साक्षात्कार

मिश्रित खेती से कमाते हैं साल के 40 लाख; किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बने भंवरलाल

जैविक खेती, बागवानी, प्रोसेसिंग और पशुपालन से भंवरलाल बगडिय़ा ने कमाया नाम

कहा जाता है कि खेती को यदि जुनून के साथ किया जाए तो इससे बेहतर कोई कार्य हो  नहीं सकता। आए दिन हम खेती में आने वाली परेशानियों के बारे में सुनते पढ़ते हैं। यह भी सुनने देखने में आता है कि कुछ किसानों द्वारा सबसे ज्यादा मेहनत के इस कार्य में सफलता के नित नए कीर्तिमान रचे गए हैं। यदि किसान परेशानियों के आगे हार न मानते हुए डटे रहें तो एक दिन थक हारकर कामयाबी को भी उनके आगे नतमस्तक होना पड़ता है।

प्रस्तुत सफलता की कहानी भी इसी ओर इशारा करती है।
प्रगतिशील किसान भंवरलाल बगडिय़ा आज 54 साल के हैं। राजस्थान के सीकर जिले के सरवड़ी गांव में रहते हैं और यहीं खेती करते हैं। वे आज जैविक खेती, पशुपालन और फूड प्रोसेसिंग के लिए जाने जाते हैं। इसी खेती से साल के 35 से 40 लाख रूपए कमाते हैं। आसपास के किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत और मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाते हैं, पर उनकी शुरुआती कहानी बहुत तकलीफों भरी रही। उनकी प्रेरक कहानी को उन्हीं के शब्दों में सुनते हैं-

”मैं भंवरलाल सीकर के सरवड़ी का रहने वाला एक साधारण लेकिन प्रगतिशील किसान हूं। मैं पिछले 40 सालों से खेती से जुड़ा हूं। मुझे अपने आप को किसान कहने में बड़ी खुशी होती है। 2010 से पूर्णतया जैविक खेती कर रहा हूं, इस दौरान मैंने अपनी खेती में किसी भी तरह का कोई भी रसायन या जहर काम में नहीं लिया।

एक किसान के तौर पर शुरु से मेरी सोच रही कि जिस कार्य से हमारे पेट पलते हैं, वहां थोड़े से मुनाफे की खातिर हजारों जिंदगियों से खिलवाड़ करना उचित नहीं। हम पेशे से किसान हैं और हमें अन्नदाता कहा जाता है। ईश्वर के बाद यदि कुछ लोगों पर सबसे ज्यादा भरोसा किया जाता है तो उनमें किसान और चिकित्सक आते हैं।

यदि लोगों द्वारा हम पर इतना भरोसा किया जाता है तो हम जरा से लाभ की खातिर, रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कर न सिर्फ उनकी सेहत के साथ बल्कि हमारी आने वाली पीढिय़ों की सेहत के साथ भी खिलवाड़ करते हैं। ऐसा घिनोना कार्य करने का हमें कोई हक़ नहीं!

हां यह बात जरूर है कि ऑर्गेनिक खेती की शुरुआत के पहले 2-3 सालों तक मैं समस्याओं से घिरा रहा, लेकिन अब हालात सामान्य हैं,  जैविक खेती की बराबरी नहीं की जा सकती।’’

खेत ही में लगाया केंचुआ खाद का प्लांट…
मैंने खाद के लिए केंचुआ खाद का प्लांट अपने खेत में लगा रखा है, इसी खाद को मैं पूरे खेत में छिड़क कर खेती करता हूं। अपने खेत के अपशिष्ट, पशुओं के गोबर के अलावा नीम की पत्तियों, पेड़ पौधों के पत्ते वगैरह भी खाद बनने के लिए डाल देता हूं। केंचुआ यूनिट का धूप से ख्याल रखना होता है, ताकि केंचुए मरें नहीं। समय-समय पर उन्हें थोड़ा-थोड़ा पानी देते रहना चाहिए।

बागवानी में आज़माई किस्मत…
बातचीत के दौरान वे बताते हैं,”मैंने परंपरागत खेती के अलावा बागवानी में भी अपनी किस्मत आज़माई। मुझे यह कहते हुए प्रसन्नता होती है कि मैं बागवानी में भी कामयाब रहा। मैंने अब तक बेलपत्र, नींबू, आंवला, अमरुद, चीकू, सेंब बेर आदि के पौधे लगा लगा रखे हैं।’’

