प्रकृति ही भगवान है भगवान ही प्रकृति है. nature is god, god is nature
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यह तो सभी जानते हैं कि हमारा शरीर पाँच तत्वों से बना है और उन्हीं पाँच तत्वों (#fiveelements) में विलीन हो जाना है एक दिन। यही बात हमें याद रखना होगी और इन पाँच तत्वों के महत्व को पहचानना होगा। भगवान यानि भ से भूमि, ग से गगन, व से वायु, ा से अग्नि यानि ऊर्जा और न से नीर। इस प्रकार इन पाँच तत्वों से मिलकर बना है भगवान। और हमें परमात्मा ने इन तत्वों की जि़म्मेदारी निभाने एवं इनकी रक्षा करने के लिए यहाँ भेजा है, इसलिए हर हाल में इंसान को इनके लिए कार्य करते रहना है। वैसे तो खुद ईश्वर कहता है कि वह कण-कण में निवास करता है। फिर भी पता नहीं क्यों मनुष्य उसको मंदिर में, मस्जिद में, गुरुदारों में या चर्च में खोजता रहता है। पता नहीं क्यों वह ऐसे ढोंगी बाबाओं के चक्कर में फँस जाता है जो खुद को भगवान से ऊपर समझने लगते हैं। इसलिए अंत में धोखा खाता है।
इसलिए आपको चाहिए कि आप भूमि के महत्व को समझें; गगन की उपयोगिता जानें; वायु कहाँ से आती है, उसका स्त्रोत क्या है यह पता लगाएँ, और उस स्त्रोत को कैसे हम बचा सकते हैं उसके लिए प्रयत्न करें। शुद्ध वायु का एकमात्र स्त्रोत हैं हमारी धरती पर उपस्थित अनगिनत पेड़-पौधे। इन पेड़-पौधों को बचाने और बढ़ाने के लिए हम सबको मिलकर प्रयास करना पड़ेगा। और अग्नि या ऊर्जा को अपने दिल में जलाकर रखें ताकि आप बिना थके, बिना रुके भगवान के कार्य को निरंतर कर सकें। आखिर में आता है नीर या पानी। यह भी अति महत्वपूर्ण है, जैसा कि कहा भी गया है कि बिन पानी सब सून। यदि हम इसी प्रकार पानी की फिजूलखर्ची करते रहे तो वो दिन दूर नहीं कि पानी के भी लाले पड़ जाएँगे।
कुल मिलाकर कहा जाए तो प्रकृति के इन पाँच तत्वों में ही भगवान का वास है और इसलिए प्रकृति ही भगवान है और भगवान ही प्रकृति के रूप में हमारे सामने निरंतर दर्शन के लिए उपस्थित रहता है, परंतु हम मोह-माया में इस कदर खोए हुए हैं कि हमें प्रकृति में भगवान दिखाई नहीं देता। और हम लगे रहते हैं आडंबरों को पूरा करने में। बँधे रहते हैं धर्म और जाति की बंदिशों में। इन बंदिशों की बेडिय़ों को तोड़कर प्रकृति के लिए काम करके तो देखिए, आपको भगवान के साक्षात्कार होंगे। और जब आपको भगवान के साक्षात्कार हो जाएँगे तो आप भी इंसान बन जाएँगे और इंसान की भलाई के कार्य में लग जाएँगे। अब आपको तय करना है कि आपको क्या बनना है। आप ही सोचिए कि आप इंसान बनकर इंसान की भलाई के कार्य में लगना चाहते हैं या फिर अपनी मोह-माया वाली दिनचर्या में मगन रहना चाहते हैं, यानि सुबह उठे, नहाये, पूजा-पाठ की, नाश्ता किया, फिर ऑफिस या दुकान चले, फिर वहाँ काम किया, फिर चाय भी, लंच किया। शाम हो गई तो वापस घर को निकले। पर बीच में ही फोन आ गया घर से कि ये सामान ले आना, वो सामान ले आना। तो सामान लेकर आप घर पहुँचे, पानी पिया, हाथ-मुँह धोये, फिर थोड़ी देर बाद टीवी देखते-देखते खाना खाया, टीवी देखते हुए थोड़ा समय बच्चों के साथ बिताया, फिर टीवी देखते-देखते ही थोड़ा समय धर्मपत्नी के साथ बिताया, और इस सबके बाद समय आता है आज की सबसे शक्तिशाली आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करने का, यानि आपके स्मार्टफोन का, वो भी ४ जी की सबसे तेज़ गति से चलने वाला।
अब यहाँ आप यूट्यूब पर वीडियो देखेंगे और सोशल नेटवर्किंग पर समय बिताएँगे। फेसबुक, ट्वीटर, इन्स्टाग्राम और जाने कितनी वेबसाईट्स हैं जिन पर आप घंटों समय बिता सकते हैं और आपको अंदाज़ा भी नहीं लगेगा कि आपका समय कब गुज़र गया। और फिर जब आपकी आँखों में दर्द होने लगेगा तो आप सो जाएँगे। जब आपको दर्द का अहसास होगा तब शायद रात का 1, 2 या 3 भी बजा हो सकता है। फिर सुबह उठकर उसी दिनचर्या में आप फिर से लग जाएँगे जिसको आप काफी वर्षों से करते आ रहे हैं और जिसमें अब आपको आनंद नहीं आता है। इतनी लंबी कहानी बताने का हमारा मकसद सिर्फ इतना सा है कि आप इस बँधी-बँधाई दिनचर्या से बाहर निकलें और थोड़ा समय प्रकृति के बीच भी गुज़ारें, प्रकृति और इंसान के संबंध को समझें। इसी में प्रकृति की भलाई है और इंसान की भी।