संपादकीय

कीट-नियंत्रण के लिए ‘पंगत’ नहीं ‘स्वरुचि भोज’ कराएँ

पवन नागर, संपादक

कीट-नियंत्रण के लिए ‘पंगत’ नहीं ‘स्वरुचि भोज’ कराएँ

अभी कोरोना काल चल रहा है। कब तक चलेगा और इसका अंत कब होगा इसकी भविष्यवाणी करना किसी भी व्यक्ति के बस की बात नहीं है। फिलहाल तो सख्त लॉकडाउन के बाद धीरे-धीरे बाज़ार खुलने लगे हैं और आम जनता को थोड़ी-बहुत राहत मिली है घर से बाहर निकलने की। पर अर्थव्यवस्था तब तक पूरी तरह पटरी पर नहीं लौटेगी जब तक कि आम जनता बिना डर के घर से बाज़ार या अपने किसी काम के लिए जा सके, और फिलहाल तो ऐसा होता नहीं लग रहा है। अब तो धैर्य ही सबसे बड़ी शक्ति है कोरोना और बाकी अन्य समस्याओं से लडऩे के लिए। इसलिए धैर्य धारण करें और आज़ादी पूर्वक घर से निकलने के लिए सही वक्त का इंतज़ार करें। तब तक घर पर रहें, सुरक्षित रहें।

फिलहाल खबर यह है कि संकट के इस दौर में केन्द्र सरकार ने जून 2020 में किसानों से जुड़े और किसानों की समस्याओं को बढ़ाने वाले तीन अध्यादेश जारी किए हैं जिनके माध्यम से खेती में तीन बड़े कानूनी बदलाव कर दिए गए हैं। इन अध्यादेशों में ‘मंडी’, ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ तथा ‘संविदा खेती’ जैसे किसानी मुद्दों का जि़क्र है। आने वाले दिनों में संसद को इन तीनों अध्यादेशों पर मुहर लगानी ही पड़ेगी। अभी देश के अधिकतर किसानों को इन अध्यादेशों के बारे में सही जानकारी भी नहीं है। विडम्बना तो इस बात की है कि विपक्ष भी इस मुद्दे पर खामोशी का दामन थामे बैठा है। अभी तो फिलहाल इंतजार ही किया जा सकता है और देखना होगा कि आगे इन अध्यादेशों क्या होगा?

देश के किसानों की समस्याएँ पहले से ही कम नहीं थीं, अब ये तीन नये अध्यादेश किसानों की समस्याओं को और बढ़ाने का काम करेंगे। फिलहाल देश में इन अध्यादेशों के खिलाफ विभिन्न किसान संगठनों ने मोर्चा खोल दिया है। किसानों को भी किसानी करने में दोहरी लड़ाई लडऩी पड़ती है, एक तो राजनीतिक रूप से और दूसरी खेत पर मैदानी रूप से। राजनीतिक रूप से मज़बूत न होने के कारण और सामूहिक एकता के अभाव में किसान राजनीतिक लड़ाई तो हार ही जाते हैं, पर अब वे मैदानी लड़ाई भी हारने लगे हैं। नकली बीज, खाद और कीटनाशक बनाने वाली कंपनियों की चालाकियों के चलते अब वे अपनी फसलों को विभिन्न बीमारियों और कीटों से भी नहीं बचा पा रहे हैं, जिसका खामियाज़ा फसल बर्बाद होने के रूप में मिलता है और जिसके कारण किसान दिन-ब-दिन कर्ज पर कर्ज लिए जा रहे हैं और सरकार भी कर्ज पर कर्ज दिए जा रही है, ताकि एक दिन किसान पर इतना कर्ज हो जाए कि वह किसानी ही छोड़ दे और उसकी ज़मीन कॉर्पोरेट घरानों को दी जा सके। ये तीनों अध्यादेश भी इसी उद्देश्य से लाए गए हैं।

तो किसानों को सबसे पहले अपना मैदान बचाना है। इसके लिए अपनी फसल को बीमारियों और महँगे, ज़हरीले व नकली कीटनाशकों से बचाना पहला लक्ष्य होना चाहिए। अब प्रश्न आता है कि इनसे बचा कैसे जाए? तो इसका सीधा-सा जवाब है कि हमें अपने खेतों में जैव विविधता लानी होगी। हमारे पूर्वज भी पारंपरिक खेती में जैव विविधता का ख्याल करके ही खेती करते थे और इसलिए कीटों के हमले से बचे रहते थे, साथ ही अपने परिवार व देश को ज़हरमुक्त अनाज खिलाते थे। तो आइए किसान भाईयो, एक बहुत सरल उदाहरण से हम आपको बताते हैं कि किस प्रकार अपने खेतों में जैव विविधता लाकर आप अपने खेतों में कीटों के हमले रोक सकते हैं और इन नकली, महँगे व ज़हरीले कीटनाशकों से बच सकते हैं।

