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इसे सम्मान कहें या जले पर नमक छिड़कना!

इसे सम्मान कहें या
जले पर नमक छिड़कना!

कोई फसल के उचित दाम न मिलने से परेशान है तो कोई सब्सिडी के पैसे समय पर न आने से परेशान है तो कोई बीमा राशि न प्राप्त होने के कारण परेशान है तो कई किसान कर्जे के कारण परेशान हैं। अभी फरवरी माह में हुई ओलावृष्टि के कारण जो फसल खराब हुई है उसका सर्वे न होने के कारण भी किसान परेशान हैं और इन परेशानियों के कारण ही देशभर में पिछले साढ़े चार साल से किसान आंदोलनरत है, पर उनकी परेशानियों का हल किसी के पास नहीं है। ऊपर बताई गई परेशानियों में सबसे ज़्यादा परेशानी होती है किसानों को उनकी फसलों के सही दाम का न मिलने से। यदि सरकार सिर्फ इस एक परेशानी को कम कर दे तो बाकी परेशानियाँ अपने आप कम हो जाएँगी। चाहे कोई भी सरकार हो, पिछली सरकार या वर्तमान सरकार, किसी भी सरकार ने किसानों को उनकी फसल का उचित दाम नहीं दिया है और न ही देने की मंशा नज़र आती है। सरकार को चाहिए कि वह यह सुनिश्चित करें कि जो भी समर्थन मूल्य घोषित किया जाए, उस मूल्य से कम पर खरीदी न की जाए। यदि कोई इस मूल्य से कम पर खरीदी करता पाया जाए तो उसके खिलाफ सख्त कारवाई हो या उसका लाईसेंस रद्द किया जाए। और इस पर एक सख्त कानून बनाने की ज़रूरत है। और दूसरी बात यह महत्वपूर्ण है कि किसान को समर्थन मूल्य की किसी समय-सीमा में न बाँधा जाए। वह अपनी फसल साल भर उस मूल्य पर कभी भी बेच सकता है। किसानों को उचित मूल्य दिलाकर ही उनकी परेशानी कम की जा सकती है। जबकि दूसरी तरफ किसान इतनी मेहनत करके पूरे देश के लिए अन्न, दाल, फल, सब्जियों इत्यादि की व्यवस्था में सालभर लगा रहता है। न सिर्फ देश के लोगों का पेट भरता है बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भारत के किसानों का माल निर्यात किया जाता है और इस निर्यात से भी सरकार की कमाई होती है। इस प्रकार तो किसान सरकार के लिए फायदेमंद ही है। और देश की अर्थव्यवस्था भी किसानों पर ही आधारित है। तो फिर क्यों नहीं किसानों की समस्याओं पर ध्यान दिया जाता है। क्यों उनको दर-ब-दर भटकना पड़ता है अपनी समस्याओं के हल के लिए।

अब हम बात करते हैं वर्तमान केन्द्र सरकार की किसान सम्मान निधि योजना की, जिसमें 2 हेक्टेयर तक के भूमि स्वामी को 6000 रुपये साल के हिसाब से एक राशि दी जाएगी जो तीन किश्त में, यानी कि 2000-2000-2000 के रूप में उसके खाते में आएगी। सरकार को इस बात के लिए साधुवाद कि उन्होंने किसानों की मदद करने की सोची। परंतु यह मदद न तो बहुत मददगार है और न ही इस मदद से किसानों की समस्या पर कोई फर्क पड़ेगा। जिन भी नीति-निर्देशकों ने यह योजना बनाई है उन्हें बिल्कुल भी ज़मीनी हकीकत नहीं मालूम है। वे इस बात से अनभिज्ञ हैं कि 6000 रुपये से सालभर में किसान का कुछ हो पाएगा। सबसे पहले तो आपको यह बात समझनी होगी कि साल में अधिकतर किसान दो सीज़न की फसल लेते हैं। और कुछ किसान तीसरी फसल भी लेते हैं। एक रबी, दूसरी खरीफ और तीसरी ग्रीष्म कालीन। यदि इसी हिसाब से हम गणित लगाते हैं तो एक सीज़न का 2000 रुपये बनता है। जब तक हम किसान की लागत और मेहनत का सही हिसाब नहीं लगाएँगे, तब तक हम उनकी समस्याओं को नहीं सुलझा पाएँगे। एक तो किसान की लागत दिन ब दिन बढ़ती जा रही है, दूसरा उत्पादन की अनिश्चितता रहती है, और तीसरी बात यह कि उनकी उपज का सही मूल्य न मिलता और जो मिलता है वह भी समय पर नहीं मिलता। आप को बताते चलें कि इस तीसरी बात में ही किसानों की समस्या का हल है। यदि सरकार चाहे तो सिर्फ इस तीसरी बात को समझकर देशभर के किसानों को सभी समस्याओं से निजात दिला सकती है। सरकार को चाहिए कि ऐसा कानून बनाया जाए कि सरकार द्वारा घोषित फसलों के दाम से नीचे कोई भी व्यापारी फसल न खरीद पाए। यदि कोई व्यापारी या व्यक्ति कम दाम में फसल खरीदे तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई तो होना ही चाहिए, साथ ही यह प्रावधान भी जोड़ा जाए कि जिस प्रकरण में वह पकड़ा जाए उसे जुर्माने के तौर पर दोगुने दाम में फसल खरीदने की बाध्यता की जाए ताकि फिर से वह इस प्रकार की कम कीमत पर खरीद न कर पाए। इस प्रकार एक सख्त कानून ही किसानों को फसल का उचित दाम दिला सकता है। यदि किसानों की बात सुनी जाए तो उनके अनुसार न तो उन्हें कोई सब्सिडी चाहिए, और न ही कोई कजऱ्माफी, बस सरकार से निवेदन है कि किसानों को उनकी फसल का सही मूल्य मिल जाए और पैसा सही समय पर मिल जाए तो किसान वैसे भी दिल खोल करके ही खर्च करता है। जिससे देश की जीडीपी को बढऩे में सहायता होगी।

