आधुनिकता के मकडज़ाल में उलझा इंसान
अभी एक शोध के द्वारा बताया गया है कि हिमालय में तीव्र गति का भूकंप आने वाला है। यह खबर रोंगटे खड़े कर देने वाली है, परंतु मीडिया से बहुत ही जल्द गायब हो गई है। शायद पर्यावरण की चिंता करने वाले लेखक, मीडियाकर्मी और समाजसेवी लोगों की चिंता इससे और बढ़ गई हो। और ये लोग कर भी क्या सकते हैं! इस बारे में और ज़्यादा लिखने के अलावा इन लोगों के पास और कोई हथियार नहीं है। पर इससे भी लोग कहाँ जागरूक हो पा रहे हैं।
आज तकनीक से लेस आधुनिक इंसान क्यों चिंता करेगा पर्यावरण की। उसे भला पर्यावरण के बारे में सोचकर क्या लाभ होगा। आज का इंसान तो बिना लाभ के कोई काम करता ही नहीं है। और करें भी क्यों। उसे सब तो आसानी से मिल रहा है। मसलन, जो इंसान की मूलभूत ज़रूरतें हैं, जैसे कि रोटी, कपड़ा और मकान; ये सभी चीज़ें आज बहुत ही आसानी से मिल रही हैं, बस आपके पास एक स्मार्ट फोन इंटरनेट के साथ और पैसा होना चाहिए। यदि आपके पास ये दोनों हैं तो फिर आप मंगल पर प्लॉट बुक कर सकते हैं और अमेरिका से कपड़े ऑर्डर कर होम डिलेवरी भी ले सकते हैं। और अब तो खाने की भी होम डिलेवरी शुरू हो चुकी है। बस आपको पैसा खर्च करना है, सबकुछ आपकी चौखट पर आ जाएगा। जब इतनी आसानी इंसान को हो गई हो तो वह क्यों पर्यावरण की चिंता करेगा। वह क्यों पेड़ लगाएगा। वह क्यों नदियों को बचाएगा। इसकी बजाए वह अपना समय पैसा कमाने में ही लगाएगा न भाई। और इंसान कर भी यही रहा है। वह दिन-रात पैसे कमाने की जुगत में लगा रहता है। इसलिए उसके आसपास चीज़ें कितनी तेज़ी से बदल रही हैं, उसे कुछ पता नहीं है। उसे यह भी नहीं पता कि किस प्रकार वह इन आधुनिक चीज़ों के मकडज़ाल में फँस गया है और इससे निकलना कितना मुश्किल है।
आधुनिकता के इस दौर में फ्रिज, मोबाइल, आधुनिक मकान (फुल फर्निस्ड), कार, एलसीडी (टीवी), सिनेमा, वीकेंड पर घूमना; ये सभी चीज़ें अब ‘मूलभूत आवश्यकताओं’ में शामिल हो गई हैं। यदि इन सब चीज़ों का उपयोग आप नहीं करते हैं तो आपको बहुत ही पुराने ख्याल का इंसान कहा जाएगा, कंजूस कहा जाएगा, या फिर दूसरे ग्रह का प्राणी बता दिया जाएगा। और आजकल तो किसी का भी मज़ाक उड़ा देते हैं, फिर चाहे आप छोटे हों या बड़े; नैतिकता और शिष्टाचार तो अब बचा ही नहीं है। इसका ताज़ा उदाहरण आपको उच्च पदों पर बैठे राजनेताओं के चुनावी भाषण सुनकर मिल जाएगा। इसी क्रम में इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि अभी हाल में बुलंदशहर में भीड़ द्वारा एक पुलिस अफसर को गोली से मार दिया गया। इस घटना से यह साबित होता है कि आज इंसान नैतिकता भूलता जा रहा है। वहीं दूसरी ओर जब एक पुलिस अफसर सुरक्षित नहीं है तो हम-आप की सुरक्षा की गारंटी कौन लेगा। ऐसी घटना आपके साथ भी हो सकती है। यदि आप किसी के दुश्मन हैं तो आपको भी इसी तरह भीड़ द्वारा मरवा दिया जाएगा और फिर चलती रहेगी जाँच प्रक्रिया, जिसमें सालों गुज़र जाते हैं। अब जि़म्मेदारों को कौन बताए कि जिस घर का मुखिया चला जाता है, उस घर के लोगों पर क्या बीतती है। उनके दर्द को कौन समझेगा? ‘दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा’ भर कहने से पीडि़त परिवार का दर्द कम हो जाएगा?
