संपादकीय

एक तो मूलभूत सुविधाओं का अभाव
दूजा मिलता नहीं फसलों का सही भाव

वैसे तो जनता की याद्दाश्त कमज़ोर ही है, फिर भी याद दिला देता हूँ कि कोरोना काल के दौरान जो लॉकडाउन लगा था उस समय सभी उद्योगों की विकास दर नकारात्मक थी, बस कृषि ही एक ऐसा क्षेत्र था जिसकी विकास दर सकारात्मक और सबसे ज़्यादा थी। वो भी तब जब देश के किसानों के पास मूलभूत सुविधाओं, मसलन खेतों तक पक्की सड़क का न होना, 24 घंटे बिजली का न होना, बिजली संबंधी शिकायतों का समय पर निवारण न होना, खाद की आपूर्ति का अभाव, फसलों का उचित दाम न मिलना, बहुत से क्षेत्रों में सिंचाई की व्यवस्था का न होना इत्यादि का अभाव है। बावजूद इसके यदि कृषि क्षेत्र में विपरीत समय के दौरान भी सकारात्मक विकास हुआ तो आप सोचिए कि किसानों को मूलभूत सुविधाएँ मिल जाने पर कृषि क्षेत्र की विकास दर में कितना इज़ाफा होगा।

अभी हमने आज़ादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर आज़ादी का ‘अमृत महोत्सव’ मनाया है। तो प्रश्र यह आता है कि आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी हमारे देश का किसान मूलभूत सुविधाओं से वंचित क्यों है? किसानों को यदि सड़क, अबाध बिजली आपूर्ति और फसलों के दाम जैसी सुविधाएँ मिल जाएँ तो किसानों की बहुत सारी समस्याएँ खत्म हो जाएँगी, साथ ही देश की विकास दर में कृषि क्षेत्र का प्रतिशत भी बढ़ेगा।

मूलभूत सुविधाओं में पहले नंबर पर सड़क है। देश के लगभग हर राज्य में किसानों के पास अपने खेतों तक पक्के पहुँच मार्ग नहीं हैं। इससे सबसे ज़्यादा परेशानी बारिश के मौसम में आती है जब वाहन खेत तक पहुँच ही नहीं पाते हैं, जिससे कृषि कार्य करने में कठिनाई होती है। रास्ते न होने के कारण किसानों में आपसी झगड़े भी होते हैं जिनके निराकरण की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है।

मूलभूत सुविधाओं में दूसरे नंबर पर है बिजली। देश के किसी राज्य में प्रतिदिन 10 घंटे बिजली मिल रही है तो किसी राज्य में 12 घंटे। अधिकतर राज्यों में किसानों को दो किश्तों में बिजली दी जाती है। मध्यप्रदेश में अभी दो किश्तों में 10 घंटे बिजली मिल रही है – पहली किश्त दिन के समय में 6 घंटे और दूसरी किश्त रात के समय में 4 घंटे। कई किसानों से बात करने पर किसानो ने बताया कि बिजली 9 घंटे ही मिल रही है, परंतु शासन 10 घंटे बिजली देने की बात कह रहा है। इस प्रकार 1 घंटा बिजली कम मिल रही है। और इस दौरान कभी-कभी फेस उड़ जाने या कोई और फॉल्ट हो जाने के कारण बिजली जब 2-3 घंटे बंद रहती है तो उसकी भरपाई भी नहीं की जाती है और बिजली अपने समय से ही जाती और आती है।

परंतु कुछ किसान ऐसे भी हैं जो 24 घंटे बिजली का फायदा ले रहे हैं, बिजली विभाग उन्हें 35,000 रुपये में 120 दिन के लिए 24 घंटे बिजली उपलब्ध करा रहा है, जिसके कारण इन किसानों का काम समय से पूरा हो जाता है। इससे उन्हें उत्पादन भी अच्छा मिलता है और समय की भी बचत होती है। निरंतर बिजली मिलने से किसान के खेत में पानी समय से पूरा हो जाता है, जबकि किश्त में बिजली मिलने से पानी अधिक दिनों में होता है जिससे उत्पादन पर असर पड़ता है।

जिन किसानों के पास पैसा है उन्हें 24 घंटे बिजली मिल रही है इससे यह तो साबित होता है कि बिजली की कमी तो नहीं है, हाँ नियत की कमी ज़रूर है जो सभी किसानों को 24 घंटे बिजली दिलाने से रोक रही है। यदि किसानों को 18 घंटे निरंतर बिजली मिल जाए तो न सिर्फ किसानों का उत्पादन बढ़ेगा बल्कि किसानों का समय भी बचेगा और किसान अपने खेत में अधिक कार्य कर सकेगा।

