खेती-बाड़ी

भारत में फलती-फूलतीं तुलसी की प्रजातियाँ

लेखक: आशीष कुमार

भारत में फलती-फूलतीं तुलसी की प्रजातियाँ

तुलसी या ऑसीमम ‘लाइमेएसी’ परिवार के अंतर्गत आती है और इसके जीनस की 180 से 250 सुगंधित प्रजातियाँ विश्व एवं भारत में पाई जाती हैं। इसके कई औषधीय गुण हैं। ऑसीमम की व्यापक रूप से एक पॉट जड़ी-बूटी के रूप में खेती की जाती है। भारत में 50 से ज़्यादा ऑसीमम जीनस के अंतर्गत तुलसी की विभिन्न प्रजातियाँ वन्य/खेती के पारंपरिक उपयोग के लिए जाना जाता है। भारत में तुलसी की विभिन्न प्रजातियों की शाक और इसके सुगन्धित तेल में पाए जाने वाले रासायनिक घटक की माँग हर्बल बाज़ार में तेजी से बढ़ रही है।

ऑसीमम एक महत्वपूर्ण औषधीय और सुगंधित पौधा है। तुलसी के संपूर्ण पौधे का उपयोग किया जाता है। यह कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, लोहा, बी-कैरोटीन, विटामिन, फॉस्फोरस, कैल्शियम, प्रोटीन और सुगंधित तेलों का समृद्ध स्त्रोत है। ऑसीमम की प्रजातियों की बड़े पैमाने पर इंडोनेशिया, मिस्त्र, मोरक्को, फ्रांस, ग्रीस, हंगरी और संयुक्त राज्य अमेरिका में खेती की जाती है। भारत में असम, पश्चिम बंगाल, उ.प्र, बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र और जम्मू में ऑसीमम की विभिन्न प्रजातियों की खेती की जा रही है और पिछले कुछ वर्षों के दौरान इसके इसेंशियल तेल की विश्वव्यापी माँग बढ़ी है। भारतीय परमार्थ निष्ठा के अनुसार तुलसी देवताओं के लिए पवित्र मानी जाती रही है। तुलसी की विभिन्न प्रजातियाँ कई उपयोगों के लिए प्रयोग में लाई जाती हैं। तुलसी की विभिन्न प्रजातियों का उपयोग ताज़ी जड़ी-बूटी के रूप में, सब्जियों व पोल्ट्री जैसे खाद्य पदार्थों के स्वाद के लिए, सर्दी-जुखाम में उपयोग के लिए, सिरका या जैतून के तेल में संरक्षित करने के लिए और सलाद के रूप में स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है। तुलसी को सुखाकर इसकी पत्तियों को जेली, शहद और चाय में इस्तेमाल किया जाता है।

भारत में ऑसीमम की प्रजातियाँ
पवित्र तुलसी (ऑसीमम सैक्टम), बोबई तुलसी (ऑसीमम बेसिलिकम), बनतुलसी (ऑसीमम ग्रेटिसिकम), नींबू तुलसी (ऑसीमम अफ्रीकन), कपूर तुलसी (ऑसीमम किलिमण्ड चेरिकम), काली तुलसी (ऑसीमम अमेरिकन) तथा फीवर तुलसी (ऑसीमम विरिडी)।

ऑसीमम की प्रजातियों पर सीएसआईआर-केन्द्रीय औषधीय एवं सुगंध पौधा संस्थान (सीमैप), लखनऊ में व्यापक अनुसंधान हो रहा है और अधिक उपज देने वाली उन्नतशील किस्मों को विकसित किया गया है। आईए, तुलसी की विभिन्न प्रजातियों के बारे में विस्तार से जानते हैं-

