संपादकीय

बजट से नहीं, समझ से करे खेती

यह बड़े ही आश्चर्य की बात है कि हर साल बजट में बहुत सारी योजनाओं की घोषणा तो होती है परंतु उनमें से कितनी पूर्ण हो पाती हैं यह तो सरकार भी नहीं बता पाती। हाँ, इतना ज़रूर आपको पता चल जाएगा कि इन योजनाओं और घोषणाओं के लिए जो बजट आवंटित हुआ था, वह पूरा खर्च हो चुका है। परंतु आम जनता को इन योजनाओं से क्या लाभ हुआ, इसका किसी को नहीं पता होता है। और लाभार्थियों के सिर्फ आंकड़े ही मिलेंगे आपको, इनकी सूची प्राप्त करने में आपको काफी मशक्कत करनी पड़ेगी।

हर वर्ष बजट पेश होता है और उसका क्या होता है, यह तो आपको पता ही है। यदि सिर्फ बजट बढ़ाने से समस्या हल हो जाती तो भारत में सभी समस्याएँ हर साल बजट सत्र में ही हल हो जानी चाहिए थीं और भारत आज विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा होता, क्योंकि भारत के बजट में हर साल करोड़ों-अरबों रुपयों की बढ़ोत्तरी होती है। मेरा मानना है कि इतने बड़े लोकतंत्र में हर साल बजट न बनाकर ५ सालाना बजट बनाया जाए तो समय की भी बचत होगी और हर साल नई-नई योजनाओं की घोषणाओं से भी बचा जा सकेगा। बजटीय योजनाओं की सिर्फ घोषणा ही होती है, वे पूरी कब और कैसे होंगी इसका किसी को पता नहीं होता। उदाहरण के तौर पर, स्मार्ट सिटी कब तक बनेगी किसी को नहीं पता। नोटबंदी में कितना कालाधन आया, किसी को नहीं पता। (आरबीआई अभी तक नोटों की गिनती भी पूरी नहीं कर पाया है।) जनधन खाते खुलवाकर गरीब को क्या फायदा हुआ, किसी को नहीं पता। ‘सांसद ग्राम योजना’ के अंतर्गत सांसदों ने कितने गाँवों को गोद लेकर कितने गाँवों की तस्वीर बदल दी, किसी को नहीं पता। क्या भारत अब डिजिटल इंडिया में बदल चुका है, किसी को नहीं पता। क्या भारत में लेन-देन कैशलेस हो गया है, किसी को नहीं पता। और भी ऐसी बहुत सारी योजनाएँ चल रही हैं देश में, यदि सबका विवरण दूँगा तो चार-पाँच पृष्ठ भर जाएँगे। सरकार को चाहिए कि अगली घोषणा करने से पहले अपनी पुरानी घोषित योजनाओं की स्थिति की जाँच करे और फिर किसी नयी योजना की घोषणा करे। इन योजनाओं की समय-सीमा क्या होगी, इनका क्रियान्वयन कैसे होगा, इन योजनाओं के लिए आवंटित बजट की व्यवस्था कैसे होगी, इन योजनाओं से आम जनता पर क्या असर होगा, क्या योजनाओं की घोषणा करने से पहले आम जनता से पूछा गया है, क्या जो योजना बनाई जा रही है उसका किसी क्षेत्र में प्रायलट प्रोजेक्ट बनाकर प्रयोग किया जा चुका है; इन सब सवालों के सुस्पष्ट उत्तर दिए जाने चाहिए। केवल घोषणावीर होने से काम नहीं चलता।

अभी हाल में केन्द्रीय बजट पेश हुआ और इस बार किसान का बजट पेश हुआ, ऐसा प्रसारित हो रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि बजट में सिर्फ भविष्य के सपने दिखाए गए हैं, वर्तमान में किसानों को कोई राहत नहीं दी गई है। न किसानों का कजऱ् माफ किया गया है, न ही समर्थन मूल्य पर खरीदी सुनिश्चित करने के लिए कोई कानून बनाया गया है। सिर्फ २०२२ तक किसान की आमदनी दुगुनी करने के सपने दिखाए गए हैं। आमदनी दुगुनी होगी कैसे, उसका कोई रोडमैप नहीं बताया गया है।

खैर कोई बात नहीं क्योंकि सरकारें तो इसी तरह से काम करती हैं और निरंतर करती रहती हैं, चाहे किसी भी पार्टी की सरकार हो। सरकार एक निरंतर कार्य करने वाली संस्था ही है जिसे राजनीतिक पार्टी के लोग अफसरशाही के लोगोंं का इस्तेमाल करके चलाते हैं। सरकार बदलने पर सरकार की विचारधारा बदल जाती है परंतु सरकार की कार्यशैली और सरकारी तंत्र में कोई बदलाव नहीं होता है। इस सरकारी तंत्र को बदलने वाली सरकार कब आयेगी? यह विचारणीय प्रश्न है।