आंवले की बंपर उपज ने बदली जि़ंदगी की दिशा…
बातचीत को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं,”मेरे खेत में आंवले के 150 पेड़ हैं। जब मुझे आंवले के पेड़ों से उपज आना शुरू हुई तो शुरुआती दौर में सब ठीक रहा, लेकिन जब उपज को लेकर मंडियों में जाने लगा तो मुझे इसके सही दाम नहीं मिले। मैं इस बात से बड़ा बैचैन रहता था कि आखिर क्यों किसान को उसके खून पसीने से उपजाई फसल के दाम उतने नहीं मिल पाते, जिस अनुपात में उसने मेहनत की है। बिचौलिए कभी भी काश्तकारों को फसलों के सही दाम नहीं मिलने देते हैं। मुझे कभी आंवला के 2 रुपए किलो तो कभी 1 रुपए किलो का भाव बताया जाता।

मैं डीडवाना, सीकर, लोसल,  कुचामनसिटी की मंडियों में घूम घूमकर परेशान हो चुका था। कहीं भी भाव की गई मेहनत के बराबर नहीं मिल रहे थे, मन करता था कि बगीचे के सारे आंवले उखाड़कर फेंक दूं!

फिर ख्याल आया कि मैंने उखाड़कर फेंकने के लिए तो इस बगीचे को पाल पोसकर बड़ा नहीं किया? मैंने सोचा अपने खून पसीने से उपजाई आंवले की इस फसल को कौडिय़ों के भाव क्यों बेचूं?

क्यों ना मैं आंवले की प्रोसेसिंग और मूल्य संवर्धन कर अपनी आय में बढ़ोतरी करुं? मुझे इस बात की भी ख़ुशी है कि उस वक्त लिया गया मेरा यह फैसला आज कारगर साबित हुआ।’’

राकेश चौधरी ने फरिश्ता बन बदली जि़ंदगी…
कुचामनसिटी, राजपुरा गांव के राष्ट्रीय ख्याति अर्जित किसान राकेश कुमार चौधरी ने उस वक्त मुझे बड़ा मनोबल प्रदान किया। उन्होंने मुझे प्रोसेसिंग और वैल्यू एडिशन करते हुए अपनी आय बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया। आज मेरी जिंदगी पर चौधरी जी का बड़ा अहसान है, जिसे कभी उतारा नहीं जा सकता। उस वक्त उन्होंने मुझे आंवला की प्रोसेसिंग से जुड़ी कई मशीनें दीं। उनका उस वक्त मुझ पर किया गया यह भरोसा बड़ा था क्योंकि खुद मुझे पता नहीं था कि आगे चलकर मैं कामयाब होऊंगा भी या नहीं।

भविष्य के ‘हर्बल किंग’ हैं राकेश

आज बना रहे हैं ढेरों उत्पाद…
उस वक्त एक किसान द्वारा दूसरे किसान को दी गई मदद ने भंवरलाल की तस्वीर बदल कर रख दी।

देखते ही देखते उनका प्रोसेसिंग प्लांट चल निकला। उनके काम की धूम आसपास के गांवों में फैल गई। आज वे आंवले से मुरब्बा, कैंडी, च्यवनप्राश तैयार कर रहे हैं। साथ ही मिर्च, नींबू, कैरी सहित कई प्रकार के मिश्रित अचार बना रहे हैं। मिर्च, धनिया और हल्दी के मसाले भी तैयार कर बेच रहे हैं।

अब वे अपना आंवला स्थानीय मंडियों में औने पौने दाम में बेचने की बजाय दूसरे किसान भाइयों का आंवला भी अच्छी कीमत पर खरीदकर उन्हें मंडियों में माथा फोडऩे की तकलीफ  से बचा रहे हैं।

जब कभी बाजार में आंवले के भाव ज्यादा हुए तो उन्होंने पड़ोसी किसानों को 30 रूपए किलो तक भाव दिए। मंडी वाले जहां 1-2 रुपए से ज्यादा की बात नहीं करते, वहीं भंवरलाल ने 10 रुपए या इससे अधिक दाम दिए हैं।

वे कहते हैं, चूंकि मैं खुद आंवले की खेती करता हूं, इसलिए पता है कि आंवले को तोडऩा कितना श्रमसाध्य कार्य है। जब कोई काश्तकार 2 रुपए में आंवला तोड़कर भी नहीं देता तो उसे इतने कम दाम क्यों देने?

