संपादकीय

भगवान भरोसे नहीं, भगवान के तरीके से करें खेती

किसानों की लगातार बिगड़ती दशा को सुधारने और उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर होने से रोक पाने का सरकार के पास भले कोई उपाय न मालूम हो रहा हो, पर कुदरत के पास इसका एक सीधा-सरल उपाय है जिसे अपनाकर किसान हर तरह से खुशहाल हो सकता है। और सबसे अच्छी बात यह कि यह खुशहाली केवल बड़े किसानों तक सीमित नहीं होगी, आधे-एक एकड़ की जोत वाले किसान भी इसे अपनाकर दुर्दिनों से मुक्ति पा सकते हैं। इस उपाय का नाम है- कुदरती खेती। हमने इसे सीधा-सरल उपाय इसलिए कहा क्योंकि इसको अपनाने के लिए न तो स्कूल-कॉलेज जाकर पढ़ाई करने की ज़रूरत है, न सरकार और बड़ी कंपनियों पर निर्भर रहने की ज़रूरत है, और न क़र्ज़ लेकर लागत लगाने की ज़रूरत है। यह छोटे-छोटे किसानों को भी आत्मनिर्भर और खुशहाल बना सकती है। ज़रूरत है तो बस इसके बारे में ठीक तरह से जानने की। अगर आप सोचते हैं कि केवल रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद डाल देने भर से कुदरती खेती हो जाती है तो आप गलत सोच रहे हैं। कुदरती खेती का मतलब है कुदरत के तौर-तरीकों को समझना और उनके मुताबिक चलना। कुदरती खेती का मतलब है ईश्वर के बनाए कायदे-कानूनों का पालन करना। अगर हम ऊपरवाले के दिखाए हुए रास्ते पर चलें तो न कोई भूखा रहेगा, न कोई गरीब। और न ही हवा, पानी और ज़मीन में ज़हर घुलेगा। ईश्वर ने सारी व्यवस्थाएँ ऐसी की हैं कि हमें किसी का मोहताज होने की ज़रूरत नहीं है। कुदरती खेती वास्तव में ईश्वर के तरीके से खेती करने का नाम है। कुदरती खेती कई तरह से की जाती है, और इसीलिए अलग-अलग विशेषज्ञों ने इसे अलग-अलग नाम भी दिए हैं। कोई इसे ‘ज़ीरो बजट खेती’ कहता है तो कोई ‘अमृत कृषि’ पर सबके मूल में वे ही प्राकृतिक सिद्धांत हैं।
हरियाणा के श्री राजेन्द्र चौधरी और उनके साथियों की छोटी-सी किंतु सारगर्भित पुस्तक ‘कुदरती खेती: बिना क़र्ज़, बिना ज़हर’ में कुदरती खेती के बारे में अच्छी जानकारी दी गई है। उनके शब्दों में, ”यह किताब बिना खर्च, बिना ज़हर के खेती करने के तरीकों के बावत है।” और यह बात बिल्कुल सही है। चूँकि इस खेती के लिए बाहर से कुछ भी नहीं लेना पड़ता, ज़मीन में रसायन का एक कतरा भी नहीं डालना पड़ता और तब भी उत्पादन नहीं घटता, बल्कि लागत घटने से मुनाफा बढऩे की ही संभावनाएँ रहती हैं, यह सही मायनों में ‘सात्विक और लाभदायक’ खेती है। और इसीलिए देश भर में, विशेषकर मध्यप्रदेश में इसके प्रति रुझान और जागरूकता बढ़ रही है। हमने सोचा कि क्यों न कृषि-परिवर्तन के माध्यम से हम भी ज़्यादा से ज़्यादा किसान भाइयों को कुदरती खेती के विचार से परिचित कराएँ, ताकि वे भी इसे अपनाकर देख सकें। और इसीलिए हमने श्री राजेन्द्र चौधरी से बात की और इस बात की अनुमति ली कि उनकी इस पुस्तक को जो कि कुदरती तरीके से खेती कर रहे कई किसानों के खेतों को देखकर, उनसे और कई विशेषज्ञों से बातचीत करके, और उनसे प्राप्त प्रशिक्षण एवं कई संबंधित पुस्तकों के अध्ययन के आधार पर तैयार की गई है, कृषि-परिवर्तन में छोटे-छोटे अंशों के रूप में प्रकाशित किया जाए। अत: अब से हर अंक में आपको इस पुस्तक का एक अध्याय पढऩे को मिलेगा, जिसके माध्यम से आप जानेंगे कि वास्तव में कुदरती खेती क्या होती है, उसके कौन-कौन से रूप प्रचलित हैं, कैसे की जाती है, क्या-क्या फायदे हैं, क्या उसकी सीमाएँ हैं, और उसके संदर्भ में कौन-कौन सी गलतफहमियाँ फैली हुई हैं। किताब के आखिर में उन किसानों की सूची भी दी गई है जो कि इस खेती को अपनाए हुए हैं और अन्य किसान भाइयों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। साथ ही उन विशेषज्ञों के नाम-पते भी हैं जो कुदरती खेती के विभिन्न प्रारूपों का प्रशिक्षण देते हैं। किसान भाइयों को संकट से उबारने हेतु श्री राजेन्द्र चौधरी का यह प्रयास सराहनीय है और हम उम्मीद करते हैं कि इससे आपको भी अपेक्षित लाभ होगा। इसीलिए अब से हर अंक ध्यान से पढि़एगा और जो भी सवाल आपके मन में आएँ या अगर कोई व्यावहारिक कठिनाई महसूस हो कुदरती खेती के तौर-तरीकों के संदर्भ में तो हमें ज़रूर बताइएगा, हम लेखक के माध्यम से या अन्य विशेषज्ञों के माध्यम से आपकी जिज्ञासाओं का समाधान कराने का पूरा प्रयास करेंगे।
पवन नागर, संपादक

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2 Comments

  1. आप के लेख को पढऩे के बाद बहुत सी जानकारी प्राप्त हुई सभी जानकारियां नवीन है और मैं आपके साथ जुड़े रहना चाहता हूं मैं भी एक किसान हूं और खेती बड़ी करता हूं

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