इस प्रकार की घटना पहली नहीं है। इससे पहले भी भीड़ द्वारा कई लोगों की जान ली जा चुकी है। यह कोई छोटी घटना नहीं है। जो पुलिस लोगों की रक्षा करती है वह भी अब अपनी सुरक्षा करने में सक्षम नहीं है, तो फिर यह देश किस दिशा में जा रहा है? क्या भारत देश के लोग इतने हिंसक हो गए हैं? या फिर किसी के द्वारा हिंसक बनाए जा रहे हैं? इस प्रश्न का उत्तर भारत देश की जनता को जानना बहुत ज़रूरी है। और अगर वह जानना नहीं चाहती तो ऐसी घटनाओं के लिए उसे तैयार रहना पड़ेगा, क्योंकि कल उसके साथ भी ऐसा हो सकता है। इन घटनाओं को अंजाम देने के लिए मोबाइल, टीवी, सोशल नेटवर्किंग साइट्स का सहारा लिया जा रहा है। इंसान इन्हीं आधुनिक सामानों के मकडज़ाल में उलझा हुआ है और उसे अपने आस-पास क्या हो रहा है इसकी खबर ही नहीं। और खबर होगी भी कैसे, क्योंकि इन पर तो दिनभर अफवाहें ही चलती रहती हैं, खबर तो अब मीडिया से गायब ही हो गई है। कहने को तो यह तकनीक और सूचनाओं का युग है, परंतु सूचना (अफवाह) सही है या गलत इसको मापने का यंत्र अभी तक विज्ञान ने नहीं बनाया है। अत: आम जनता से विनम्र निवेदन है कि इन आधुनिक साधनों का उपयोग बड़े ही सोच-समझकर और संयमित तरीके से करें। इसी में आपकी भलाई है और बाकी लोगों की भी।
आपको बताते चलें कि अभी जो काल चल रहा है, उसे कलयुग कहते हैं। मतलब, इंसान सिर्फ कल में जीता है और इस कल के चक्कर में वर्तमान के बहुमूल्य समय का आनंद नहीं उठा पाता। या तो वह आने वाले कल के लिए परेशान रहता है या फिर बीते हुए कल के बारे में सोचकर चिंता में डूब जाता है और इसी उधेड़बुन में वह वर्तमान से हाथ धो बैठता है। इसी कल की उधेड़बुन में वह भूल जाता है कि उसका जन्म क्यों हुआ है। इस प्रश्र का सीधा-सरल जवाब यह है कि हम सभी जानते हैं कि मानव शरीर पाँच तत्वों से मिलकर बना है और इन्हीं पाँच तत्वों से पूरी दुनिया चल रही है। यदि इन तत्वों में एक की भी कमी होती है तो मानव मृत हो जाता है, उसके जीवन का कोई अस्तित्व नहीं रहता है। अत: मनुष्य जन्म ही इसलिए हुआ है कि वह इन तत्वों का संरक्षण करे। मनुष्य के जीवन का उद्देश्य है कि वह इनका महत्व समझे और इनका संरक्षण करे, क्योंकि पूरी प्रकृति ही इन तत्वों से संचालित हो रही है। जिस प्रकार ये पाँचों तत्व मिल-जुलकर प्रकृति चला रहे हैं, वैसे ही हमें भी मिल-जुलकर रहना चाहिए ताकि धरती पर शांति कायम रहे। अत: सभी से अनुरोध है कि प्रकृति के नियमानुसार अपना जीवन बिताएँ एवं प्रकृति के नियमों को तोडऩे की कोशिश न करें। क्योंकि प्रकृति खुद अपने नियम कभी नहीं तोड़ती है और जो प्रकृति के नियम तोड़ता है, उसे प्रकृति नहीं छोड़ती है।
किसान भाइयों से अनुरोध है कि वे भी प्रकृति के नियमानुसार ही खेती करें। अभी किसान प्रकृति के नियमों को ताक पर रखकर खेती कर रहा है और इसी के चलते उसे परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अत: किसान भाइयो! आप आज से ही प्रकृति के नियम तोडऩे वाली रासायनिक खेती को छोड़कर प्रकृति के नियमों का पालन करने वाली प्राकृतिक खेती की शुरुआत करें। रासायनिक खेती के परिणाम स्वरूप ही आज जलस्तर 800 फीट की गहराई तक पहुँच गया है और मिट्टी की रोग प्रतिरोधक शक्ति भी कम हो गई है। अत: लागत बढ़ाने वाली और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाली ऐसी पद्धति से बचें। मिश्रित खेती करें, रासायनिक खादों का इस्तेमाल बंद करें, वर्षा के जल का सरंक्षण करें ताकि उसको खेती के काम में लिया जा सके, अपने खेतों में तालाब व कुओं का निर्माण करें, ट्यूबबेल से परहेज़ करें। आज आपके सामने प्रश्र यह कि आपके पास ५० लाख का मकान है, 10 लाख की कार है, घर में सभी आधुनिक सामान है, परंतु आपके पास खाने को न तो शुद्ध अनाज है, न ही शुद्ध पानी, और न ही शुद्ध हवा है। आप मकान, टीवी, कार, मोबाईल, कंप्यूटर के बिना जि़ंदा रह सकते हो परंतु यदि आपको पानी, खाना और हवा नहीं मिलेगी तो आप जीवित नहीं रह पाओगे। इसलिए व्यर्थ की चीज़ों के पीछे न भागें और ऐसे काम करें जो आपके और आपकी आगे वाली पीढ़ी के लिए लाभदायक हों। इसीलिए हम बार-बार हमारे संपादकीय में प्रकृति के नियमानुसार चलने की बात करते हैं और किसान भाइयों से भी यही आशा करते हैं कि वे भी प्रकृति का साथ निभाएँगे। प्रकृति का साथ निभाकर ही हम आधुनिकता के मकडज़ाल से निजात पा सकेंगे, नहीं तो हम इस जाल में उलझे ही रहेंगे।
पाँच राज्यों के चुनावी परिणाम आ चुके हैं। चार राज्यों में सत्ताधारी पार्टी को जनता ने नकार दिया और सिर्फ तेलंगाना में टीआरएस ही अपनी सत्ता बचा पाई है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाली नयी सरकारें किसानों के लिए कितनी हितकारी होंगी। क्या किसानों के क़र्ज़ माफ होंगे? क्या किसानों को उनकी फसलों के उचित दाम मिलेंगे? इन प्रश्रों के जवाब के लिए हमें अभी इंतज़ार करना पड़ेगा और इंतज़ार का फल मीठा होता है यह कहावत कितनी सच साबित होगी, यह देखना भी दिलचस्प होगा।
पवन नागर, संपादक