पशुपालन में भी अव्वल…
आज उनके खेत में सिरोही नस्ल की बकरियां, मुर्रा नस्ल की भैंसें, भेड़, देशी गाय जैसा पशुधन है। बकरी पालन में उन्हें अतिरिक्त परिश्रम नहीं करना पड़ता। खेत में पहले से मौजूद बेर की झाडिय़ों के नीचे ही वे बकरियां पाल रहे हैं। वे बेर की पत्तियों से अपना पेट भर लेती हैं, दूध देने के बाद वे एक तरीके से फ्री पड़ जाती हैं।

जहां गाय का दूध, घी बेहतरीन होता है, वहीं गोबर से खाद भी बनती है। गोमूत्र खेतों में स्प्रे और दवाइयों के काम में आता है। उनकी सलाह है कि प्रत्येक किसान को अपने खेत पर पशुधन रखना चाहिए। मिली-जुली और मिश्रित खेती से काश्तकार को अपनी आमदनी डबल करने में ज्यादा दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता।

बाज़ार पर न के बराबर निर्भरता…
गोमूत्र, आकड़ा, धतूरा, नीम आदि को ड्रम में डालकर वे उसका स्प्रे बना खेतों में छिड़काव करते हैं। किसी भी तरह का कोई भी उत्पाद बाजार से नहीं लाते, जितना भी सामान चाहिए, खेती और खेत से ही जुटा लेते हैं।

सेंब बेर से हर साल 2 लाख की आमदनी…
भंवरलाल बताते हैं कि उन्हें बेर की खेती से 2,00,000 रुपए सालाना की इनकम हो जाती है। खेत में लगी हुई बेर की झाडय़िां 25 साल से ज्यादा पुरानी हैं। बेर की इन्हीं झाडय़िों के नीचे वे पशुपालन भी करते हैं, जानवरों को पालने के लिए उन्हें अलग से किसी ढांचे की जरूरत नहीं पड़ती। इससे बेहतर छायादार कुछ और हो सकता है भला!

बात ग्रेडिंग से मुनाफे की…
वे कहते हैं, ”आज के इस दौर में किसानों को ग्रेडिंग, प्रोसेसिंग का महत्व समझना होगा। यदि वे छंटाई करके छोटे बड़े आइटम को अलग अलग करके बेचना शुरू करेंगे तो उनको अवश्य ही मुनाफा होगा। मैं अपने खेत के गेहूं को 3000 रुपए क्विंटल से नीचे कभी नहीं बेचता।

हर साल अपने खेत के पानी और मिट्टी की जांच करवाता हूं, जिसका कोई अतिरिक्त खर्चा नहीं है। कृषि विभाग वालों को मेरे खेत की उपज पर भरोसा है, वे मेरे सबसे पहले ग्राहक हैं। हर साल अपनी जरूरत के हिसाब से मुझसे गेहूं या अन्य उपज ले जाते हैं।

आज मुझे अपने 2.5 हेक्टेयर के खेत से साल के 35 से 40 लाख रुपये की शुद्ध कमाई हो रही है। मैं खुश हूं, क्योंकि मेरा खेत ही मेरा घर है, मेरा कारोबार है, जीवन है। जय भारत, जय हिंदुस्तान…!’’

किसान ही नहीं भामाशाह भी हैं…
भंवरलाल न सिर्फ प्रगतिशील किसान हैं, बल्कि वे नेकदिल इंसान भी हैं। अपने गांव सरवड़ी के राजकीय आदर्श उच्च प्राथमिक विद्यालय में उन्होंने वर्ष 2017-18 में 13,600 रुपए की लागत का रसोई टिन शेड बनवाकर स्कूल को सौंपा। इस कार्य हेतु स्कूल प्रशासन ने उन्हें सैंकड़ों छात्र-छात्राओं की उपस्थिति में प्रशंसा प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया।

मिले हैं कई स्तरीय सम्मान…

  • कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंध अभिकरण (आत्मा) सीकर की ओर से 28 दिसंबर 2012 को किसान मेले में आयोजित आंवला प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त किया।
  • धरतीपुत्र सम्मान समारोह में 8 जून, 2014 को सहभागिता की।
  • राजस्थान सरकार के कृषि विभाग की ओर से 21 मई, 2015 को प्रमाण पत्र दिया गया।
  • जमुनालाल कनीराम बजाज ट्रस्ट, सीकर की ओर से 29 सितंबर, 2017 को आयोजित प्राकृतिक खाद्यान्न मेले में सहभागिता की।
  • भारतीय कृषि विज्ञान केंद्र, फतेहपुर सीकर की ओर से 24 अगस्त, 2018 को आयोजित राज्यस्तरीय नवाचारी कृषक सम्मेलन में सहभागिता की।
  • आत्मा, सीकर की ओर से 18 फरवरी, 2019 को किसान मेले में प्रमाण पत्र प्रदान किया गया।
  • आत्मा, सीकर की ओर से 18 फरवरी, 2019 को किसान मेले में आंवला फल प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया।

भंवरलाल जी से संपर्क कर सकते है।
दक्षिता बगडिय़ा जैविक कृषि फार्म,
सरवड़ी, सीकर, राजस्थान
मोबा.: 098874 27360

प्रस्तुति: मोईनुद्दीन चिश्ती
लेखक देश के जाने माने युवा कृषि,पर्यावरण पत्रकार एवं कृषि परिवर्तन के विशेष संवाददाता हैं

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