अब ज़माना बदल रहा है। देश में सभी तरफ बदलाव की लहर चल रही है। और इसी बदलाव का नतीजा है कि पहले के समय में हमारे समाज में सामाजिक कार्यक्रमों में जो ‘पंगत’ (पंक्ति में बैठाकर खाने खिलाने का तरीका) खिलाई जाती थी उसका चलन अब लगभग खत्म हो गया है और उसके स्थान पर ‘स्वरुचि भोज’ (जिसमें व्यक्ति अपनी पसंद से खुद लेकर खाता है) का चलन शुरू हो गया है। अब चाहे अमीर हों या गरीब, सभी स्वरुचि भोज ही करना और कराना पसंद करने लगे हैं। इसका खेती से क्या संबंध है यह जानने से पहले यह समझ लेते हैं कि भोजन के इन दोनों प्रकारों में अंतर क्या है।

पंगत में मेहमान को आराम से बैठाकर भोजन कराया जाता है और पकवान भी सीमित ही होते हैं, जैसे कि एक सब्जी, रायता, पूड़ी, बूंदी, मिठाई। पंगत में चूँकि व्यक्ति बैठकर खाना खाता है और उसके पास पकवान भी सीमित ही रहते हैं इसलिए वह भर पेट खाना खाता है। दूसरी ओर स्वरुचि भोज में खड़े-खड़े खाने की व्यवस्था होती है और अनेकोंनेक व्यजंनों की भरमार रहती है। इतने सारे व्यंजन देखकर खाने वाले का मन विचलित हो जाता है और उसको समझ ही नहीं आता है कि क्या-क्या खाए। इसलिए वह हर व्यंजन को थोड़ा-थोड़ा खाता हुआ व्यजंनों के सभी स्टॉल्स पर भ्रमण करता रहता है और इस चक्कर में भरपेट खाना नहीं खा पाता है।

तो किसान भाईयो, आपको भी अपने खेतों में पंगत वाली व्यवस्था को खत्म करना पड़ेगा। पंगत यानी एकल फसल प्रणाली। क्योंकि एकल फसल प्रणाली में जब कीट लगते हैं तो वे पंगत की भाँति आराम से बैठकर भरपेट खाना खाकर ही आपके खेत से निकलते हैं क्योंकि चारों तरफ उन्हें एक ही फसल दिखती है। फिर आपको इन कीटों को मारने के लिए रासायनिक व नकली कीटनाशकों को अपने खेत में लाना पड़ता है और ज़हरयुक्त खेती को अपनाना पड़ता है। कीट विज्ञानी डॉ. एन. कपूर के अनुसार सोयाबीन की फसल को जब भारत में उगाना शुरू किया गया था, तब यह कीट समस्या से रहित फसल थी। किंतु जैसे-जैसे इसका रकबा बढ़ता गया और दूसरी फसलों का रकबा कम होता गया, वैसे-वैसे इसमें नए-नए कीट हानि पहुँचाने लगे। अभी की स्थिति में इसमें लगभग 90 तरह के कीट हानि पहुँचाते हैं। जबकि मित्र कीटों की संख्या में लगातार कमी हो रही है।

वहीं दूसरी ओर जब आपके खेत में पाँच से छ: प्रकार की या इससे भी अधिक फसलें लगी होंगी तो कीटों का मन विचलित होगा और अलग-अलग फसल देखकर वे पूरे खेत का भ्रमण ही करते रहेंगे। साथ ही अनेक फसलों के लगाने से आपके खेत में मित्र कीटों का आगमन हो जाएगा जो आपकी फसल को इन दुश्मन कीटों से बचा लेंगे। यदि आप अपने खेत में जैव विविधता, यानी कि अधिक से अधिक फसलें, यानी किस्वरुचि भोज को अपनाएँगे तो आपको कीटों से होने वाले नुकसान और इन ज़हरीले व नकली कीटनाशकों के जाल से मुक्ति मिलेगी। साथ ही आपको ज़हरमुक्त अनाज भी मिलेगा जिससे आप भी स्वस्थ रहोगे और अपने ग्राहकों को भी ज़हरमुक्त अनाज दे पाओगे। इसलिए अपने खेतों में कीटों को स्वरुचि भोज का निमंत्रण भेजें, पंगत का नहीं।

तो किसान भाईयो, अपने खेत में पहले अपने परिवार की आवश्यकता हेतु अधिक से अधिक फसल लगाकर खेत में जैव विविधता लाएँ और ज़हरमुक्त अनाज, दाल, फल व सब्जियों का उत्पादन करें ताकि आप और आपका परिवार स्वस्थ रहे। वर्तमान कोरोना काल भी यही संदेश दे रहा है कि स्वस्थ रहें, मस्त रहें। इसलिए अपने दैनिक जीवन में शुद्ध और ज़हरमुक्त चीज़ों का इस्तेमाल करें, सामाजिक आयोजनों में पंगत खाएँ और खिलाएँ परंतु खेत में स्वरुचि भोज का ही प्रबंध करें।

पवन नागर
संपादक

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