संपादकीय

बहुफसली खेती अपनाओ, अधिकतम मूल्य पाओ

पवन नागर

पवन नागर

सरकार के लिए साल 2024 की शुरुआत अच्छी नहीं रही, सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के बिलकिस बानो केस में सभी 11 दोषियों की सज़ा माफी को रद्द करके गुजरात सरकार के फैसले को पलट दिया। वहीं दूसरा फैसला इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को लेकर आया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार दिया। इस स्कीम पर पारदर्शिता को लेकर कई सवाल उठ रहे थे। करीब 6 सालों में इस केस में फैसला आया। इतने महत्वपूर्ण केस में इतना समय लगा फैसला सुनाने में, इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि हमारे देश में समय की कोई कमी नहीं है। भले ही हमारे देश में 80 करोड़ लोगों को सरकार अनाज मुफ्त दे रही है, परंतु ऐसा लगता है कि पूरे विश्व में ‘समय’ के मामले में सबसे धनी देशों में हमारा नंबर पहला है।

तीसरा फैसला चंडीगढ़ के मेयर चुनाव को लेकर आया है। इस केस में तो सीधा-सीधा लोकतंत्र पर ही हमला बोल दिया और सिर्फ 36 वोट के मामले को सुप्रीम कोर्ट को सुनना पड़ा। शीर्ष अदालत ने सुनवाई करते हुए पाया कि पीठासीन अधिकारी ने आठ मतपत्रों को गलत तरीके से अवैध ठहराया था। वे सभी मत सही थे। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला करते हुए आम आदमी पार्टी के पार्षद कुलदीप कुमार को चंडीगढ़ का मेयर घोषित कर दिया।

बिलकिस बानो, इलेक्टोरल बॉन्ड और चंडीगढ़ चुनाव पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बाद पिछले दस सालों में सरकार द्वारा करोड़ों रुपये खर्च करके जो छवि बनाई गई थी वो काफी धूमिल हो गई है, और सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि अब तक इन तीनों मामलों में सरकार की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है जिसमें सरकार अपनी गलती माने।

सरकार के लिए परेशानी का एक और मामला 2024 में आ गया है। किसानों ने एमएसपी के कानून के लिए किसान आंदोलन-2 शुरू कर दिया है। किसान अपनी माँगों को लेकर दिल्ली जाना चाहते हैं, परंतु सरकार ने दिल्ली की सीमा पर बेरीकेड्स और कीलों से रास्ता रोक दिया है। सूत्रों की मानें तो अभी तक इस आंदोलन में एक युवा किसान की मौत हो चुकी है। सरकार और किसान नेताओं के बीच अभी तक जितनी भी वार्ता हुई है, उसका कोई नतीजा नहीं निकला है। सीमाओं पर भारी सुरक्षा बल तैनात है और यह बंदोबस्त देखकर लगता है कि सरकार किसानों को दिल्ली में प्रवेश करने नहीं देगी। इधर सरकार आंदोलित किसानों पर आंसू गैस के गोले बरसा रही है, वहीं दूसरी ओर मौसम ने भी अपने तेवर सरकार की तरह सख्त कर दिए हैं। मार्च में भी ओले, आँधी और तेज़ बारिश का प्रकोप देखने को मिल रहा है। कई राज्यों में भारी बारिश और ओलावृष्टि ने किसानों की खड़ी फसल को काफी नुकसान पहुँचाया है और मौसम विभाग के अनुसार अभी आगे भी मौसम के तेवर यूँ ही सख्त बने रहने की संभावना है।

भले ही किसानों को एमएसपी का कानून न मिले, भले ही खराब हुईं फसलों का क्लेम न मिले, परंतु किसानों को सरकार और मौसम की मार मिलना तय है। किसानों पर दोहरी मार पडऩे की परंपरा पुरानी है। एक तो फसलों के सही दाम नहीं मिलते हैं और ऊपर से अब तो लगभग हर साल ही मौसम की मार किसानों को झेलनी पड़ रही है।

देश में महँगाई का बोलबाला है परंतु किसानों की फसलों के दाम वैसे नहीं बढ़ते हैं जैसे सरकारी कर्मचारियों के महँगाई भत्ते और सैलरी बढ़ती है, देश के माननीय सांसदों और विधायकों की जैसे सैलरी बढ़ती है वैसे किसानों की फसलों के दाम क्यों नहीं बढ़ते? आखिर देश के करोड़ों लोगों का पेट और व्यापारियों के वेयरहाऊस भरने वाले किसानों को अपनी उपज का दाम मिलने में इतनी परेशानी क्यों है? क्या कारण है कि सरकार इनको ‘मिनिमम सपोर्ट प्राईस’ (एमएसपी) भी नहीं दे पा रही है? एक तरफ तो सरकार कह रही है कि किसानों की आमदनी दुगुनी हो गई है, साथ ही किसानों को 6000 रुपये सालाना सम्मान निधि दी जा रही है।

जब सरकार को किसानों की इतनी ही चिंता है तो फिर स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट अनुसार एमएसपी पर ‘सी-2+ 50%’ फॉर्मूले से एमएसपी क्यों नहीं दे देती है? यदि इस हिसाब से किसानों को अपनी फसल के दाम मिलने लगेंगे तो किसानों को 6000 रुपये सालाना सम्मान निधि की ज़रूरत ही नहीं पड़़ेगी। स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार को एमएसपी को उत्पादन की औसत लागत से कम से कम 50% अधिक बढ़ाना चाहिए। इसे ”सी-2+ 50%’ फॉर्मूले के नाम से भी जाना जाता है। इस फॉर्मूले में किसानों को 50% रिटर्न देने के लिए पूंजी की अनुमानित लागत और भूमि का किराया (जिसे सी-2 कहा जाता है) शामिल है।