पवित्र तुलसी (ऑसीमम सैक्टम)
पवित्र तुलसी एक बारहमासी औषधीय व सुगंधित पौधा है, जिसकी ऊँचाई 30-60 सेमी. तक बढ़ती है। भारत के विभिन्न गर्म और आद्र्र जलवायु वाले क्षेत्रों में पवित्र तुलसी की खेती इसकी पत्तियों के उत्पादन के लिए की जा रही है। इसके तेल में यूजीनोल नामक प्रमुख रासायनिक घटक पाया जाता है। इस फसल के अंतर्गत दो प्रकार की किस्में उगाई जाती हैं- पहली ग्रीन टाइप (पूजा तुलसी), जैसे सिम-आयु एवं सिम-कंचन; और दूसरी बैंगनी प्रकार की (कृष्णा तुलसी), जैसे सिम-अंगना। ये सभी सीएसआईआर-केन्द्रीय औषधीय तथा सुगंध पौधा संस्थान (सीमैप), लखनऊ द्वारा विकसित उन्नतशील प्रजातियाँ हैं। तुलसी तेल का प्रयोग लंबे समय से कई दवा कंपनियाँ विभिन्न दवाओं को बनाने में कर रही हैं।

इसका उपयोग सिर दर्द की समस्या, आँखों के दर्द, खाँसी-जुकाम, कफ, वात, ज्वर (बुखार), दमा, तनाव, दाँत का दर्द, दाँत में कीड़ा लगना, मसूड़ों में खून आना, सर दर्द, पायरिया, नकसीर, फेफड़ों की सूजन, अल्सर तथा दिल की बीमारियों में किया जाता है। आजकल इसके औषधीय गुणों को देखते हुए इसकी पत्तियों से ‘तुलसी चाय’ भी बनाई जा रही है।

कृष्णा तुलसी

बोबई तुलसी (ऑसीमम बेसिलिकम)
बोबई तुलसी मरुआ तुलसी या फ्रेंच तुलसी या स्वीट बेसिल के नाम से भी जानी जाती है। बोबई तुलसी एक सुगंधित पौधा है जिसकी ऊँचाई 30-90 सेमी. तक बढ़ती है। इसकी पत्तियाँ कुछ बड़ी, नुकीली, मोटी, नरम और चिकनी होती हैं जिनमें से काफी तेज़ महक आती है। इसकी फुनगी पर कार्तिक-अगहन में तुलसी की भाँति मंजरी निकलती है जिसमें छोटे-छोटे सफेद फूल लगते हैं। इसके तेल में प्रमुख रासायनिक घटक मिथाइल चेविकाल और लिनालूल पाए जाते हैं। भारत में बोबई तुलसी की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में केंद्रित है। परन्तु भारत के विभिन्न राज्यों, जैसे मध्यप्रदेश, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक तथा तमिलनाडु में भी इसके महत्वों को देखते हुए इसकी खेती की जा रही है। सीएसआईआर-सीमैप, लखनऊ द्वारा इस तुलसी की विकास-सुधा, सिम-सौम्या, सिम-सुरभि तथा सिम-शारदा नामक किस्में विकसित की गई हैं। विकास सुधा जाति लंबी, जबकि सिम सौम्या बौनी किस्म की है। फ्रैंच तुलसी में ही एक सिम-स्निग्धा नामक उन्नतशील किस्म सीमैप, लखनऊ द्वारा विकसित की गई है जिसमें मिथाइल सिनमेंट नामक घटक पाया जाता है। शोधानुसार इस तुलसी को जीवाणुरोधी, ऐंटीफंगल, ऐंटी सूक्ष्मजीवी जैसी कई गतिविधियों में प्रभावी पाया गया है। इसका तेल भोजन सामग्री, कन्फेक्शनरी, मसालों और सुगंध उद्योग में उपयोग में लाया जाता है।

