‘कितना निष्ठुर है हमारा समाज!

  • कहानी

    ‘बुआजी’

    ‘बुआजी’ बालकनी में बैठी शुचि सांझ ढलने का इंतज़ार कर रही थी। एफ एम पर रोज़ की तरह गाने चल…

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