साक्षात्कार

कलौंजी, लहसुन, धनिया, प्याज, मिर्च, व टमाटर की खेती करने वाले नयी पीढ़ी के पढ़े-लिखे किसान विनोद नागर

विनोद नागर (धाकड़) एक पढ़े-लिखे किसान हैं और मूल रूप से मध्यप्रदेश के रायसेन जिले की गोहरगंज तहसील के गेहूँखेड़ा गाँव के रहने वाले हैं। आधुनिक शिक्षा के महत्व को देखते हुए वर्तमान में वे अपने बच्चों पढ़ाई की खातिर भोपाल में निवास कर रहे हैं। खेती के लिए हर दिन सुबह अपने पैतृक गाँव गेहूँखेड़ा आते हैं और शाम को फिर वापस भोपाल चले जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो वे अपने परिवार व खेती में सामंजस्य बनाए रखने के लिए रोज़ भोपाल से गेहूँखेड़ा अप-डाउन करते हैं। यह सिलसिला पिछले दो साल से चल रहा है। इससे पहले वह औबेदुल्लागंज में रहकर गेहूँखेड़ा अप-डाउन करते थे। बीएससी, एम.ए. (अंग्रेज़ी) व पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन मार्केटिंग मैनेजमेंट (पीजीडीएमएम); यानि दो-दो मास्टर डिग्री ग्रहण कर चुके विनोद नागर आज खेती के मामले में क्षेत्र के कई किसानों से काफी आगे हैं। इतनी शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी इन्होंने कभी नौकरी के बारे में विचार नहीं किया। इनका शुरू से ही खेती में कुछ नया करने का विचार था, इसलिए इन्होंने अपने व्यवसाय के साथ-साथ खेती को भी पूरा समय दिया। परंतु शुरुआत में इन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। ये बताते हैं कि जब इन्होंने अण्डर ग्राउण्ड पानी की सप्लाई लाईन का निर्माण किया था तो इनके पिता के साथ ही गाँव के बहुत से किसानों ने भी इनके इस कार्य को बहुत ही खर्चीला और अनुपयोगी बताया था। परंतु उसी साल कम बारिश की वजह से गेहूँ की फसल बोने लायक भी पानी गाँव की नदी में नहीं था और ऐसा लग रहा था कि फसल की बुआई के लिए और आगे पानी की व्यवस्था जाने कैसे होगी। परंतु विनोद नागर तो इसकी व्यवस्था अपने ट्यूबवेल से अपने पूरे खेत में अण्डर ग्राउण्ड लाईन का निर्माण करके पहले ही कर चुके थे, जिसके कारण इनकी गेहूँ की पैदावार खासी अच्छी हुई, जबकि बहुत से किसान अपनी फसल बो ही नहीं पाए, उन्हें खेत खाली छोडऩा पड़े। इस घटना के बाद गाँव के बहुत से किसानों ने भी ऐसी लाईन की व्यवस्था कर ली। यह सब देखकर इनके पिताजी भी इनकी दूरदर्शी सोच को समझ गए और अब वे भी इनके किसी भी निर्णय का समर्थन करते हैं। विनोद नागर अब सब्जि़यों की खेती कर रहे हैं और इनके यहाँ कलौंजी (एक औषधीय पौधा), लहसुन, प्याज इत्यादि लगा हुआ है ।

कृषि परिवर्तन ने विनोद नागर जी से उनके जीवन व अनुभवों के बारे में जानना चाहा। इसी सिलसिले में उनसे हुई बातचीत के अंश यहाँ प्रस्तुत हैं:-

प्रश्न: आप कब से खेती कर रहे हैं? इससे पहले किन-किन व्यवसायों को अपना चुके हैं?
उत्तर: (याद करते हुए) मैं सन् 1995 से ही खेती कर रहा हूँ… तब से ही पिताजी को सहयोग करने लगा था। फिर धीरे-धीरे पढ़ाई आगे बढ़ती गई और खेती का काम भी चलता रहा। खेती के काम के साथ 1997 में खाद-बीज की दुकान औबेदुल्लागंज में खोली थी…। फिर 2011 में क्रेशर का कार्य भी चालू कर दिया। अभी सन् 2015 से औषधीय खेती की शुरुआत की है। व्यवसाय के साथ-साथ पूरा समय खेती में ही बीतता है।

प्रश्न: आपकी शैक्षणिक योग्यता क्या है?
उत्तर: मैंने बीएससी, एम.ए. (अंग्रेज़ी), व पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन मार्केटिंग मैनेजमेंट (पीजीडीएमएम) किया है।

प्रश्न: कितनी एकड़ भूमि में खेती कर रहे हैं और कौन-कौन सी फसल लगाई हैं?
उत्तर: 40 एकड़ में कर रहा हूँ। कुछ भूमि अतकरी से (बटाई से) भी लेता हूँ और कुछ मुनाफे से भी ले लेता हूँ। अभी 20 एकड़ में गेहूँ व चना लगा हुआ है और बाकी की 20 एकड़ में से 10 एकड़ में औषधीय फसल कलौंजी लगी हुई है, जबकि 5-5 एकड़ में प्याज व लहसुन लगाया हुआ है। 2 एकड़ खेत में 306 गेहूँ पूर्णत: प्राकृतिक तरीके से लगाया है। कुछ ज़मीन में धनिया भी लगाया जाता है।

