
वर्तमान समय में हमारे भोजन और फसलों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।बदलता स्वास्थ्य व इंसानी शरीर में आ रही जानलेवा बीमारी इसकी और संकेत कर रही है।आज खेतों से लेकर थाली तक आने वाली हर दाल, सब्जी, फल और अनाज की असलियत पर अगर नज़र डालें तो यह चिंता बढ़ जाती है कि आखिर हम और हमारी आने वाली पीढ़ियाँ क्या खा रही हैं।
बीते कुछ दशकों में खेती की दिशा पूरी तरह बदल चुकी है। पारंपरिक खेती, जिसमें किसान प्राकृतिक तरीके से फसल उगाते थे गोबर की खाद का उपयोग होता था, अब लगभग विलुप्त होने की कगार पर है। उसकी जगह ले ली है रसायन आधारित खेती ने।
खेती में बढ़ते रसायनों का गंभीर खतरा।
व्यापारिक दृष्टिकोण और ज्यादा उपज की लालसा ने किसानों को खाद और कीटनाशकों पर निर्भर बना दिया।गेंहू, धान, मक्का, मूंगदाल, चना, अदरक, धनिया जैसी पारंपरिक फसलें हों या फिर मौसमी सब्जियां और फल आज अधिकांश किसान इन्हें रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की भरमार के साथ उगाते हैं इन रसायन और उर्वरकों का बेतहाशा इस्तेमाल कर रहे है।जिसको सुसभ्य मनुष्य भी आंखे बंद करके खा रहा है।रसायनों का यह अत्यधिक प्रयोग जमीन की उपजाऊ शक्ति को कमजोर कर रहा है, पानी को प्रदूषित कर रहा है और सबसे बड़ी चिंता यह है कि ये सीधे-सीधे हमारे शरीर तक पहुंचकर गंभीर बीमारियों का कारण बन रहे हैं यह शरीर मे धीमे धीमें जाता है और अचानक ही कोई मौत हो जाती है लेकिन हम इसे ईश्वर की मर्जी कहकर मन को सन्तोष कर लेते है।
वैज्ञानिक शोधों और स्वास्थ्य रिपोर्टों में साफ बताया गया है कि रसायनों से पके या संरक्षित किए गए फलों और सब्जियों से धीरे-धीरे जहर हमारे खून में घुलता है। यह जहर तुरंत असर नहीं दिखाता, बल्कि वर्षों तक शरीर में जमा होकर कैंसर, हार्ट अटैक, डायबिटीज, किडनी फेल और पाचन तंत्र की कई समस्याओं को जन्म देता है। आज हालात यह हैं कि किसान भी खुद इन रसायनों के नुकसान से अछूते नहीं हैं। छिड़काव के दौरान उन्हें त्वचा रोग, सांस की बीमारियां और आंखों में जलन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
वहीं उपभोक्ता, जो बाजार से सब्जियां और फल खरीदता है, उसे भी सुरक्षित भोजन की गारंटी नहीं मिलती। यह स्थिति हमारे पूरे समाज और स्वास्थ्य तंत्र के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुकी है।खेती में बढ़ते रसायनों ने न केवल इंसानों बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाया है। बारिश का असंतुलन, मिट्टी की नमी का खत्म होना, जलस्रोतों में प्रदूषण और भूमि की उर्वरकता का क्षरण इसी रासायनिक खेती का परिणाम है। यही कारण है कि आज बदलते मौसम, कभी तेज आंधी, कभी बेमौसम बारिश और कभी सूखा जैसी समस्याएं बार-बार सामने आ रही हैं।
अब सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि क्या हमारा भोजन जहर मुक्त है?
सच तो यह है कि वर्तमान परिस्थितियों में इसका उत्तर नकारात्मक है। जब तक खेती में रसायनों पर निर्भरता बनी रहेगी, तब तक भोजन और फसलें पूर्णतः सुरक्षित नहीं हो सकतीं।जरूरत इस बात की है कि किसान और उपभोक्ता दोनों जागरूक हों। किसानों को जैविक खेती, गोबर खाद, वर्मी कंपोस्ट, नीम आधारित कीटनाशक और परंपरागत तरीकों को प्राकृतिक तरीको को अपनाना होगा जिसमें कीटनाशक तो हो लेकिन यह आयुर्वेदिक हो जमीन से जुड़े हो जमीन के लिए फायदेमंद हो इन्हें अपनाना होगा। वहीं उपभोक्ताओं को भी बाजार में रासायनिक खाद्य पदार्थों से बचकर स्थानीय, देसी और जैविक विकल्पों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
हमारा भोजन तभी सचमुच जहर मुक्त होगा, जब खेती व्यापार का साधन न रहकर जीवन का आधार बने। यह केवल किसानों की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज का कर्तव्य है कि वह सुरक्षित और स्वस्थ भोजन की दिशा में कदम बढ़ाए।