यदि सरकार चौधरी चरण सिंह जी और स्वामीनाथन जी को भारत रत्न दे सकती है तो फिर किसानों को उनकी रिपोर्ट के अनुसार एमएसपी क्यों नहीं दे सकती है? और आश्चर्य की बात तो यह है कि चुनाव के समय में भी सरकार की तरफ से कोई नरमी नहीं बरती जा रही है। इस बार के चुनावी अंतरिम बजट में सभी वर्गों एवं किसानों को बड़ी उम्मीद थी, परंतु किसी को भी कुछ हाथ नहीं लगा। उल्टा कृषि बजट में कटौती कर दी गई है। प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने हेतु बजट में कोई प्रावधान नहीं है।

प्रश्र उठता है कि देश के किसानों के हालात में कैसे सुधार आएगा? एक तरफ किसानों की लागत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है परंतु लागत के अनुपात में फसलों के दाम नहीं मिल रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ मौसम के कारण फसलों को जो नुकसान होता है उसका मुआवज़ा और बीमा भी समय पर नहीं मिलता है। किसानों की परेशानी कम होने का कोई रास्ता नहीं निकलता दिख रहा है।

यदि सरकार वाकई किसानों की चिंता करती है तो उसे किसानों को स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार एमएसपी देना चाहिए, जिससे किसानों को उनकी फसल के सही दाम मिलें। किसानों को बीमा तथा मुआवजा समय पर मिलें इसके लिए भी ठोस कदम उठाना चाहिए। दृढ़ निश्चय, ईमानदारी और सही नीयत के साथ यदि काम किया जाएगा तो इस कार्य को करने में कोई कठिनाई नहीं है।

दूसरी ओर किसानों को भी प्रयास करना चाहिए कि वे एकल फसल पद्धति छोड़कर अन्य फसलों का भी रकबा बढ़ाएँ ताकि उत्पादन को नियंत्रित करके फसलों के सही दाम लिए जा सकें। इसे हम एक उदाहरण से समझते हैं। मान लेते हैं कि एक 5 एकड़ का किसान वर्तमान में रवि सीज़न में गेंहूँ की फसल से 100 क्विंटल उत्पादन लेता है, जबकि खरीफ सीज़न में धान लगाकर 75 क्विंटल उत्पादन लेता है।

तो दोनों फसलों से किसान को 175 क्विंटल उत्पादन प्राप्त हुआ। अब किसान के पास स्टोरेज की व्यवस्था नहीं है, इसलिए यह माल बेचना उसकी मजबूरी हो जाएगी। यदि किसान इस 5 एकड़ में रवि सीजऩ में सरसों, चना, मसूर, अलसी, जौ, धनिया इत्यादि फसलों का रकबा बढ़ा दे और गेंहूँ सिर्फ एक एकड़ में लगाए तो उसको सिर्फ 20 क्विंटल गेंहूँ मिलेगा। बाकी 4 एकड़ में दूसरी फसलों से उसे उसकी ज़रूरत का सामान भी मिलेगा और गेंहूँ की अपेक्षा अधिक दाम भी मिलेगा, खर्च भी कम होगा, और मजबूरी में बेचने की समस्या से भी निजात मिलेगी क्योंकि आपने हर फसल का सीमित उत्पादन लिया है जिसे आप साल भर अपने हिसाब से बेच सकते हैं।

इन फसलों के अलावा भी बहुत सारी फसलें हैं जिन्हें आप अपने खेत में लगा सकते हैं। कुल मिलाकर, यदि आप अधिक से अधिक फसलें अपने खेत में उत्पादित करेंगे तो आपको सरकारों और व्यापारियों के आगे हाथ फैलाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। 2 एकड़ से लेकर 15 एकड़ वाले छोटे किसान यह कर सकते हैं कि वे अपनी ज़मीन में अपनी ज़रूरत की सभी चीज़ों का थोड़ा-थोड़ा उत्पादन लें और सीधे ग्राहकों को बेचें।

सरकार और व्यापारियों के भरोसे खेती न करें बल्कि अपने ग्राहकों के भरोसे खेती करें। सरकार चाहे आपको एमएसपी की गारंटी न दे परंतु यदि आप अपने ग्राहकों को भरोसे की गारंटी देने में कामयाब हो गए तो आपको कर्ज से भी मुक्ति मिलेगी और मंडियों के चक्करों से भी। काम कोई ज़्यादा कठिन नहीं है, बस अपनी पढ़ाई-लिखाई का इस्तेमाल करके योजनाबद्ध तरीके से काम करने से इस समस्या का हल निकल आएगा।

यदि आपको अपनी खेती की ज़मीन को बचाना है तो आपको ही प्रयास करना होगा। चुनावी घोषणाओं की गारंटी और मौसम का कोई भरोसा नहीं है, इसलिए मुगालते में न रहें, खुद ही को ही प्रयास करना है। किसानों की एकजुटता और बहुफसली प्रणाली ही आपकी समस्या का समाधान है। गेंहूँ और धान के अधिकाधिक उत्पादन से समस्या और विकराल हो जाएगी, इसलिए समय रहते इन फसलों का रकबा कम करते जाएँ और अन्य फसलों का रकबा बढ़ाते जाएँ। पहले अपने परिवार का पेट भरने के बारे में सोचें, न कि सरकार और व्यापारियों के वेयरहाउस भरने का। इसी तरीके से जलवायु तथा मौसम में हो रहे बदलाव के प्रति अनुकूलित हुआ जा सकता है।

पवन नागर
संपादक

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