आज की आवश्यकता उत्पादन बढ़ाना नहीं बल्कि जल, जंगल एवं जमीन सुधारना होना चाहिए
वी.के. सचान जैविक खेती विशेषज्ञ, झांसी (उ.प्र.)
एक बात पर थोड़ा विचार करना की आज देश के नीति निर्माता, अधिकारी, वैज्ञानिक एवं स्वयं किसान भाई फसलों के उत्पादन को बढ़ाने की बात करते है कहा जाता है की सन 2020 तक देश की जनसंख्या 140 करोड़ हो जाएगी अत: बढ़ती आबादी को भोजन उपलब्ध करने के लिए उत्पादन तो बढ़ाना ही होगा यह बात नेता लोग, अधिकारी एवं वैज्ञानिक कहते है और स्वयं किसान भी उत्पादन बढ़ाने के बारे में सोचता है।
मेरा अपना मत यह है की उत्पादन बढ़ाना उतना ज़रूरी नहीं है जितना की प्रकृति की सुरक्षा जरूरी है देखा जाय तो खाद्य सुरक्षा के मामले में देश 2000 के दशक में ही आत्मनिर्भर हो गया था प्राकृतिक संसाधनो का अधिकतम उपयोग करते हुए हम सबने मिलकर यह कीर्तिमान अर्जित किया है किन्तु वर्ष 2000 के बाद से लेकर आज तक हम फसलों के उत्पादन को अपेक्षा के अनुरूप बढ़ा पाने में असफल रहे है यानी की अब हम फसलों का मन चाहा उत्पादन नहीं प्राप्त कर पा रहे है यह बात अलग है की जिस वर्ष मौसम किसानो का साथ दे देता है तो फसलों का उत्पादन बढ़ जाता है और जिस वर्ष मौसम साथ नहीं देता है उस वर्ष हमारे, आपके, वैज्ञानिकों के सारे के सारे प्रयास धरे के धरे रह जाते है जब मौसम साथ नहीं देता तो उत्पादन को बढ़ाने के लिए चलाई जाने वाली ना जाने कितनी योजनायें धरासायी हो जाती है।
अब यदि हम सबको यह समझ आ जाय की फसलों के उत्पादन को बढ़ाने में हमारे आपके प्रयासों से कहीं अधिक सहयोग मौसम का होता है अत: इस बात पर विचार आवश्यक हो जाता है की मनुष्य को धरती, पानी एवं हवा के स्वरूप को संवारने के लिए अधिक प्रयास करने चाहिए किन्तु दुर्भाग्य से आज उल्टा ही हो रहा है
- आज शस्य श्यामला उर्वर धरती की उर्वर कोख रसायनिक उर्वरकों एवं फसल सुरक्षा रसायनों को खा-खाकर बंजर होती जा रही है।
- 40-50 फीट की गहराई में पाया जाने वाला भूमि गत जल 150 से 200 फीट की गहराई तक जा पहुंचा है।
- देश का वन क्षेत्र घटकर 6 से 7 प्रतिशत रह गया है जो 1950 के दशक में 26 से 27 प्रतिशत हुआ करता था।
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भूमि, जल एवं हवा में पाए जाने वाले नाना प्रकार के लाभदायक सूक्ष्म जीव फसल सुरक्षा रसायनों के प्रयोग से नष्ट होते जा रहे है।
- मनुष्य की दूषित जीवन शैली के कारण ही भूमि में थलचर, पानी में जलचर एवं आकाश में नभचर कम होते जा रहे है।
- धरती में सूक्ष्म जीवों की कमी से ही धरती का तापमान वर्ष दर वर्ष बढ़ता जा रहा है।
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देश में पानी की समस्या बढ़ती जा रही है।
विगत पचास वर्षों से सतही जल एवं भूमिगत जल का दोहन बहुत तेजी के साथ हुआ है, यह ध्यान ही नहीं रखा गया कि आखिर भूमि की निचली सतहों में पानी की मात्रा कितनी है और निचली सतहों में आखिर पानी जाता कहाँ से है बस टेक्नोलाजीकी दम पर गहरी से गहरी सतहों से पानी निकालने की कला को ही अपनी बहादुरी समझता रहा इन्सान, मोटरसायकिल एवं स्कूटर में जब तेल रिज़र्व में लग जाता है तो अगले पेट्रोल पम्प में तेल डलवाना पड़ता है यही सतही जल के लिए नियम है जब इन्सान ने पहली सतह का पानी पी डाला था तो उसे इस बात की चिंता होनी ही चाहिए थी की आखिर अब क्या होगा, किन्तु ऐसा नहीं हुआ आज स्थिति बदल गयी है देश के अधिकांश क्षेत्रो में सिंचाई के लिए तो दूर पीने के पानी की किल्लत बढ़ती जा रही है और जो पानी बचा है वह पीने योग्य नहीं रह गया है क्योंकि बचे हुए पानी में रसायन घोल दिए गये है यह ध्यान रखना की आखिर जब धरती की निचली सतहों का पानी खत्म हो जाएगा और सतही जल में हानि कारक रसायन घोल दोगें तो पीने का पानी कहाँ से लाओगे।
भोजन अब खाने योग्य कहाँ है
फसलों का उत्पादन हो या फिर सब्जियों और फलों का किसान को किसी भी दशा में अधिक उत्पादन चाहिए, दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम इस बात को जानने और मानने वाला इन्सान आज अपनी फसलों में से एक दाना भी किसी जीव को खाने नहीं देना चाहता है चाहे पशु-पक्षी हो या फिर कीट-पतंगे सब को मार डालने की ठान रखी है इन्सान ने, अपनी फसलों को कीट-पतंगो से बचाने के लिए नाना प्रकार के जहरीले रसायन फसलों में डालता चला जा रहा है हमारे जीवन के लिए और प्रकृति के लिए यह रसायन कितने घातक है यह बात किसानों को कोई समझाने वाला या तो मिलता नहीं है और अगर कोई समझाना चाहे तो किसान इस बात को समझना नहीं चाहता, दरसल इस विषय पर चिंता करने वाले को पागल कहा जाता है।
जैविक खेती की बाते तो हर स्तर पर की जाती है किन्तु अंतर मन से हर स्तर पर यही प्रयास किये जाते है की जैविक खेती होने न पाए क्योंकि जैविक खेती में किसान को छोड़कर अन्य किसी व्यक्ति को कोई फायदा नहीं है तभी तो जैविक खेती द्वारा उत्पादित आनाजों, सब्जियों एवं फलों की मार्केटिंग में नाना प्रकार के अवरोध खड़े किये गये है आज रिमोट क्षेत्र का गरीब, छोटा किसान जो रसायनों का प्रयोग नहीं करता उसका उत्पाद जैविक ही है किन्तु उसका निर्धारित संस्था से जब तक पंजीकरण नहीं है तब तक वह अपना जैविक उत्पाद जैविक के नाम से नहीं बेच सकता है अब छोटा गरीब किसान पंजीकरण कराने कहाँ जाय।
जब रसायनों के प्रयोग से उत्पादित भोजन इतना जहरीला बना डालोगे की खाने के बाद मौत सुनिश्चित होगी तो खाकर मरने से अच्छा है है बगैर खाय ही मर जाया जाय।
यह बिल्कुल सत्य बात है बहुत ही अच्छा ब्लॉक लिखा है आपने