हरियाणा के कैथल जिले के कैरलम गाँव के अतिसाधारण किसान होने से लेकर विश्व के चुनिंदा किसानों में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने तक में कामयाबी हासिल कर चुके ईश्वर सिंह कुंडू आज की तारीख में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। जैविक खेती करने और जैविक खेती को समृद्धि प्रदान करने वाले अपने शोधों व उत्पादों के चलते वे आज देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी नाम कमा चुके हैं।
कुंडू जी स्वतंत्र भारत के संभवत: इकलौते ऐसे किसान वैज्ञानिक हैं जिन्हें वर्ष 2013 में 44 लाख रुपये का पुरस्कार/अनुदान मिला। ‘महिंद्रा एंड महिंद्रा’ द्वारा देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में आयोजित ‘स्पार्क दि राइज़’ नामक राष्ट्रीय प्रतियोगिता में उन्हें यह सम्मान प्रदान किया गया। नि:संदेह इस पुरस्कार से संपूर्ण किसान समुदाय का मान-सम्मान बढ़ा।
किसी फिल्म की काल्पनिक कहानी की तर्ज पर असल जीवन में अनगिनत उतार-चढ़ाव और दु:ख-दर्द झेल चुके ईश्वर जी को उनके सैनिक पिता ने उनके सांवलेपन के कारण न केवल ‘कालिया’ कहकर पुकारा, वरन बात-बेबात उन पर जमकर हाथ-पैर भी छोड़े। आत्म-सम्मान से लबरेज़ ईश्वर जी ने शुरुआती दिनों में पत्रकारिता, बिल्डर के यहाँ नौकरी और वकील के यहाँ सहयोगी का काम भी किया है।
आज की तारीख में उनके ‘कमाल’ नाम वाले जैविक उत्पाद कृषि की दुनिया में वाकई कमाल कर रहे हैं। साल 2007-08 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें सम्मानित किया था।
उनके प्रोडक्ट ‘कमाल 505’ का राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन में हुआ परीक्षण सफल रहा। साल 2008 में इन्हें ‘कमाल क्लेम्प’ की सप्लाई का भी ऑर्डर मिला। 2006 में शुरू हुआ उनका यह सफर अब इंस्टीट्यूशन की शक्ल अख्तियार कर चुका है। उनका खेत और कृषि को हर्बोलिक लैबोरेटरीज़ किसानों के लिए जीती-जागती प्रयोगशाला बन चुकी है।
‘खेतों के वैज्ञानिक’, ‘जगजीवन राम अभिनव कृषि पुरस्कार’, ‘इनोवेटिव फार्मर अवॉर्ड’, ‘उत्तम स्टाल अवार्ड’, ‘ईएमपीआई इंडियन एक्सप्रेस इनोवेशन अवॉर्ड’, ‘इंडिया बुक रिकॉर्ड’, ‘गुजरात सरकार सम्मान’ तथा ‘लिम्का बुक रिकॉर्ड’ जैसे कई पुरस्कार उनके घर की दीवारों पर सजे हैं, उनके दफ्तर की शोभा बढ़ा रहे हैं। अब उनके बेटे जवान हो गए हैं। बड़े बेटे सुनील ने राजस्थान के सूरतगढ़ में खेतीबाड़ी शुरू की है जबकि छोटा बेटा सुशील गाँव में रहकर अपने पिता का हाथ बँटाता है।
एक कृषि पत्रकार के रूप में मेरा उनसे बरसों लंबा जुड़ाव रहा है। मुझे इस बात की भी ख़ुशी है कि वर्ष 2016 में जब डॉ. महेंद्र मधुप देशभर के किसान वैज्ञानिकों की एकजुटता के लिए अभियान छेड़ रहे थे तो मैं और कुंडू जी उनकी टीम के सबसे विश्वसनीय साथियों के रूप में मौजूद थे।
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