किसान भाईयों को सचेत रहने की ज़रूरत है क्योंकि आने वाले दिनों में चुनाव आने वाले है और राजनीतिक पार्टियों आपको फिर सब्जबाग दिखाने आपके पास आयेगी। इसलिए आप इधर-उधर की बातों में मत आना और खुद से जुड़ी हुई समस्याओं के बारे में ज़रूर पूछना कि अब तक इन समस्याओं के लिए कुछ क्यों नहीं किया गया। साथ ही किसान भाइयों से निवेदन है कि आप पूछिएगा कि क्या 6000 रुपये सालाना मिलने से आपको सम्मान मिलेगा? मैं आपको यहाँ याद दिला दूँ कि सरकार किसान को छोड़कर दूसरे लोगों को कैसे सम्मान देती है। पहला उदाहरण: ओलंपिक में मेडल जीतने पर क्रमश: 1 करोड़, 50 लाख, 25 लाख रुपये सम्मान के रूप में खिलाडिय़ों को दिया जाता है। इसके अलावा राज्य सरकारें अलग से सम्मान निधि उनको देती हैं और सरकारी नौकरी अलग से। दूसरा: सबसे लोकप्रिय खेल किक्रेट में भी मैन ऑफ द मैच के रूप में भारी-भरकम राशि सम्मान के रूप में दी जाती है। एक तरफ आप एक मूर्ति बनाने के लिए 3000 हज़ार करोड़ खर्च करते हैं और किसानों के लिए सिर्फ 6000 रुपये? (यदि लौहपुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल होते तो क्या किसानों की ऐसी हालात होने पर वह किसी की मूर्ति बनने देते? सरदार पटेल एक आदर्शवादी नेता थे और हमेशा जनता की भलाई के लिए कार्य करते थे, उन्हें फिचूलखर्ची बिल्कुल भी पंसद नहीं थी।) पर यह कैसा सम्मान हुआ भाई? क्या आप किसानों की वास्तविक स्थिति से अवगत हैं? क्या आपको उनके आय-व्यय का सटीक हिसाब-किताब मालूम है? क्या आपको मालूम है कि प्राकृतिक आपदाओं में उनका कितना नुकसान होता है? क्या आपके पास किसानों के सटीक आँकड़े हैं? मेरे हिसाब से पहले सरकार को इन सवालों के जवाब ढू़ँढऩे चाहिए और उसके बाद किसानों की सम्मान निधि की राशि तय करनी चाहिए। 26 करोड़ किसान हैं पूरे भारत देश में जो 130 करोड़ भारतीयों के साथ-साथ विदेशी नागरिकों की पेट-पूजा के लिए भी अन्न का उत्पादन करते हैंI इन 26 करोड़ में से सिर्फ 12.5 करोड़ किसानों को ही यह सम्मान निधि मिलेगी, तो क्या बाकी के किसान किसान नहीं हैं? उनकी समस्याओं का क्या होगा? और जिनको यह राशि मिलेगी भी, उनके लिए भी यह ऊँट के मुँह में जीरा ही साबित होगी। 6000 रुपये तो आधे साल का बिजली बिल देने में ही खर्च हो जाएँगे। ऐसे में इसे सम्मान कहें या जले पर नमक छिड़कना! आप ही तय करें।

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One Comment

  1. किसानो का नेता और सरकारी कर्मचारियों द्वारा उत्पीड़न चरम सीमा पर किया जा रहा है बीजेपी का भरषटाचार मुक्त का नारा था परन्तु आज भरषटाचार चरम सीमा पर है ।किसान को अब धर्म जाति व पार्टी का बन्धक बनने के बजाये सड़क पर एक जुट हो कर हक के लिये संघर्ष करना होगा

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