आलेख

खेतों की मिट्टी हुई कमज़ोर, बड़े खतरे की घंटी

लेखक: मनीष वैद्य

मध्यप्रदेश के अधिकांश इलाकों में खेतों की मिट्टी अपनी ताकत खोती जा रही है। यह पर्यावरण के साथ-साथ हमारी खेती के लिए भी बड़े खतरे की घंटी है। लंबे समय से लगातार खेतों में बड़ी तादाद में रासायनिक खादों के इस्तेमाल से अब मिट्टी की उर्वरा शक्ति कमज़ोर पड़ती जा रही है।

यहाँ तक कि डिंडौरी जैसे ठेठ आदिवासी और जंगल के इलाके में भी मिट्टी में घटते पोषक तत्वों की वजह से उनमें होने वाले अनाज और सब्जि़यों में भी पोषक तत्वों की भारी कमी हो रही है। यही वजह है कि यहाँ के लोगों के शरीर को इनसे मिलने वाला पोषण नहीं मिलने से मौजूदा और भावी पीढ़ी दोनों ही कुपोषण के जाल में फँसती जा रही हैं। हैरानी की बात यह है कि अरबों-खरबों रुपये लगाकर सरकार मृदा स्वास्थ्य कार्ड तैयार करवा कर मिट्टी की सेहत जाँच तो करवा रही है, लेकिन जाँच में मिट्टी के कमज़ोर मिलने पर संबंधित किसानों को मिट्टी की सेहत सुधारने के लिए फिर से रासायनिक खाद की सलाह दी जा रही है, जो बेहद खतरनाक साबित हो सकती है।

यहाँ के ठेठ आदिवासी इलाके में अगरिया जनजाति बाहुल्य गाँव बरगा कुरैली की सक्को बाई कहती हैं कि अब माटी में वह ताकत नहीं रही। अनाज भी भूसे की तरह हो गया है। सक्को बाई की इस बात ने इशारा कर दिया कि यहाँ की मिट्टी की उपजाऊ क्षमता और उसमें ज़रूरी पोषक तत्वों की कमी हो सकती है।

बरगा कुरैली गाँव से सटे हुए ही जाता डोंगरी गाँव के ओमप्रकाश पिता मूलचंद की पाँच एकड़ ज़मीन है। ओमप्रकाश धान, मटर और गेंहूँ की फसल उगाते हैं। ओमप्रकाश बताते हैं कि उन्होंने अपने खेत की मिट्टी का परीक्षण कराया है। मृदा परीक्षण कार्ड के मुताबिक मिट्टी में गड़बड़ी है। ओमप्रकाश के कार्ड के मुताबिक जैविक खाद के साथ ही धान और गेंहूँ की फसल में रासायनिक खाद डालने की सलाह लिखी गई है। ओमप्रकाश ऐसे अकेले किसान नहीं हैं, अधिकांश किसानों के यही हाल हैं।

डिंडौरी स्थित मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला प्रभारी जगदीश बिसेन और दीपक कुमार ने बताया कि अब तक जिले के एक लाख 43 हजार खसरों (ज़मीन खाते) के 28 हज़ार मृदा स्वास्थ्य कार्ड तैयार किए जा चुके हैं। भारत सरकार का कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय देशभर में मिट्टी की जाँच कर किसानों को बता रहा है कि उनके खेतों की मिट्टी की सेहत कैसी है। मिट्टी की सेहत खराब होने से फसलें तो प्रभावित होती ही हैं, उनमें पर्याप्त पोषक तत्वों का संतुलन भी बिगड़ जाता है। डिंडौरी जिले के अधिकांश खेतों की मिट्टी में पोषक तत्वों का भारी असंतुलन देखने को मिला। मिट्टी में बारह तत्वों में से ज़्यादातर तत्व या तो बहुत कम हैं या फिर बहुत ज़्यादा हैं। मिट्टी में पोषक तत्वों के असंतुलन का सबसे बड़ा कारण रासायनिक खाद और कीटनाशकों का बेतरतीब इस्तेमाल होना और फसल चक्र को पूरा नहीं करना है।