प्रश्न: कलौंजी, लहसुन व प्याज की जो खेती आप कर रहे हैं इसमें अच्छा मुनाफा है क्या?
उत्तर: हाँ, परंपरागत फसल की अपेक्षा अधिक मुनाफा है। कलौंजी एक औषधीय फसल है जिसका 400 रुपये का बीज प्रति एकड़ के रकबे में लगता है और इसका उत्पादन 4 से 5 क्विंटल प्रति एकड़ होता है। यह 10000 से 20000 रुपये क्विंटल के रेट से बिकती है। बाकी मिर्च, लहसुन व प्याज में लागत तो ज़्यादा है परंतु उसी अनुपात में उत्पादन भी होता है, इसलिए यह भी फायदे का सौदा है। इन सबका बाज़ार नीमच मण्डी है और वहाँ आसानी से सारा माल बिक जाता है।

प्रश्न: आप अपनी ज़रूरत की सब्ज़ी क्या अपने खेत पर ही उगाते हैं? विस्तार से बताइए।
उत्तर: मेरे खलिहान के पीछे 0.5 एकड़ भूमि है, जहाँ सर्वेंट हाऊस बना है। इसी के कुछ हिस्से में सब्जि़याँ लगी हैं। गिलकी, टमाटर, मटर, लौकी, बल्लर (सेम), मूली, धनिया, बैंगन व डॉलर चना भी लगा है। यह सब बिना कीटनाशक के कुदरती तरीके से उत्पादित किया जाता है और सब्जि़यों के लिए मेरी बाज़ार पर निर्भरता कम ही है। यहीं पर पशुपालन भी होता है। हमारे पास एक भैंस और 2 गाय हैं जिनसे हमें दूध भी घर का मिलता है और हम घी, मठ्ठा इत्यादि के लिए भी बाज़ार नहीं जाते हैं।

प्रश्न: आगे आपकी क्या योजना है?
उत्तर: आगे मैं तुलसी की खेती करने वाला हूँ। यह भी एक औषधीय फसल है। और अदरक की खेती भी करना चाहता हूँ।
प्रश्न: अभी पिछले महीने सुभाष पालेकर जी की शून्य बजट खेती पर जो वर्कशॉप आपने अटैण्ड की, उससे आपको क्या सीखने को मिला और आपके जीवन में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर: पालेकर जी की बात सुनकर व समझकर यह निर्णय लिया कि खेती की लागत को जितना कम किया जाए और प्राकृतिक तरीके से मिश्रित खेती में फसल लगाई जाए तो बहुत फायदा है, और यह भी कि जो ज़मीन रासायनिक खादों व कीटनाशकों से बिगड़ गई है उसको सुधारना है। कुदरती खेती के बारे में बहुत सारा ज्ञान प्राप्त हुआ।

प्रश्न: क्या आप अपने बच्चों को भी खेती करने के लिए प्रेरित करेंगे?
उत्तर: मैं अपने बच्चों पर किसी भी कार्य के लिए किसी भी प्रकार का दबाव नहीं बनाता हूँ। अभी वे पढ़ाई कर रहे हैं, पढ़ाई पूरी करने के बाद यदि उनकी इच्छा हमारे पुश्तैनी कृषि कार्य को करने की हुई तो मेरा पूरा सहयोग और मार्गदर्शन रहेगा। वैसे मेरी इच्छा है कि मेरे बच्चे कृषि से संबंधित ज्ञान अर्जित करें और कृषि कार्य करें, क्योंकि कृषि ऐसा काम है जो आपको आत्म-संतुष्टि और पूरी आज़ादी देता है। समय की पूर्ण स्वतंत्रता रहती है, कोई बंधन नहीं होता और आप अपने बॉस खुद बने रहते हैं।

प्रश्न: आपके अनुभव से खेती का व्यवसाय कैसा है?
उत्तर: मेरा अनुभव कहता है कि यदि पूरी लगन व मेहनत से आधुनिक तरीकों को अपनाकर अलग तरह की खेती की जाए और फसलों का सही ज्ञान व सही फसल चक्रण को अपनाया जाए तो बेशक खेती एक लाभ का व्यवसाय है। पर इसमें पूरी ईमानदारी से समय देना होता है। और फसल के बाज़ार का भी ध्यान रखना होता है ताकि आपको फसल का सही दाम मिल सके।

प्रश्न: खेती का काम छोड़कर किसानों के बच्चे फैक्ट्रिओं में 7-8 हज़ार के लिए जा रहे हैं। क्या यह सही है?
उत्तर: बिलकुल गलत है। जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि सही तरीके से खेती की जाए तो किसी की भी नौकरी करने से अच्छा है खुद का मालिक बनें।

प्रश्न: युवा किसान भाइयों के लिए क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर: मेरा यह संदेश है कि जितना समय एक व्यवसायी अपने व्यवसाय को देता है और एक कर्मचारी अपनी नौकरी को देता है, यदि उस समय का एक चौथाई समय भी खेती को पूरी ईमानदारी से दिया जाए तो किसी की नौकरी करने की कोई ज़रूरत नहीं पड़ेगी। और खेती करते हुए आप परिवार व समाज को भी पूरा समय दे सकते हैं।

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