साक्षात्कार

प्रकृति के करीब बनयान ट्री फार्म और सण्डे स्नेप की कहानी शैलेन्द्र बागरे की जुबानी

जि़ंदगी को जि़ंदादिली से और अन्र्तात्मा की सुनकर जीने वाले कम ही लोग होते हैं। इन्हीं दुर्लभ लोगों में से एक हैं किसान तथा इंजीनियरिंग आर्किटेक्चरल कन्सल्टेंट शैलेन्द्र बागरे, जो अपने शौक या जुनून को जीना अच्छी तरह जानते हैं और हर हाल में उसे पूरा कर ही लेते हैं। मूल रूप से हरदा की टिमरनी तहसील के सौताड़ा गाँव के रहने वाले शैलेन्द्र बागरे जी की शिक्षा मध्यप्रदेश के विभिन्न शहरों में हुई। पढ़ाई के बाद भोपाल में ही बस गए। इंजीनियङ्क्षरग आर्किटेक्चरल कोर्स करने के बाद इसी में अपना कॅरिअर शुरू किया और आज इंजीनियरिंग आर्किटेक्चरल कंसल्टेंसी के क्षेत्र में एक जाना-माना नाम हैं। वर्तमान में पीएचडी भी कर रहे हैं।

शैलेन्द्र जी को जुनून था कि एक ऐसा फार्म हाउस बनाया जाए जो अलग और अनोखा हो। तो उन्होंने बनयान ट्री फार्म (बरगद के पेड़ पर मकान) बनाया जो देखने में खूबसूरत तो है ही, प्रकृति के करीब भी है। यहाँ पर आकर आप एक अलग ही किस्म के सुकून से भर उठते हैं। भागमभाग एवं व्यस्त दिनचर्या से अगर थोड़ा समय आप निकाल सकें तो इस सुकून को महसूस करने बनयान ट्री फार्म ज़रूर जाएँ। यह फार्म रीसॉर्ट के तौर पर मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग से पंजीकृत है और इसमें देश-विदेश से ऑनलाइन बुकिंग की जाती है।

शैलेन्द्र बागरे जी इसी फार्म पर अपने परिवार के लिए धान की फसल ले चुके हंै। अभी वर्तमान में यहाँ पर गेहूँ, प्याज, लहसुन, देसी टमाटर, चेरी टमाटर, मिर्च, शिमला मिर्च व पत्ता गोभी लगी हुई है। 2600 वर्गमीटर में बने पॉली हाऊस में पाँच तरह के जरबेरा फूल, खीरा और शिमला मिर्च लगाई गई है। अपने परिवार के लिए सब्ज़ी और अन्य खाद्य सामग्री का उत्पादन शैलेन्द्र बागरे जी इसी फार्म पर करते हैं। मौसमी फलों के पेड़ भी यहाँ लगे हुए हैं जिसके कारण इनको बाज़ार से कम ही खरीदारी करनी पड़ती है और बिना ज़हर वाली खाद्य सामग्री प्राप्त हो जाती है, जिसे वे अपने पड़ोसियों और दोस्तों को भी बड़े शौक से खिलाते हैं।

कृषि परिवर्तन ने जानना चाहा बनयान ट्री फार्म के बारे में और इसके लिए वहीं जाकर शैलेन्द्र बागरे जी से बात और मुलाकात की। उसी वार्ता के मुख्य अंश यहाँ प्रस्तुत हैं:

प्रश्न: बनयान ट्री फार्म बनाने का विचार कैसे आया?
उत्तर: एक सपना था। मन में ऐसा विचार था कि कोई रचनात्मक व अलग तरह का अभिनव कार्य किया जाए। इसलिए बनयान ट्री फार्म का निर्माण किया। प्रकृति से अधिक लगाव के कारण इसको काल्पनिक बरगद का पेड़ (बनयान ट्री) बनाकर उसको घर का रूप दिया जो बनने के बाद लोगों को बहुत पसंद आ रहा है। इस तरह के रचनात्मक कार्य करने और उसे लोगों का समर्थन मिलने से आत्म-संतुष्टि मिलती है और आत्मविश्वास बढ़ जाता है। इस प्रोजेक्ट को भारतीय योजना आयोग की समिति सीआईडीसी द्वारा सन् 2011 में राष्ट्रीय स्तर पर विश्वकर्मा अवॉर्ड प्रदान किया गया था। चूँकि मैं आर्किटेक्चरल व्यवसाय में हूँ तो इसकी वजह से इस सपने को पूरा करने में मुझे काफी मदद मिली।

प्रश्न: आपको खेती करने का शौक कब से और कैसे हुआ?
उत्तर: हमारे पूर्वज किसान ही थे। वह तो हम पापा की नौकरी के कारण शहरों में रहने लगे और शिक्षा भी शहरों में हुई। परंतु खेती से लगाव बना रहा, इसलिए जैसे ही मौका मिला मैं वापस ‘एक दिन (रविवार के रविवार) का किसान’ हो गया। मैं पिछले 15 सालों से 2 एकड़ ज़मीन में खेती कर रहा हूँ। अपने 15 वर्षों के अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हँू कि खेती प्रकृति के करीब लाती है और खेती के बिना जीवन अधूरा-सा लगता है। खेत पर जाने के बाद एक अलग ही सुख की अनुभूति होती है, जो कि किसी और व्यवसाय में संभव नहीं है। खेती एक मेडिटेशन की तरह है जिसे आप जितना समय दोगे वह उतना ही आपके मानसिक तनाव को दूर करने में सहायता करेगा और आपके स्वास्थ्य को मज़बूती देगा।

प्रश्न: पॉली हाऊस के अपने अनुभव के बारे में विस्तार से बताइए।
उत्तर: मैं विगत तीन वर्षों से पॉली हाऊस से खेती कर रहा हूँ। मेरे अनुभव से पॉली हाऊस बहुत ही खर्चीला, संवेदनशील और अधिक लागत वाला है। लागत अधिक होने से आय का बड़ा हिस्सा लोन की किश्तों को चुकाने में चला जाता है, जिसके कारण शुरू के वर्षों में नुकसान उठाना पड़ता है और किसान के हाथ कुछ नहीं लगता।

एक अच्छी बात पॉली हाऊस में यह है कि कम भूमि पर अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। जैसे यदि कोई किसान 25 एकड़ की भूमि में खेती कर रहा है तो वह 0.5 एकड़ के पॉली हाऊस से 25 एकड़ रकबे के बराबर उपज ले सकता है। परंतु इसके लिए अत्यधिक रासायनिक खाद, हाइब्रिड बीज तथा कीटनाशक की आवश्यकता पड़ती है, साथ ही तकनीकी ज्ञान का होना भी बहुत ज़रूरी है। मज़दूरों के भरोसे यहाँ काम नहीं चलता है, मज़दूरों के साथ खुद भी लगना पड़ता है। एक बात जो विशेष तौर पर ध्यान रखनी पड़ती है, वह है समय। समय का विशेष महत्व है पॉली हाऊस में।

एक और चीज़ मैंने पिछले तीन वर्षों में अनुभव की है कि बाज़ार के दलालों के कारण किसानों को अपनी उपज का सही दाम नहीं मिल पाता है और किसान का मुनाफा नुकसान में बदल जाता है। इस प्रक्रिया से निपटने के लिए शासन जब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाएगा, किसान परेशानी में ही रहेगा।

प्रश्न: पॉली हाऊस से खेती करना आसान है क्या?
उत्तर: हाँ, कम मज़दूरों को लगाकर ज़्यादा टर्न ओवर लिया जा सकता है बशर्ते समय, मौसम व बाज़ार का संपूर्ण ज्ञान हो। लेकिन अगर पॉली हाऊस से आप ज़्यादा लाभ चाहते हैं तो उसी अनुपात में खर्चा भी करना पड़ता है।