यदि ट्यूबवेल में अच्छा पानी है तो लगभग 12 घंटे में आधे एकड़ में पानी हो पाता है, यानि 24 घंटे में एक एकड़ ज़मीन में पानी हो पाएगा। यदि 10 घंटे किश्तों में बिजली मिल रही है तो एक एकड़ के लिए 3 दिन चाहिए। यानि 24 घंटे निरंतर बिजली मिलने से 2 दिन का समय भी बचेगा और पानी भी फसल को समय से लगेगा। भला ऐसा कौन किसान होगा जो पानी हो जाने के बाद भी मोटर चालू रखेगा? यदि निरंतर बिजली दी जाए तो न केवल शासन की बिजली की बचत होगी बल्कि शासन का रेवेन्यु भी बढ़ेगा और किसानों का काम समय से पूरा होगा, जिससे उत्पादन पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

कैसे मिले किसानों को निरंतर बिजली?

वैसे तो मध्यप्रदेश में अब बिजली की कमी नहीं है क्योंकि अब मध्यप्रदेश में गाँवों, शहरों और उद्योगों को 24 घंटे बिजली मिल रही है, सिवाए किसानों को छोड़कर। किसानों को निरंतर बिजली देने का एक फार्मूला यह हो सकता है :

यदि हम बात करें खरीफ सीज़न की (जुलाई-अगस्त-सितम्बर-अक्टूबर), यानि कि बारिश के मौसम की तो उस समय बिजली एवं पानी की खपत और ज़रूरत बहुत ही कम हो जाती है, इसलिए इस समय 24 घंटे बिजली की आवश्यकता नहीं रहती है। तो इस समय जो बिजली की बचत हो रही है उसे रवि सीज़न (नवम्बर-दिसम्बर-जनवरी-फरवरी) में किसानों को बिजली के घंटे बढ़ाकर देना चाहिए क्योंकि रवि सीज़न में पानी की ज़्यादा ज़रूरत रहती है। रवि सीजन में शासन चाहे तो किसानों को 20 घंटे निरंतर बिजली की आपूर्ति कर सकता है जिससे किसानों का पानी समय से पूरा होगा।

अब अगर बात करें गर्मी के महीनों की, तो मार्च-अप्रैल-मई-जून के महीनों में किसानी को बिजली की खपत कम हो जाती है। अधिकतर किसान इन महीनों में कोई फसल नहीं लेते हैं (कुछेक किसान ही हैं जो मूँग की फसल लेते हैं)। इन महीनों में भी किसानों को 12 घंटे निरंतर बिजली देने की रूपरेखा शासन बना सकता है।

वर्तमान में किसानों को बिजली आपूर्ति की स्थिति:

                  समय (प्रति दिन)      दिन         कुल घंटे

                  10 घंटे (खरीफ  में)    123 दिन     1230

                  10 घंटे (रबी में)       122 दिन     1220

                  10 घंटे (गर्मी में)      120 दिन     1200

                                                                                            कुल: 3650 घंटे

आवश्यकतानुसार किसानों को निरंतर बिजली आपूर्ति कैसी होना चाहिए:

                  समय (प्रति दिन)      दिन         कुल घंटे 

                  10 घंटे (खरीफ  में)    123 दिन     1230

                  20 घंटे (रबी में)       122 दिन     2440

                  12 घंटे (गर्मी में)      120 दिन     1440

                                                                                            कुल: 5110  घंटे

यदि किसानों को 1460 घंटे अतिरिक्त बिजली देने से किसानी कार्य सुचारू रूप से चल सकता है तो इतने अतिरिक्त घंटे तो प्रदान करना ही चाहिए। जहाँ एक तरफ  गाँवों और शहरों में 24 घंटे बिजली सिर्फ इसलिए प्रदान की जा रही है ताकि आमजन सुख-सुविधाओं को इस्तेमाल कर सकें, वहीं दूसरी ओर किसानों को काम करने लायक भी निरंतर बिजली नहीं मिल पा रही, जबकि हमारे पास बिजली आवश्यकता से अधिक है, तो यह तो बड़ी ही सोचनीय बात है। किसानों को भी निरंतर और पर्याप्त बिजली दी जा सकती है बशर्ते देने की नियत और दृढ़ निश्चय हो। वैसे किसान को निरंतर 18 घंटे बिजली मिलना चाहिए ताकि वह खेत पर निरंतर कार्य कर सके और समय से फसलों को पानी दे सकें।

