संपादकीय

मुफ्त का लालच छोड़ो, आत्मनिर्भरता से नाता जोड़ो

वर्तमान समय में ऐसा लग रहा है कि हम सब तर्क-वितर्क, गुणा-भाग जोड़-घटाना या हिसाब-किताब और सवाल करना भूल गए हैं, तभी तो किसी ने भी इस दावे पर अभी तक यह सवाल ही नहीं दागा कि 138 करोड़ लोगों के देश में 80 करोड़ गरीब लोगों को अनाज कोरोना महामारी के दौरान दिया गया एवं दिया जा रहा है. जबकि अमेरिका के बाद भारत में सबसे अधिक कृषि योग्य भूमि है. और हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है और यहाँ की 70 प्रतिशत आबादी कृषि कार्य पर ही निर्भर है. यह बात सुन-सुनकर ही भारत का हर बच्चा बड़ा होता है. सवाल यह है कि एक कृषि प्रधान देश में 80 करोड़ लोगों को जो अनाज वितरण किया जा रहा है आखिर यह अनाज आया कहाँ से? इतने अनाज का उत्पादन किसने किया? इतने अनाज को पैदा करने में कोई लागत नहीं आई होगी? और इतने अनाज को कितने लोगों ने पैदा किया होगा? जब हम इन सबका हिसाब-किताब करेंगे तो पता चलेगा कि यह तो हम उन लोगों को ही अनाज वितरण कर रहे हैं जिन्होंने अनाज का उत्पादन किया है. जब 138 करोड़ लोगों में से 80 करोड़ गरीब हैं तो फिर किसान कितने हैं? आँकड़ों की मानें तो भारत में 10 करोड़ किसान हैं. इस हिसाब से 60 करोड़ लोग तो किसान परिवार के ही हैं. तो क्या अनाज पैदा करने वाला भी सरकार पर निर्भर रहेगा? ऐसे में भारत का किसान कैसे आत्मनिर्भर बनेगा और आत्मनिर्भर भारत का सपना कैसे पूरा होगा?

कुछ महीनों बाद कोरोना को पूरे दो साल हो जाएँगे. कोरोना अभी पूरी तरह से गायब नहीं हुआ है और अभी भी 40 हज़ार से ज़्यादा मामले रोज आ रहे हैं एवं 500 से अधिक लोगों की मौतें हो रही हैं. सवाल तो यह है कि हम सबने कोरोना काल से क्या सबक सीखा? क्या हम दूसरी अन्य घटनाओं और आपदाओं की तरह इसे भी भूल गए हैं? जैसी कि हमारी आदत है भूलने की और ऐसी घोर मानवीय नुकसान पहुँचाने वाली आपदाओं से कुछ भी सबक न सीखने की. होना तो यह चाहिए था कि हम ऐसी घटनाओं से सबक सीखकर भविष्य में ऐसे खतरों से बचने की योजना का रोडमैप तैयार करके लोगों को उसके प्रति जागरूक करते. लोगों को अपने और अपने परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य के प्रति सजग करने का प्रयास पूरे देश में करते? परन्तु हम फिर से वही गैरज़िम्मेदारी भरा और स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही का जीवन जीने और पैसे की भागमभाग में लग गए. हमने पिछले दो सालों में क्या खोया-क्या पाया और कोरोना ने हमको क्या सबक सिखाया, यह सब हम इतनी जल्दी भूल चुके हैं. इसका अंदाज़ा आप इसी से लगा सकते हैं कि लोगों की दिनचर्या पहले जैसी ही लापरवाह चल रही है और कोरोना महामारी के मापदण्डों, नियमों और कायदे-कानून को न सिर्फ जनता ठेंगा देखा रही है बल्कि नियम बनाने वाले ज़िम्मेदार भी इन नियमों को ठेंगा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.

यदि हम इन ठोकरों से सबक नहीं सीखेंगे तो कैसे हम आत्मनिर्भर बनेंगे और कैसे ‘आत्मनिर्भर भारत’ का सपना पूरा होगा? वैसे तो भारत एक कृषि प्रधान देश है, फिर भी भारत खाद्य तेल और दालों के लिए छोटे देशों पर निर्भर है. यहाँ हर साल उत्पादन का रिकॉर्ड बनता है. फिर भी हम आयात क्यों करते हैं? फिर आत्मनिर्भरता का क्या मतलब हुआ? हमारे पास इतनी उपजाऊ मिट्टी होने और 10 करोड़ से ज़्यादा किसान होने के बाद भी यदि हम खाद्यान्न आयात कर रहे हैं तो फिर आत्मनिर्भर भारत के सपने को आप भूल ही जाएँ तो अच्छा रहेगा. वैसे भी आत्मनिर्भर बनने के लिए काफी कुछ करना पड़ता है. ऐसे ही मुँहजबानी थोड़ी कोई आत्मनिर्भर बन जाता है.

तो साथियो और किसान भाइयो! ‘आत्मनिर्भर’ कैसे बना जाता है? यह हम आपको बताएँगे और इस पर अमल ज़रूर करना, क्योंकि बिना अमल किए आप आत्मनिर्भर नहीं बन पाएँगे. तो आत्मनिर्भर बनने के लिए सबसे पहले आपको ‘मुफ्त के लालच’ को छोड़ना होगा. जैसे कोई भी सरकार, कंपनी या कोई भी व्यक्ति यदि आपको मुफ्त का प्रलोभन दे तो उसे साफ़-साफ़ इंकार कर दें और उससे प्रश्न करें कि आप क्यों मुफ्त दे रहे हो. साफ-साफ़ मना करें कि हमें नहीं चाहिए कोई भी चीज़ मुफ्त. देना ही है तो दीजिए हमें हमारा हक़, हमारी फसलों का सही दाम दीजिए, हमारी मेहनत का पूरा दाम दीजिए. मुफ्त के लालच में पड़कर आप कभी भी आत्मनिर्भर नहीं बन सकते हैं, इसलिए मुफ्त के लालच को छोड़ ही दीजिए.