प्रश्न: सरकारी सब्सिडी के बारे में आप क्या कहेंगे?
उत्तर: जो सब्सिडी मिलती है वह समय पर न मिलने के कारण पूरे लोन पर ब्याज देना पड़ता है जो किसान के लिए बहुत ही नुकसानदायक है और छोटा किसान इतना निवेश और ब्याज कृषि आय से तो नहीं दे सकता। पॉली हाऊस में उत्पादन तो ज़्यादा हो सकता है पर बाज़ार नहीं होने के कारण मुनाफे का बहुत बड़ा हिस्सा मण्डी के दलालों को एवं कीटनाशकों में चला जाता है। मेरे अनुभव से 5 प्रतिशत असल किसान ही पॉली हाऊस लगाते हैं, बाकी 95 प्रतिशत पॉली हाऊस आर्थिक रूप से मजबूत और रसूखदार लोग ही अपनी ज़मीनों पर लगाते हैं, वह भी बहुत कम जगह में, जिसकी मुख्य वजह सब्सिडी का लाभ लेना होता है। यदि सरकार किसान को सीधा लाभ देना चाहती है तो इस ओर ध्यान दे। मेरे हिसाब से तो सब्सिडी की प्रक्रिया को खत्म करके जितनी राहत राशि सरकार किसान को देना चाहती है वे सीधे किसान को दिया जाए या जितना पैसा किसी भी योजना में लगता है उतना ही पैसा किसान से लिया जाए। उसी पैसे पर सस्ती दरों से किसान को लोन दिया जाए ताकि किसान भी अपने पैसे से कार्य शुरू कर सकें। जब सब्सिडी के रूप में किसानों को पैसा लौटाना ही है तो किसानों से वह पैसा लिया ही क्यों जाए। इसी सब्सिडी के लेने और देने में किसान का काफी कुछ नुकसान हो जाता है और किसान परेशान रहता है। और भला किसी और का हो जाता है।

प्रश्न: क्या आप अपने परिवार की ज़रूरत की सब्जि़याँ अपने फार्म पर ही उगाते हैं?
उत्तर: हाँ। हमारे फार्म पर कटहल, गोभी, टमाटर, लौकी, गिल्की, प्याज, लहसुन, धनिया, बैंगन, मिर्च, मूली, खीरा, शिमला मिर्च वगैरह पूर्णत: प्राकृतिक तरीके से उगाई जाती हैं। और 0.5 एकड़ रकबे में गेहूँ तथा धान भी घरेलू उपयोग के लिए लगाई जाती है। इसके चलते हमें अपने भोजन के लिए बाज़ार पर निर्भर नहीं रहना पड़ता, हमें खुद की उगाई हुई शुद्ध व बिना कीटनाशक वाली सब्जि़याँ और अनाज प्राप्त होता है। हमारे फार्म पर मौसमी फलों के पेड़ भी लगे हुए हैं, जैसे अमरूद, चीकू, बेर, पपीता, नींबू, आम, नारियल, ऑवला, इत्यादि।

