्राप्त हो रही है, जो उच्च शिक्षित व बड़े ओहदेदार भी आसानी से कमा नहीं पाते। सच यह भी है कि खेती-किसानी में विविधता के बिना कमाई मुश्किल है क्योंकि सिंगल क्रॉपिंग तो हमें पहले ही बर्बाद कर चुकी है।
राम सांवले जी सिंगल क्रॉपिंग की जगह विविधता वाली कृषि पर ज़ोर दे रहे हैं, जिसमें अनाज, तेल, दाल की फसलों के संग फूल-फल-सब्ज़ी तो लेते ही हैं, साथ ही औषधीय फसलों को भी प्रमुखता के साथ उगा रहे हैं, जो सफल खेती का एक नायाब उदाहरण है। इस पद्धति से देश की कृषि आय में बढ़ोतरी होगी।
मैं लेखक और संपादक के प्रति आभारी हूँ, जो इस तरह के बिरले कृषकों से सभी युवाओं को प्रेरित करने का प्रयास करते हैं।
-पवन कुमार टाक, असिस्टेंट प्रोफेसर
देश के टॉप 51 किसान वैज्ञानिकों में शुमार, जैविक कृषि के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त किसान-गुरु