आत्मनिर्भर बनने का दूसरा तरीका यह है कि आप अपने आपको और अपनी परिस्थितियों को स्वीकार करें. मान लीजिए कि आप जैसे हैं वैसे ही अच्छे हैं और खुशहाल हैं, अन्यथा आप खुद को मज़बूत और आत्मनिर्भर नहीं बना पाएँगे. यह कभी भी न कहें कि परिस्थितियाँ आपके अनुकूल नहीं हैं. अपनी गलतियों को भूल जाएँ और उनसे सबक लेकर आगे बढ़ें. खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करें, और सबसे ज़रूरी है कि खुद से प्यार करें. किसी की देखा-देखी न करें, अपने पास उपलब्ध संसाधनों से अपने कार्य करें. देखा-देखी फिजूल खर्च न करें.

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किसान ही पेश कर सकता है आत्मनिर्भरता का उदाहरण. किसान की ज़मीन में वह सब पैदा होता है जो हम खाने में, पहनने में, ओढ़ने में, बिछाने में उपयोग करते हैं. हर वो महत्वपूर्ण चीज़ जो हम इस्तेमाल करते हैं वो खेतों से ही निकलती है. और यहीं से आत्मनिर्भरता की मिसाल शुरू होती है. हमारे पूर्वज और अभी के किसानों में बस यही अंतर है कि हमारे पूर्वज ‘आत्मनिर्भर किसान’ थे जबकि आज के किसान दूसरों पर निर्भर ‘पराधीन किसान’ हैं. आज का किसान हर वस्तु के लिए बाज़ार पर निर्भर है और यही उसकी परेशानी और क़र्ज़ में फँसने का सबसे बड़ा कारण है. यदि आज का किसान चाहे तो अभी भी इन जंजालों से मुक्त हो सकता है. करना यह होगा कि हमको हमारे पूर्वजों के तरीकों को अपनाना होगा और उसमें आज के आधुनिक यंत्रों का समावेश करके आप आत्मनिर्भर बन सकते हैं. सबसे पहले तो आपको अपने परिवार के लिए सभी खाद्य सामग्री अपने ही खेत में पैदा करनी होगी. बाज़ार से आप ऐसी कोई भी सामग्री नहीं लाएँगे जो आपके खेत में पैदा हो सकती हो, फिर चाहे वो सब्जी हो, अनाज हो, या दाल हो. ये सब चीज़ें आपको बाज़ार से नहीं लाना है. आपको सभी तरह की फसलें अपने खेत में लगाना है और एकल फसल प्रणाली को छोड़कर पूर्वजों की मिश्रित खेती को अपनाना है, तभी आप आत्मनिर्भर किसान बन पाएँगे.

आत्मनिर्भरता का मतलब होता है कि आपके सामने कैसा भी संकट आ जाए तब भी आपको किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े. तभी तो आप आत्मनिर्भर कहलाएँगे. क्या आप अभी अपने आप को आत्मनिर्भर कह सकते हैं? अभी आप को 6 हज़ार रुपए साल सरकार दे रही है. आपको पहले से क़र्ज़ में होने के बावजूद बैंक से और क़र्ज़ लेना पड़ रहा है. आपको बीज और खाद भी बाज़ार से लेना है. आपको ट्रेक्टर के लिए डीजल भी बाज़ार से लाना है. यहाँ तक कि फसलों की कटाई और निकलाई तक में आप आत्मनिर्भर नहीं हो, इनके लिए भी आपको दूसरे लोगों और मशीनों पर निर्भर होना पड़ता है. परन्तु हमारे पूर्वज इन सब मामलों में हमसे दो कदम आगे थे. वे इन सब मामलों में ‘आत्मनिर्भर’ थे, इसलिए खुशहाल थे. साथियो! देश में मुफ्त चीज़ों की बाढ़ सी आयी हुई है. कोई आपको बिजली मुफ्त दे रहा है, कोई रसोई गैस मुफ्त दे रहा है, कोई पानी मुफ्त दे रहा है, कोई आपको मकान मुफ्त दे रहा है, कोई आपको सालाना नकद दे रहा है, कोई अनाज मुफ्त दे रहा है. पर क्या एक स्वाभिमानी व्यक्ति या आत्मनिर्भर व्यक्ति मुफ्त की चीज़ों को स्वीकार करेगा? कभी नहीं. इसलिए मेरा देश की जनता और किसान भाइयों से यही निवेदन है कि इन मुफ्त की चीज़ों के बदले अपने हक की मांग करें, अपनी मेहनत के सही मूल्य की बात करें, अपने फसल के वाजिब दाम की बात करें. क्योंकि मुफ्त की चीज़ आज तो है पर कल रहेगी या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है. परन्तु एक बार यदि आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान आ गया तो वह हमेशा रहेगा. इसलिए अपने देश और अपने परिवार की आत्मनिर्भरता और खुशहाली के लिए मुफ्त का लालच छोड़ो, आत्मनिर्भरता से नाता जोड़ो.

पवन नगर, संपादक

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