संपादकीय

‘बचे हुए’ को आग न लगाओ, वरना कुछ न बचेगा…

अभी हाल ही में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ‘मन की बात’ में किसानों से कहा कि वे कटाई के बाद बचे फसलों के अवशेषों को जलाने की बजाए उनका खाद के रूप में इस्तेमाल करें। अब जबकि प्रधानमंत्री जी को इस बात का जि़क्र करना पड़ा है तो इसी बात से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि यह समस्या कितनी गंभीर है और किसान भाइयों द्वारा इस बात पर ध्यान दिए जाने और अमल करने की कितनी सख्त ज़रूरत है।

सरकार की ओर से भरसक प्रयास किये जा रहे हैं इस बात के कि किसान जागरूक हो जाये, परंतु किसान है कि बिल्कुल भी टस से मस होने को तैयार नहीं है। सरकार द्वारा विभिन्न संचार माध्यमों -अखबार, रेडियो, टीवी आदि- के ज़रिये लगातार इस मामले में जागरूकता पैदा करने की कोशिश कर रही है कि फसल के बचे हुए अवशेषों को जलाने की गलती न की जाए, बल्कि उसे खाद के रूप में इस्तेमाल करके मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाई जाए। साथ ही किसान सम्मेलनों और सेमिनारों के माध्यम से भी कृषि विशेषज्ञों तथा कृषि मित्रों द्वारा अवशेषों में आग लगाने से होने वाले नुकसान के बारे में विस्तृत जानकारी दी जा रही है। फिर भी किसान अपनी फसल के बचे हुये अवशेषों को जलाने से गुरेज नहीं कर रहा। किसी की समझ में नहीं आ रहा कि आखिर किसान अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने पर क्यों तुला हुआ है।

खेतों में फसलों के बचे अवशेषों को जलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति तो कम होती ही है, साथ में उसकी भौतिक सरंचना को भी काफी नुकसान होता है। साथ ही मिट्टी में उपस्थित मिट्टी के सहायक कीटों को भी नुकसान होता है और वे आग लगने के कारण अधिक गहराई में चले जाते हैं, जिससे उन कीटों द्वारा की जाने वाली क्रियाओं का लाभ फसल को नहीं मिल पाता और मिट्टी की उर्वरा शक्ति क्षीण हो जाती है। तब फिर किसान अधिक से अधिक रसायनिक खाद डालना शुरू कर देता है, जो कि भूमि और मानव स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है। मिट्टी में उपस्थित कीटों में केंचुओं को सबसे लाभदायक माना जाता है जिनके द्वारा की जाने वाली क्रियाओं के कारण मिट्टी नर्म हो जाती है, उसमें हवा का संचार सही तरह से होता है और फसल को प्राकृतिक ऑक्सीजन व नाइट्रोजन इत्यादि गैसें मिलती रहती है। किसान भाई ध्यान रखें कि आग लगाने से केंचुओं जैसे कई महत्वपूर्ण जीव मिट्टी में गहरे चले जाते हैं और इन जीवों द्वारा की जाने वाली क्रियाओं का लाभ मिट्टी को नहीं मिल पाता है। जिसका असर फसल के उत्पादन पर पड़ता है।

आग लगने से पैदा हुईं हानिकारक गैसों से सभी प्राणियों को सांस लेने में मुश्किल होती है और वातावरण भी प्रदूषित हो जाता है। कुल मिलाकर फसलों के अवशेषों में आग लगाना किसी भी प्रकार से किसानों के और खेतों के हित में नहीं है यह बात किसान भाइयों को समझना होगी। उन्हें समझना होगा कि इस विनाशकारी परंपरा पर रोक लगाना उनके अपने हित में है, क्योंकि अगर वातावरण शुद्ध होगा तो मौसम चक्र में जो गड़बडिय़ाँ देखने को मिल रही हैं इन दिनों वे नहीं होंगी; मिट्टी में उपस्थित कीट बचे रहेंगे तो मिट्टी की उर्वरा शक्ति अपने आप बरकरार रहेगी, जिससे किसानों की रसायनिक खादों पर निर्भरता कम हो जाएगी और उनका ढ़ेर सारा पैसा तथा लोगों का स्वास्थ्य बच जाएगा।

अत: किसान भाइयों से अनुरोध है कि वे फसलों के अवशेषों में आग न लगायें बल्कि इन अवशेषों का खाद के रूप में अच्छी तरह इस्तेमाल करें। ये अवशेष मिट्टी के लिए बहुत लाभदायक हैं।
पवन नागर, संपादक

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