नींबू तुलसी (ऑसीमम अफ्रीकन)
नींबू तुलसी को लेमन बेसिल या नींबू सुगंधित बेसिल भी कहा जाता है। नींबू तुलसी में सिट्रॉल नामक रासायनिक तत्व पाया जाता है, जिस कारण इसे नींबू तुलसी कहा जाता है। यह तुलसी 30 से 60 सेमी. लंबी, वार्षिक या अल्पजीवी बारहमासी शाक होती है। इस तुलसी को वर्षा ऋ तु में लगाना उचित रहता है। नींबू तुलसी की पत्तियों में जीवाणुरोधी गुण पाया जाता है एवं इसके पौधों से निकलने वाले तेल में एंटिफंगल गुण पाया जाता है। सीएसआईआर-सीमैप, लखनऊ ने इसकी सिम ज्योति नामक उन्नतशील किस्म विकसित की है जिससे लगभग 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर शाक एवं औसतन 150 किग्रा. तेल प्रति हेक्टेयर की दर से प्राप्त हो जाता है। यह किस्म 70-80 दिनों की छोटी अवधि में ही तैयार हो जाती है एवं इससे सिट्रल का उत्पादन किया जा सकता है। लेमन बेसिल का उपयोग सूप, स्टूज़, सब्जियों और तले हुए व्यंजनों में बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसकी पत्तियों का व्यापक उपयोग लेमन टी में किया जाता है। लेमन बेसिल की पत्तियों को अक्सर सलाद अथवा कच्ची सब्जियों के साथ कच्चा खाया जाता है।

बन तुलसी (ऑसीमम ग्रेटिसिकम)
भारत में इसे कई नामों से जाना जाता है, जैसे- राम तुलसी, वृधु तुलसी, बन तुलसी और अरण्य तुलसी आदि। इसके पौधे को वानस्पतिक भाषा में ‘ऑसीमम ग्रेटिसिकम’ कहा जाता है। इसकी पत्तियों से घर में ही मसाला चाय बनाई जा सकती है। बन तुलसी बारहमासी जड़ी-बूटी या नरम झाड़ी वाला पौधा है जिसकी लंबाई 2 मीटर या इससे अधिक होती है। इसके पौधे में पुष्प अगस्त से दिसंबर में खिलते हैं और बीज जनवरी से मार्च तक परिपक्व हो जाते हैं। इसके पौधे में थाइमोल एवं यूजेनॉल नाम का मुख्य रासायनिक यौगिक पाया जाता है। इसके पौधे की पत्तियों का उपयोग सिरदर्द, सूर्यास्तक, इन्फ्लूएंजा के उपचार और ज्वर में किया जाता है। इसकी पत्तियों में रोगाणुरोधी, एंटीऑक्सीडेंट, एंटिफंगल एक्ट और एंटीपायरेटिक गुण पाए जाते हैं।

कपूर तुलसी (ऑसीमम किलिमण्डचेरिकम)
ऑसीमम किलिमण्डचेरिकम को आमतौर पर हिंदी में कपूर तुलसी कहा जाता है जो एक बहुवर्षीय, ओवेट-ऑबॉन्ग पत्तियों वाली खुशबूदार एवं आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण तुलसी की प्रजाति है। इसकी पत्तियाँ पारंपरिक रूप से सर्दी, खाँसी, पेट दर्द, खसरा और दस्त के इलाज के लिए उपयोग की जाती रही हैं। भारत एवं विश्व भर में हुए कपूर तुलसी पर शोधों के परिणामों से पता चला है कि औषधीय एवं जैविक गतिविधियों में यह उत्तेजक, ज्वरनाशक, ऐंटिफंगल, जीवाणुरोधी, कीट विकर्षक, कैरमिनिटिव और एंटीऑक्सीडेंट होती है।

 

अमेरिकन बेसिल (ऑसीमम अमेरिकन)
इस तुलसी के पौधे को सामान्य भाषा में अमेरिकन बेसिल कहा जाता है। इस तुलसी के पौधे की ऊँचाई 15-60 सेंमी. तक होती है। यह जड़ी-बूटी उष्णकटिबंधीय अफ्रीका और दूसरे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सामान्यत: पाई जाती है। भारत में यह जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल और दिल्ली में बहुतायत में पाई जाती है। इसकी पत्तियाँ अण्डाकार, दांतेदार, चमकदार और ग्रंथि बिंदीदार होती है। इसकी पत्तियों का पेस्ट बनाया जाता है जिसका उपयोग विशेष तौर पर त्वचा संबंधी रोगों के उपचार में किया जाता है। पेस्ट को घावों और जलन पर भी लगाया जाता है। इस समूह की प्रजातियों की पत्तियों में प्रमुख घटक के रूप में सिट्राल, कैम्फोर, लिनलूल, जेरेनियाल और सिट्रोनेलोल पाया जाता है। इसकी पत्तियाँ सुगंधित, तीखी, कड़वी, थर्मोजेनिक, क्षुधावर्धक, पाचक, कार्मिनेटिव, डिप्यूरेटिव, एक्सपेक्टोरेंट, एंटीलमिंटिक तथा कार्डियो टॉनिक जैसे कई गुणों से युक्त हैं। इसके बीज एंटीडायबिटिक जैसी गतिविधियों के लिए प्रभावी पाए गए हैं। इसकी पत्तियाँ गला, माइग्रेन, मलेरिया, अपच, पेट फूलना, पेचिश, कुष्ठ, उल्टी में बहुत उपयोगी हैं।

