चुनाव और किसानों का दिल जीतने, सरकार लेकर आई लोकलुभावन बजट
एनडीए सरकार का अंतिम पूर्ण बजट (2018-2019) फरवरी माह में पेश कर दिया गया। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले सरकार का यह अंतिम आम बजट था। इस बजट से किसानों के साथ देशभर के नागरिकों को भी काफी आशाएँ थीं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में किसानों का जि़क्रभी काफी देर तक किया, लेकिन क्या यह बजट वाकई में किसानों के दुखों को दूर करने वाला साबित होगा और क्या इस बजट से देश में किसानों की आत्महत्याओं का दौर खत्म होगा? क्या किसानों की हालत में सुधार हो पाएगा? ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब देश का हर किसान चाहता है। अब यह तो वक्त ही बताएगा कि इस बजट से किसानों पर कितना सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
किसानों और ग्रामीणों का बजट बताने में सरकार और सत्ताधारी दल पूरी शक्ति के साथ लगे हुए हैं। पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली ने और उसके बाद प्रधानमंत्री ने बार-बार ज़ोर देकर कहा कि यह बजट किसानों और गाँव का बजट है, कि हम किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करेंगे और हर फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य देंगे।
बजट को लेकर अटकलें लग रही हैं कि यह इस वर्ष कई प्रदेशों में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर लॉलीपॉप है और आगामी लोकसभा चुनावों की तैयारी भी है। शहर के लोगों को लग रहा है कि यह बजट किसानों और ग्रामीणों के लिए है, लेकिन किसान के नज़रिये से देखें तो यह शहर और उद्योगपतियों का बजट है।
सरकार ने सभी फसलों (नोटिफाइड) को एमएसपी देने की बात की है, लेकिन रिपोर्ट बताती हैं कि सिर्फ 6 फीसदी को एमएसपी का लाभ मिलता है। तो बाकी 94 फीसदी के लिए क्या है? कई प्रदेशों के किसान कजऱ्माफी की उम्मीद में थे, पर उन्हें निराशा हुई। अधिकतर किसानों को सुनिश्चित आय और पूर्ण कर्जमाफी की उम्मीद थी, लेकिन उसे कोई महत्व नहीं मिला। सिर्फ भविष्य के सपने दिखाई दिए इस बजट में। बजट में सरकार ने स्वाइल हेल्थ कार्ड का बजट घटाया जबकि देश को उसकी ज़रूरत है, यानि सरकार के पास कोई रोडमैप नहीं है। सरकार लगातार किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात करती रही है, लेकिन वस्तुस्थिति बताती है कि यह ज़मीन पर होता नज़र नहीं आया। इस बीच किसानों की दशा और खराब ही हुई है।
एक और बात गौर करने वाली है कि गुजरात के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने सरकार को सोचने पर मजबूर किया होगा, तभी तो बजट का स्वरूप ऐसा है। यदि हम यहाँ पर मध्यप्रदेश की बात करें तो यहाँ भी शिवराज सिंह चौहान की किसान हितैषी तमाम कोशिशों के बावजूद किसानों के गुस्से में कमी नहीं आयी है। उदाहरण के तौर पर भावांतर को ही लें तो एक अंग्रेजी अखबार की खबर के अनुसार योजना के तहत जैसे ही सोयाबीन की खरीद बंद हुई, उसके दाम बढ़ गए, यानि सरकार कारोबारियों पर नियंत्रण करने में नाकाम है। मध्य प्रदेश कृषि संपन्न राज्य है, देश का सबसे बड़ा कृषि पुरस्कार ‘कृषि कर्मण’ लगातार पाँचवीं बार मध्य प्रदेश को मिला है, लेकिन किसान कई इलाकों में नाखुश से नज़र आते हैं।
पिछले वर्ष किसानों का आंदोलन मध्य प्रदेश से ही शुरू हुआ था, इस बार भी कई इलाकों में किसान सरकार से खफा होकर आंदोलन चला रहे हैं। किसानों के अनुभवों की मानें तो किसान को हर जगह ठगा जा रहा है क्योंकि पहले भावांतर में कम कीमत पर सोयाबीन बिकवा दी, अब भाव बढ़ गए हैं।