प्रश्न: काफी चर्चित नाम हो गया है सण्डे स्नेप। इसकी क्या कहानी है?
उत्तर: मैं अपने व्यवसाय में सोमवार से शनिवार तक वक्त देता हूँ और रविवार का दिन कृषि कार्य व अपने फार्म हाऊस की देखरेख एवं प्रकृति के करीब रहने में बिताता हूँ। मुझे फोटोग्राफी का शौक भी है और इसी शौक के कारण रविवार को फार्म हाऊस की तस्वीरें खींचता हूँ। आजकल सोशल मीडिया एक ऐसा माध्यम हो गया है जिससे आप अपनी बात को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचा सकते हैं। अत: अपने फोटोग्राफी के शौक तथा लोगों में जागरूकता और प्रकृति के प्रति लगाव व जिज्ञासा पैदा करने के उद्देश्य से अचानक ही फेसबुक पर ‘सण्डे स्नेप’ नाम से एक सिलसिला शुरू हो गया। रविवार को फार्म हाऊस पर खेती, प्रकृति, पालतू जीव-जंतु जैसे लव बर्ड्स, तोते, कबूतर, गिनी पिग, खरगोश, ईमू, सफेद चूहे, मुर्गे-मुर्गियाँ, बत्तख, मछलियाँ एवं जर्मन शेफर्ड डॉग, गाय इत्यादि इन सभी की दिनचर्या की फोटो ली जाती हैं, फिर अगले दिन फेसबुक पर सण्डे स्नेप के नाम से फेसबुक पोस्ट किया जाता है। बीच में कुछ व्यस्तता के कारण यह प्रक्रिया रुक गई थी, लेकिन फिर दोस्तों द्वारा मांग करने के बाद यह सिलसिला विगत तीन वर्षों से बदस्तूर जारी है। इसके माध्यम से लोगों का प्रकृति व जीवों के प्रति लगाव बढ़ता जा रहा है। यह देखकर मुझे अपने कार्य से आत्म-संतुष्टि मिलती है। बस यही कहानी है सण्डे स्नेप की।

प्रश्न: आपकी नज़र में खेती लाभ का धंधा है या नहीं?
उत्तर: पारंपरिक खेती से हटकर आधुनिक तकनीक आधारित खेती करें (ऑफ सीज़न क्रॉप लेना, पॉली हाऊस से खेती करना, ऑर्गेनिक खेती अपनाना) तो फायदेमंद है। कम से कम रासायनिक खादों का उपयोग व देसी बीजों का इस्तेमाल करें तो फायदेमंद है। खेती तो सालों से लाभ का व्यवसाय है परंतु इसको भी अन्य व्यवसायों की तरह ही पूरा समय देना पड़ता है, तभी कृषि से लाभ प्राप्त होता है।

प्रश्न: किसान का बेटा किसान नहीं बनना चाहता, इस पर अपने विचार व्यक्त करेंगे?
उत्तर: इसकी मुख्य वजह यही है कि खेती का व्यवसाय काफी मेहनत और समय माँगता है, ग्रामीण जीवन-शैली अपनाने की शर्त रखता है जो कि आज के युवा वर्ग को भाता नहीं। दूसरे व्यवसायों में उन्हें सीमित समय और कम मेहनत में शहर की चकाचौंध मिल जाती है, घूमना-फिरना हो जाता है, मौज-मस्ती के सभी साधन उपलब्ध हो जाते हैं, इसलिए वे इस कार्य से दूरी बना रहे हैं। परंतु मेरे हिसाब से खेती का कार्य आत्म-संतुष्टि देने वाला कार्य है। यदि इसमें ईमानदारी से समय दिया जाए तो यह एक बहुत ही अच्छा व्यवसाय है जिसमें पूरी आज़ादी रहती है।

प्रश्न: किसान भाइयों के लिए कोई संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर: किसान भाइयों के लिए मैं यही संदेश देना चाहूँगा कि अपने परिवार की सुरक्षा के लिए आज से ही रासायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग बंद करें और शुद्ध अनाज, दाल, सब्ज़ी व फलों का उत्पादन अपने ही खेत पर करें। इससे होगा यह कि आप बीमार भी नहीं होंगे और आपकी बाज़ार पर निर्भरता भी कम होगी। और एक और बात कहना चाहूँगा कि किसान भाई पशुपालन ज़रूर करें और कम से कम एक देसी गाय तो रखें ही ताकि आपको दूध, घी, पनीर, मठ्ठा, दही इत्यादि भी घर पर ही मिल जाएगा, जिससे आपके खर्चे भी कम होंगे और सेहत भी सुधरेगी।

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