संपादकीय

संतोषम् परम् सुखम्

पवन नागर, संपादक

आज की भागमभाग भरी जीवन-शैली और आधुनिकता की चकाचौंध से अंधा हुआ इंसान जाने कहाँ जाने की ओर अग्रसर है कि उसे अपनी और अपने परिवार की कोई चिंता ही नहीं; ज़्यादा से ज़्यादा पैसा कमाने की कुछ ऐसी धुन हावी हुई है कि बस उसी के लिए दिन-रात कोल्हू के बैल की तरह लगा रहता है। जाने क्यों उसे समझ नहीं आ रहा है कि पैसा जीवन जीने के लिए ज़रूरी तो है पर जीवन केवल और केवल पैसा कमाने में गँवाने के लिए नहीं मिला है। मैं यह बात इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आज चाहे वो व्यापारी हो, डॉक्टर हो, इंजीनियर हो, मज़दूर हो या फिर किसान हो, सभी इसी दौड़ में लगे हुए हैं। जबकि मेरे हिसाब से आज इन सभी लोगों के पास जीवन जीने के सभी ज़रूरी साधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं, या दूसरे शब्दों में कहें तो इन साधनों की कोई ज़्यादा कमी नहीं है। फिर भी हर वर्ग के लोग इसी उधेड़बुन में लगे हैं कि कैसे हो तो और ज़्यादा पैसा कमाया जाए, चाहे फिर उसके लिए कुछ भी करना पड़े। यही सबसे बड़ी गड़बड़ी है, सारी बुराइयों की शुरुआत है। बस इसी बात को हमको दुरुस्त करना होगा कि चाहे हमें पैसे कम मिलें पर उसके लिए हम जो ठीक होगा वही करेंगे और ज़्यादा पैसे के लालच में कुछ भी अनैतिक काम नहीं करेंगे। यह बात हर वर्ग के और हर पेशे के लोगों को अपने मन में बिठा लेना चाहिए कि हमें सिर्फ अच्छा काम करना है और सिर्फ अच्छाई के लिए काम करना है, क्योंकि शास्त्रों में भी लिखा है कि जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे।

यह बात किसान भाइयों को समझना और भी ज़रूरी है कि अच्छा बोओगे तभी अच्छा काटोगे। बस यही कहना चाहता हूँ कि किसान भाई ज्य़ादा मुनाफे वाली फसलों के लालच में न फँसें, अपने पास उपलब्ध संसाधनों के अनुसार ही अपने खेत में फसल लगाएँ,  किसी अन्य की देखा-देखी न करें। अक्सर देखा गया है कि एक किसान ने यह सामान ले लिया है तो दूसरा किसान भी वही सामान खरीदने की जुगत में लग जाता है, चाहे उस सामान की उसे ज़रूरत हो या न हो। इसी देखा-देखी के चक्कर में वह अंतत: बर्बाद हो जाता है। आजकल गाँवों में इसी देखा-देखी के चंगुल मे फँसकर किसानों ने अपनी फसल की लागत बढ़ा ली है।

होता क्या है कि बगल वाले किसान ने तो ज्य़ादा खाद डाली है, तो मैं भी उतनी ही खाद डालँूगा; उसने तो कीटनाशक दवाई का छिड़काव दो बार किया है, तो मैं तो तीन बार करूँगा। अरे भाई! ज़्यादा खाद, ज़्यादा कीटनाशक और अन्य खर्चे करके अगर एक-दो बोरे ज़्यादा उगा भी लिए तो किसके लिए? इन चीज़ों को उपयोग करके जो धन आएगा वो भी तो दूसरों को देने के लिए ही आएगा न। क्योंकि इन चीज़ों के उपयोग के बाद आपकी फसल कोई शुद्ध तो रह नहीं जाएगी और इनका उपयोग करके आप सिर्फ ज़हर ही घर लाओगे और उसको खाकर बीमार होगे और पैसा फिर डॉक्टर को ही देना होगा। तो फिर इतनी मेहनत क्यों की जाए दूसरों को पैसे देने के लिए? मेरा यही प्रश्न है सभी किसान भाइयों से कि इतनी मेहनत आप जो दूसरे के लिए कर रहे हो अगर इतनी मेहनत अपने और अपने परिवार के लिए करोगे तो आपको अधिक मुनाफा तो मिलेगा ही, साथ ही उन सभी को भी ज़हर से मुक्ति मिलेगी जो आपका उपजाया अन्न खातेे हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि भला कौन सी मेहनत की बात कर रहा हूँ मैं? तो मैं आपको बता दूँ कि मैं बात कर रहा हूँ नेक इरादों के साथ प्रकृति के अनुसार चलनेे, लालच को त्याग देने एवं संतोषम् परम् सुखम् की भावना से कार्य करने की। यही वह मेहनत है जो आपको और आपके परिवार को सालों-साल सलामत रखेगी और भविष्य में काम आएगी। यह मेहनत हर व्यक्ति  पर लागू होती है।