तीसरी सबसे बड़ी समस्या है फसलों के दाम न मिलना। अभी एमएसपी की घोषणा तो होती पर गेंहू और धान के अलावा अन्य किसी भी फसल की सरकारी खरीद एमएसपी पर हो ही नहीं रही है। कहीं-कहीं चने और मूंग की खरीद शुरू हुई है, परंतु उसमें गेंहू और धान की खरीद जैसी सफलता नहीं मिली है, और बाकी की फसलों को तो किसानों को एमएसपी से भी कम दामों पर बेचना पड़ता है। ज्वार, बाजरा, मक्का, मसूर, उड़द, सोयाबीन, सरसों इत्यादि फसलों की सरकारी खरीद की कोई व्यवस्था नहीं है और मंडियों में व्यापारी भी अपनी मनमर्जी से इनके भाव तय करते हैं, जिसके चलते किसानों को एमएसपी के बराबर भी दाम नहीं मिलते हैं।

किसानों को इतनी विपरीत परिस्थितियों में काम करने के बाद भी यदि फसल के दाम सही न मिलें तो निराशा तो होगी ही, साथ ही परिवार के भरण-पोषण में भी परेशानी होगी। यदि देश के किसान ही परेशान रहेंगे तो फिर देश की अर्थव्यवस्था भी कैसे संभलेगी जो कि कृषि क्षेत्र पर ही आधारित है। यह अलग बात है कि देश के नीति-निर्धारकों को यह दिखता नहीं है कि देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर ही टिकी है, इसलिए इनको कृषि क्षेत्र का इतना ध्यान नहीं रहता जितना ध्यान उद्योगों को स्थापित करने पर रहता है। यही वजह है कि उद्योगों को जो मूलभूत सुविधाएँ बड़ी आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं, वहीं किसानों को उनके लिए तरसना पड़ता है। हमारा यही कहना है कि किसानों को कम से कम उनकी फसलों का दाम तो सरकार द्वारा निर्धारित किए गए मूल्य के बराबर मिले। इसके लिए शासन को पुख्ता कदम उठाने की ज़रूरत है।

यहाँ किसानों को भी यह बात ध्यान रखना चाहिए कि उन्हें खुद आत्मनिर्भर होना है। हम सब एकजुट होकर भी अपने खेत तक पहुँच मार्ग की व्यवस्था कर सकते हैं। जैसे आप मंदिर बनाने के लिए चंदा एकत्रित करते हैं, वैसे ही अपने खेत तक सड़क बनाने हेतु चंदा एकत्रित करके सड़क बना सकते हैं और शासन की मदद भी ले सकते हैं। दूसरी बात यह कि पानी के मामले में भी आपको आत्मनिर्भर ही होना पड़ेगा, इसलिए आपको अपने खेतों में कुँए, तालाब आदि बनाना चाहिए। अभी आपको पानी के लिए बिजली हेतु शासन पर निर्भर रहना पड़ता है, इसलिए आपको बिजली और पानी के वैकल्पिक रास्ते अपनाने चाहिए, जैसे कि सोलर पैनल, कुँए, तालाब इत्यादि। और फसलों के उचित दाम मिलें इसके लिए आपको अधिक से अधिक तरह की फसलें लगानी होंगी। अभी आप एकल फसल का उत्पादन कर रहे हैं जिससे उत्पादन अधिक हो रहा है, और इसी अधिक उत्पादन के कारण आपको फसलों के उचित दाम नहीं मिल रहे हैं। इसलिए किसी भी एक फसल का ढेर न लगाकर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कई सारी फसलें उपजाईये ताकि आपको सभी फसलों के उचित दाम मिल सकें।

यदि किसानों को सड़क, निरंतर बिजली (18 घंटे) और फसलों के उचित दाम मिलने की व्यवस्था हो तो हमारा किसान भी समृद्ध हो सकता है, और यदि किसान समृद्ध होगा तो प्रदेश भी समृद्ध होगा और देश भी समृद्ध होगा। इसी कामना के साथ आप सबको आने वाले गणतंत्र दिवस की ढ़ेरों शुभकामनाएँ।

पवन नागर,
संपादक

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