खेती-बाड़ी

कृषि कार्य में सकारात्मक परिवर्तन में 3 (तीन) का महत्व

    1. प्रत्येक तीन वर्ष में एक बार रबी की फसल कटने के फौरन बाद मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई अवश्य करें। ऐसा करने से मिट्टी में दबे हुए रोगाणु, कीटों के प्यूपा तथा खरपतवारों के बीज इत्यादि हानिकारक तत्व कड़ी धूप में नष्ट हो जाते हैं, मिट्टी में हवा का आवागमन बढ़ जाता है और वर्षा का पानी खेत में रुकता है।
    2.  प्रत्येक तीन वर्ष में एक बार पुराने बीज को बदल दें और प्रमाणीकृत संस्था से नया बीज खरीदें। ऐसा करने से बीजों की शुद्धता व गुणवत्ता बनी रहती है और मानक उत्पादन प्राप्त होता है।
    3. खेती के जोखिम को कम करने के लिए हर मौसम में कम से कम तीन प्रकार की फसल लगाएँ। इन फसलों में कम पानी में भी उत्पादन देने वाली फसलें, अतिवर्षा झेल जाने वाली फसलें और सामान्य वर्षा वाली फसलों को लगाया जाना चाहिए। इसी प्रकार रबी की फसलों में अधिक पानी चाहने वाली फसलों के साथ कम पानी वाली फसलों को लगाया जाना चाहिए।
    4. कुल तीन प्रकार के उद्यम अपनाएँ। मतलब यह कि खेती के साथ-साथ किन्हीं और दो ऐसेउद्यमों में भी लगें जो कृषि से जुड़े होकर भी उससे थोड़े अलग हों, जैसे कि गौ पालन और सब्ज़ी उत्पादन, कृषि वानिकी और बकरी पालन आदि। यानि कृषि के साथ पशुपालन, सब्ज़ी उत्पादन, मसाला फसलों का उत्पादन, द्वितीयक खेती अथवा प्राथमिक प्रसंस्करण को अवश्य अपनाएँ।
    5. कीट, खरपतवार और रोग नियंत्रण के लिए कम से कम तीन प्रकार की विधियों को समायोजित करें। केवल रसायनों पर निर्भर न रहें। इसका तात्पर्य है कि अंतर्शस्य क्रियाओं के साथ यांत्रिक नियंत्रण व जैविक उपायों को भी समन्वित करें। इससे न केवल खेती की लागत में कमी आती है बल्कि प्रकृति में संतुलन भी बना रहता है। साथ ही साथ रोग एवं कीट भी रसायनों के प्रति प्रतिरोधी नहीं हो पाते।
    6. प्रत्येक तीन वर्ष में एक बार किसी नई दूरगामी परिणाम देने वाली तकनीकी विधि में निवेश करें, जैसे कि सोक पिट (सोखता गड्ढा) बनवाना, नया यंत्र खरीदना, समतलीकरण कराना, नई फसल अपनाना आदि।
    7. कम से कम तीन आदान तैयार करने में स्वावलंबी बनें, जैसे कि बीज स्वयं बनाएँ, देशी खाद बनाएँ और नीम से कीटनाशी बनाना सीखें। इससे लागत में कमी आएगी और मुनाफा बढ़ेगा।
    8. प्रति वर्ष तीन अलग-अलग प्रकार के वृक्ष लगाएँ, जैसे कि फलदार वृक्ष, जलाऊ लकड़ी देने वाले वृक्ष तथा इमारती लकड़ी देने वाले वृक्ष। इससे उपयोगिता और आवश्यकता पूर्ति का क्रम बना रहेगा।
    9. तीन अलग-अलग स्तर की विभिन्न विस्तार गतिविधियों (जैसे कि प्रशिक्षण, मेला, प्रदर्शनी इत्यादि) में अवश्य भागीदारी करें, यानि जिला स्तरीय, राज्य स्तरीय एवं राष्ट्र स्तरीय। इससे आपको अलग-अलग स्तरों पर होने वाले परिवर्तनों के बारे में पता चलेगा और आप सजग खेती करने को प्रोत्साहित होंगे।
    10. किसी भी कृषि तकनीकी कार्यक्रम में कम से कम तीन प्रश्न अवश्य पूछें, ताकि आपकी जिज्ञासा शाँत हो और विशेषज्ञ आपकी समस्याओं और ज़मीनी स्तर की परेशानियों को जान सकें।
    11. अपने साथ कम से कम तीन किसानों को अवश्य प्रोत्साहित करें। इससे प्रगतिशीलता में वृद्धि होगी और आपके तकनीकी नेतृत्व का मान बढ़ेगा।
    12. अपनी सफलता की कहानी को कम से कम तीन विभागों के साथ अवश्य साझा करें। आप लिखित रूप में यदि इन कहानियों को प्रस्तुत करेंगे तो यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ का कार्य करेगा।
    13. त्रिकालदर्शी बनें, अर्थात भूतकाल की गलतियों से सबक सीखें, वर्तमान में सजग रहें और भविष्य की योजना को ठोक बजा कर बनाएँ।
    14. तीन प्रकार का ज्ञान अपनी अगली पीढ़ी को अवश्य हस्तांतरित करें। पहला, खेती का परंपरागत ज्ञान; दूसरा, खेती से संबन्धित आपके अपने अनुभव; और तीसरा, नवोन्मेषी खेती करने के लिए आवश्यक सूचना स्त्रोत।

कृषक भाईयो तथा बहनो, यदि आप उपरोक्त बिन्दुओं पर ध्यान रख कर अमल करेंगे तो निश्चित ही आपके कृषि कार्य में सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेगा ।

लेखक: डॉ. किंजल्क सी सिंह एवं चन्द्रजीत सिंह,
कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा (मध्यप्रदेश)
मोबाईल: 83193 93727

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