मेरा किसान भाइयों से अनुरोध है कि आज से ही वे इस मेहनत के अनुसार कार्य करें और अपने जीवन में बदलाव को देखें। इस तरीके से काम करने से आपको आनंद ही आनंद प्राप्त होगा। कैसे काम करना है यह मैं बता रहा हूँ। आज के परिदृश्य में देखें तो अधिकतर किसान भाइयों के बेटे अब पढ़-लिखकर बड़े हो गए हैं और नौकरी भी करने लगे हैं। इस तरह अब उनके पास आय का एक दूसरा साधन बच्चे की तनख्वाह के रूप में हो गया है। मतलब यह कि किसान अब पूरी तरह से किसानी पर निर्भर नहीं है। अगर किसान इसी बात को अपना मज़बूत पक्ष बना लें कि बेटे की तनख्वाह से घर का खर्च चलेगा और खेती का काम हम सिर्फ हमारे परिवार के लिए करेंगे।

जैसे कि हम खेत में गेहूं सिर्फ अच्छी गुणवत्ता का ही बोएँगे (३०६, शरवती इत्यादि, जो आजकल कम बोया जाता है और खाया भी कम जाता है) और न तो रासायनिक खाद का इस्तेमाल करेंगे और न कीटनाशक का, सिर्फ देसी तरीके के खाद व कीटनाशक का उपयोग करेंगे। और इसी प्रकार किसान अपने खेत में या बाड़े में अपने लिए सब्ज़ी भी उगा सकता है ताकि उसे बाज़ार से कीटनाशक वाली बीमार करने वाली सब्ज़ी न खरीदना पड़े। अब जब अनाज, सब्ज़ी, दाल सब घर का ही होगा और साथ ही पशुपालन तो किसान करता ही है तो दूध और घी भी घर का होगा तो शुद्धता के किसी सर्टिफिकेट के लिए न तो किसी संस्था के पास जाना होगा और जब शुद्ध चीज़ेेेें खाओगे तो आप बीमार भी नहीं पड़ोगे। और आपने देखा होगा कि देशभर में सबसे ज़्यादा हो-हल्ला इन्हीं चीज़ों के दामों के लिए किया जाता है।

जब हर किसान इसी तरीके से कार्य करने लगेगा तो देश के बाकी लोगों को भी अच्छा अनाज, अच्छी सब्ज़ी, दूध व घी शुद्ध तथा कम दामों में उपलब्ध होगा। क्योंकि नियम है कि माँग कम होगी तो कीमत भी कम होगी। तो आज से ही लालच का त्याग करके इस कार्य में लग जाएँ कि मुझे तो बस अपने और अपने परिवार को शुद्ध अनाज, सब्ज़ी, दूध और घी उपलब्ध कराना है और संतोषम् परम् सुखम् की भावना को अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य को समझाना और उसका जीवन भर पालन कराना है। और किसी भी व्यक्ति की देखा-देखी व भौतिक सुख-सुविधाओं के जंजाल में नहीं फँसना है। यही मूलमंत्र है आनंद को प्राप्त करने का। और तभी होगा परिवार के लिए समर्पित आत्मनिर्भर किसान।

पवन नागर, संपादक

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