फीवर तुलसी (ऑसीमम विरिडी)
इस तुलसी के पौधे को सामान्य भाषा में फीवर तुलसी कहा जाता है। इस तुलसी का उत्पत्ति स्थान अफ्रीका माना जाता है, बाद में इसके पौधे को भारत में लाया गया। यह तुलसी सामान्यत: जम्मू-तवी क्षेत्र में पाई जाती है। जब इस तुलसी के पुष्प पूर्ण खिलने की अवस्था में होते हैं तब इसकी शाक से तेल की उपज लगभग 0.4 प्रतिशत प्राप्त की जा सकती है। इसके तेल में थाइमोल का अधिकतम 55.12 प्रतिशत होता है, जिसे थाइम-अजोवन तेल के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका प्रयोग माइक्रोबियल संक्रमण, फफूंद संक्रमण, दस्त, पाचन समस्याओं, घाव, सूजन, दर्द, उच्च रक्तचाप, बालों के झडऩे, बुखार, तनाव और अन्य स्थितियों के उपचार के लिए किया जाता है।

भारत में पायी जाने वालीं विभिन्न प्रकार की तुलसी मानव के लिए किसी प्राकृतिक वरदान से कम नहीं हैं। आप तुलसी की प्रजातियों को उचित दूरी अपनाकर कुछ पारंपरिक फसलों के साथ अंतर-फसल के रूप में भी उगा सकते हैं। पवित्र तुलसी (ऑसीमम सैक्टम) और बोबई तुलसी (ऑसीमम बेसिलिकम) की किस्में 90 से 120 दिनों में तैयार हो जाती हैं। पवित्र तुलसी (ऑसीमम सैक्टम) के तेल का भाव लगभग 5000/- से 6000/- रुपये प्रति किग्रा. बाज़ार और उद्योगों से मिल जाता है  जबकि बोबई तुलसी (ऑसीमम बेसिलिकम) के तेल की कीमत लगभग 500/- से 700/- रुपये प्रति किग्रा. बाज़ार और उद्योगों में रहती है। जो किसान रासायनिक घटक सिट्रॉल के लिए बहुवर्षीय लेमनग्रास की खेती करते हैं उनके लिए नींबू तुलसी या लेमन बेसिल की किस्म सिम-ज्योति बेहतर साबित हो सकती है। नींबू तुलसी या लेमन बेसिल 70 से 80 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है जिससे किसान को फसल चक्र में आसानी होती है। बन तुलसी (ऑसीमम ग्रेटिसिकम) की माँग मसाला उद्योग में अधिक रहती है। इसके अलावा कई तरह के चाय उद्योग में भी इस तुलसी की काफी ज्यादा माँग है। पर्वतीय इलाकों में भी तुलसी की बहुवर्षीय किस्मों को लगाकर आर्थिक प्रगति की जा सकती है। तुलसी की विभिन्न प्रजातियाँ औषधीय गुणों से भरपूर होने के साथ-साथ किसानों के लिए मुनाफे की खेती का सौदा हैं।

लेखक: आशीष कुमार
सीएसआईआर-सीमैप अनुसंधान केंद्र,
बोदुप्पल, हैदराबाद- 500092  संपर्क: 7416553419

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One Comment

  1. मैंने आपके इस ब्लॉग के माध्यम से पहली बार तुलसियों के कितने प्रकार के बारे में जाना है इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद

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