अब तो देखना यह है कि बजट में किसानों के लिए जो घोषणाएँ हुई हैं, उनका फायदा किसानों को कब तक मिलेगा। क्या बजट में हुई घोषणाओं से किसानों की आत्महत्याओं का दौर रुक जाएगा? किसानों के कजऱ् पट जाएँगे? किसानों की स्थिति में सुधार हो जाएगा? किसानों की दिन ब दिन घट रही तादाद घटनी बंद हो जाएगी? किसानों को फसलों के उचित दाम मिलेंगे? किसानी की लागत कम होगी? किसानों को प्राकृतिक आपदाओं का मुआवज़ा तुरंत मिलेगा? किसानों को मँहगाई से राहत मिलेगी? ऐसे कई सारे प्रश्न हैं जो किसानों के दिमाग में बहुत तेज़ी से इधर-उधर चक्कर लगा रहे हैं।

यदि खेती सिर्फ बजट में घोषणा करने भर से हो जाती तो भारत का किसान तो ७० वर्षों का बजट देख चुका है। क्या इन बजटों के पेश होने के बाद भी किसान की स्थिति में सुधार आया है? नहीं, बल्कि हर बजट के साथ किसानों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। बजट से खेती नहीं होती है, खेती होती है समझ से।

किसान भाइयों को चाहिए कि भगवान ने जो दिमाग दिया है उसका इस्तेमाल करें, सही समझ विकसित करें, और उसी समझ का उपयोग करकेखेती करें, तभी जाकर खेती की परेशानियों से बचा जा सकेगा। इस समझ को विकसित करने के लिए सबसे पहले किसान को खेती का सही ज्ञान प्राप्त करना होगा। खेती की बारीकियों को सीखना होगा। किसी भी उत्पाद को पूरी ज़मीन में इस्तेमाल करने से पहले थोड़ी जगह में उपयोग करके देखना होगा। किसानों को अपनी ताकत को पहचानना होगा। किसानों को पता होना चाहिए कि मैंने जो फसल लगाई है जब वह फसल आएगी तो उसका बाज़ार कहाँ होगा और उसका मूल्य क्या होगा। अभी जो खर्चीली और ज़हरीली खेती किसान कर रहा है, उससे निजात कैसे मिलेगी इस पर विचार करने की किसान को ज़रूरत है। सिर्फ आपके पास अधिक पैसा या बजट होने से खेती नहीं हो पाएगी यह बात आप ध्यान रखना, क्योंकि प्रकृति की अनदेखी करके खेती कभी भी फायदे में नहीं आएगी। इसलिए हमें चाहिए कि हम प्रकृति के नियम और कायदे मानकर खेती करें। जब हम भूमि, गगन, वायु, अग्नि व जल इन पाँचों तत्वों को संरक्षित करेंगे, तभी हम सही किसान कहलाएँगे। इन तत्वों को बचाने के लिए हमें सही समझ विकसित करनी होगी। हमें ऐसी समझ विकसित करनी होगी कि जब हम खेती करें तो इन तत्वों को कोई नुकसान नहीं पहुँचे। यदि इन तत्वों को कोई नुकसान पहुँचेगा तो आकस्मिक प्राकृतिक आपदाएँ आएँगी, जैसे अभी पिछले महीने फरवरी में बहुत सी जगह ओला-वृष्टि और बेमौसम बारिश ने कहर बरपाया। अब तो लगभग हर वर्ष ही फरवरी-मार्च में ओला-वृष्टि होने लगी है। अगर अभी भी इंसान प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करके खेती करेगा तो इस प्रकार मौसम परिवर्तन और आगे चलकर खाद्यान्न समस्या से जूझना पड़ेगा।

मेरा किसान भाइयों से निवेदन है कि किसी और की देखा-देखी न करें। अपने पास उपलब्ध संसाधनों से खेती करें और अपनी समझ से खेती करें और आज से ही प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट करने वाली रासायनिक, ज़हरीली एवं लालच भरी खेती को छोड़कर प्राकृतिक खेती, परंपरागत खेती या जैविक खेती को अपनाएँ, तभी मौसम परिवर्तन, बहुत सारी बीमारियों और खाद्यान्न समस्या से निजात पा पाएँगे। इसी में हमारी भी भलाई है और आने वाली पीढ़ी की भी।

पवन नागर, संपादक

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