खेती-बाड़ी

मिट्टी सुधार क्यों ज़रूरी है?

याद रखिए – “मिट्टी बचेगी, तो खेती बचेगी और खेती बचेगी तो किसान बचेगा।”

भारत की खेती सदियों से मिट्टी की ताकत पर टिकी हुई है। किसान का पसीना और मिट्टी की उर्वरता मिलकर ही अन्न पैदा करते हैं। लेकिन पिछले कुछ दशकों में हमारी मिट्टी की हालत कमजोर होती जा रही है। यह कमजोरी अगर समय रहते ठीक न की गई, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए खेती करना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए आज हर किसान के लिए सबसे बड़ा काम है – मिट्टी को सुधारना और सँभालना।

मिट्टी कमजोर क्यों हो रही है?

पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश या मध्य भारत के किसान हों – सभी एक जैसी समस्याएँ झेल रहे हैं।

  1. रासायनिक खाद का अधिक इस्तेमाल – शुरू में यूरिया और डीएपी से पैदावार बढ़ी, लेकिन धीरे-धीरे मिट्टी में जैविक तत्व (ह्यूमस) कम हो गए।
  2. एक ही फसल बार-बार – धान-गेहूँ के चक्र ने मिट्टी से वही पोषक तत्व खींचे जो दो फसलों को चाहिए। इससे जमीन का संतुलन बिगड़ गया।
  3. भूजल का अंधाधुंध उपयोग – लगातार ट्यूबवेल से पानी निकालने के कारण मिट्टी की नमी और उसकी प्राकृतिक बनावट बिगड़ गई।
  4. जैविक जीवन का नाश – कीटनाशकों के कारण केंचुए, लाभकारी कीड़े और सूक्ष्म जीव नष्ट हो गए। यही जीव मिट्टी को हवा देते और उपजाऊ बनाते हैं।

मिट्टी सुधार क्यों ज़रूरी है?

  • उपजाऊ ताकत वापस लाने के लिए – अगर मिट्टी में ह्यूमस और जीवाणु होंगे, तभी पौधों को पोषण मिलेगा।
  • पानी बचाने के लिए– सुधरी मिट्टी नमी रोककर रखती है। इससे कम सिंचाई में भी फसल अच्छी होती है।
  • फसल को रोग-मुक्त बनाने के लिए – स्वस्थ मिट्टी में पैदा हुए पौधे मजबूत होते हैं और उन पर रोग-कीट कम लगते हैं।
  • खेती को सस्ती बनाने के लिए– जब मिट्टी में खुद पोषण होगा तो बाहर से महँगी खाद-दवा लाने की जरूरत घटेगी।
  • आने वाली पीढ़ियों की खेती बचाने के लिए – अगर अभी मिट्टी सुधारी तो आने वाले समय में हमारे बेटे-बेटियाँ भी इसी जमीन पर खेती कर सकेंगे।

मिट्टी सुधार के तरीके

1.    जैविक खाद का उपयोग– गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद और जीवामृत जैसी चीजें डालें।

2.    फसल चक्र अपनाएँ – गेहूँ-धान के साथ दालें, सरसों या सब्जियाँ बोएँ। इससे मिट्टी में अलग-अलग पोषण तत्व लौटते हैं।

3.    मिट्टी ढककर रखें– खाली खेत में घास या ढकने वाली फसल (cover crop) उगाएँ ताकि धूप और बारिश से मिट्टी का नुकसान न हो।

4.    रासायनिक खाद धीरे-धीरे कम करें – एकदम बंद करने की बजाय जैविक और प्राकृतिक विकल्पों को मिलाकर चलें।

5.  मिट्टी की जाँच कराएँ–समय-समय पर सोइल टेस्ट कराएँ और जो पोषक तत्व कम हों, उन्हें ही डालें।

किसान और उपभोक्ता दोनों को लाभ

सुधरी मिट्टी से निकली फसल ज्यादा पौष्टिक होती है। इसे खाने से लोगों का स्वास्थ्य बेहतर होता है। ऐसे अन्न और सब्जियाँ बाज़ार में भी ज्यादा दाम पर बिकती हैं। यानी इससे किसान और उपभोक्ता – दोनों का फायदा होता है।

मिट्टी ही खेती की असली पूँजी है। अगर मिट्टी कमजोर होगी तो किसान चाहे कितनी मेहनत कर ले, अच्छी पैदावार नहीं होगी। इसलिए हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि पहले अपनी मिट्टी को सुधारेंगे, तभी खेती और किसान दोनों सुधरेंगे।

याद रखिए – “मिट्टी बचेगी, तो खेती बचेगी और खेती बचेगी तो किसान बचेगा।”

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