आश्चर्य करने वाली बात यह है कि बजट में गाँव और किसान की बात खूब हुई है परंतु पिछले चार बरसों में सरकार के कदमों से तो नहीं लगा कि 2022 तक सरकार किसानों की आय दोगुनी कर पाएगी। और 2022 आने में अभी पूरे 4 वर्ष हैं, क्या तब तक किसान इसी आमदनी और कजऱ्दारी से अपना जीवन-यापन करेगा? एक तरफ तो सरकार किसानों के हित की बात करती है और दूसरी तरफ किसानों को प्रदर्शन तक नहीं करने देती है। किसानों के प्रति सरकार का रवैया भी हौसला बढ़ाने वाला नहीं रहा। अभी टीकमगढ़ में प्रदर्शन कर रहे किसानों को बुरी तरह मारा-पीटा गया। वहीं अभी दिल्ली में 23 फरवरी, 2018 को देशभर के विभिन्न किसान संगठनों को भी दिल्ली के बाहर ही रोक लिया गया। सरकार को पता है कि किसान नाराज़ हैं और जल्द ही चुनाव होने वाले हैं, इसलिए किसानों का दिल जीतने के लिए यह सरकार लोकलुभावन बजट लाई है।
बजट में किसान को फसल की लागत का डेढ़ गुना मूल्य और हर फसल का समर्थन मूल्य देने का फैसला स्वागत योग्य है लेकिन इसका कोई ब्लू प्रिंट नहीं है, क्योंकि आज भी कई फसलों के एमएसपी होने के बावजूद फसलें आधे दामों पर बिकती हैं।
अब देखना यह है कि इस लोकलुभावन बजट की घोषणाओं का अमल ज़मीनी स्तर पर कब तक आएगा और किसानों की स्थिति में क्या बदलाव होगा। या एक बार फिर देश का अन्नदाता घोषणाओं और आश्वासनों के भरोसे ही ठगा हुआ महसूस करेगा।
बजट में हुई महत्वपूर्ण घोषणा
ग्रामीण अर्थव्यवस्था, कृषि और किसानों के कल्याण हेतु कुछ अहम घोषणाएँ-
- 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य।
- कम लागत में अधिक फसल उगाने पर ज़ोर, किसानों को उनकी उपज का अधिक दाम दिलाने पर फोकस।
- उपज पर लागत से डेढ़ गुना अधिक दाम मिलें, इस पर फोकस।
- 42 मेगा फूड पार्क बनाए जाने का ऐलान।
- लघु और सीमांत किसानों के लिए ग्रामीण कृषि बाज़ारों का विकास किया जाएगा।
- गाँवों में 22 हज़ार हाटों को कृषि बाज़ार में तब्दील किया जाएगा।
- देश में कृषि उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर है। साल 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करेंगे।
- खरीफ की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य को 1.5 गुना किया गया है।
- मछुआरों और पशुपालकों को भी किसानों की तरह क्रेडिट कार्ड दिए जाएँगे।
- ऑर्गेनिक खेती को और बढ़ावा दिया जाएगा। महिला समूहों को जैविक खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
- सौभाग्य योजना के तहत चार करोड़ गरीब घरों को मुफ्त बिजली दी जाएगी।
- साल 2022 तक हर गरीब के पास उसका अपना घर होगा।
- उजवला योजना के तहत अब आठ करोड़ गरीब महिलाओं को मुफ्त गैस कनेक्शन दिया जाएगा।
- कृषि उत्पादों के निर्यात को 100 अरब डॉलर के स्तर तक पहुँचाने का लक्ष्य।
- नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन स्कीम के तहत 10 करोड़ गरीब परिवारों को पाँच लाख रुपये तक का हेल्थ बीमा।
किसको कितना मिला बजट
- 10000 करोड़ रुपये मछली पालन और पशुपालन व्यवसाय में देकर ग्रामीण क्षेत्रों में जनता की आय बढ़ाने की कोशिश की जाएगी।
- 2000 करोड़ रुपये की लागत से कृषि बाज़ार।
- 1400 करोड़ रुपये कृषि प्रोसेसिंग सेक्टर के लिए।
- 500 करोड़ रुपये की लागत से ऑपरेशन ग्रीन।
- 14.34 लाख करोड़ रुपये गाँवों में इंफ्ऱास्ट्रक्चर को मज़बूत करने के लिए।