इन बारह तत्वों में से छह तत्व पूरी तरह असंतुलित हैं। ऐसी मिट्टी में उपजे अनाज को खाने से आदिवासियों में कुपोषण और कई तरह की बीमारियाँ घर कर रही हैं। मिट्टी के असंतुलित पोषक तत्वों में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम, सल्फर और जि़ंक शामिल है। ज़ाहिर है कि इन ज़रूरी पोषक तत्वों की कमी के कारण ही कुपोषण और खतरनाक बीमारियाँ तेजी से पैर पसार रही हैं। शरीर में जिस तरह विटामिन्स, प्रोटीन्स, कार्बोहाईड्रेट्स और फायबर की ज़रूरत होती है, ठीक उसी प्रकार से एक पौधे और फसल के लिए भी मिट्टी में तमाम तरह के तत्वों की ज़रूरत होती है। इन दिनों शरीर के लिए ज़रूरी अनाज व सब्जियों में पोषक तत्वों की कमी मिट्टी में आई पोषक तत्वों की कमी का नतीजा है।

मिट्टी में जि़ंक की कमी से अनाज में भी इसकी कमी पाई जाती है। शरीर में जि़ंक की कमी के कारण रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता घटती है जिससे निमोनिया, जुखाम व सांस संबंधी समस्याएँ हो जाती हैं। सल्फर की कमी के कारण शरीर में नाखून और बालों की समस्याएँ होने लगती हैं। आयरन की कमी से खून की कमी होती है। शरीर में 20 प्रतिशत आयरन की मात्रा ज़रूरी है। खून का प्रमुख घटक लाल रक्त कणिकाएँ तैयार करने में आयरन की अहम भूमिका होती है। आयरन की कमी के चलते एनिमिया हो जाता है। गर्भवती महिलाओं में एनिमिया होने से कुपोषित बच्चे जन्म लेते हैं और जन्म के बाद भी उनके दूध में पर्याप्त पोषकता नहीं रहती है।

नाइट्रोजन की कमी या अधिकता यानी प्रोटीन की कमी या अधिकता होती है। प्रोटीन से शरीर की कोशिकाएँ तैयार होती हैं। प्रोटीन शुगर को नियंत्रित करने का भी काम करता है। डिंडौरी के खेतों की मिट्टी में नाइट्रोजन की उच्चता है। ज़्यादा प्रोटीन भी खतरनाक होता है।

अधिकाँश खेतों में फॉस्फोरस की कमी पाई गई है। फॉस्फोरस की कमी के चलते हड्डियों की बीमारियाँ होने लगती हैं। इससे घुटने, कमर और हड्डियों से संबंधित बीमारियाँ होती हैं। कई जगह पोटेशियम की मात्रा में भी असंतुलन पाया गया है। इसके असंतुलन से दिमागी रोग होते हैं।

उल्लेखनीय है कि डिंडौरी जिले में गौंड, सहरिया, बेगा और अगरिया सहित महत्वपूर्ण और दुर्लभ जनजातियों के लोग बड़ी संख्या में रह रहे हैं। इन जनजातियों में कुपोषण तेजी से फैल रहा है। यहाँ के ठेठ आदिवासी इलाके में अगरिया जनजाति बाहुल्य गाँव बरगा कुरैली में लोगों के पास दो वक्त के खाने का बंदोबस्त तो है और स्कूल और आंगनवाडिय़ों में सरकारी खाना भी मिल रहा है, पर कुछ लोग आज भी अपने खेतों का अनाज ही खा रहे हैं। यहाँ ज़्यादातर अगरिया औरतों में एनिमिया यानी खून की कमी है। उनसे होने वाली संतानों को भी ये महिलाएँ ठीक से स्तनपान नहीं करवा पा रही हैं। गाँव के ही कुछ नौजवानों को शुगर और ब्लडप्रेशर जैसी बीमारियाँ हैं।

मृदा परीक्षण प्रयोगशाला प्रभारी जगदीश बिसेन भी स्वीकार करते हैं कि हमारा काम सिर्फ मिट्टी के सेंपल की जाँच करना है। डिंडौरी के खेतों की मिट्टी में ज़रूरी तत्वों का बेहद असंतुलन है। इन्हें संतुलित करने के लिए रासायनिक खाद डालने की सलाह दी जाती है। इसके साथ जैविक खाद को मिलाने की सलाह भी देते हैं। जो लोग पूरी तरह से जैविक खाद के इच्छुक होते हैं उन्हें वैसी सलाह देते हैं, लेकिन ऐसे लोग कम ही मिलते हैं। सभी प्रयोगशाला वाले रासायनिक खाद की सलाह ही देते हैं।

रसायनशास्त्री प्रद्युम्न सिंह राठौर बताते हैं कि मिट्टी में सभी ज़रूरी तत्वों का अपना-अपना काम होता है। बीजों के जर्मिनेशन से लगाकर उनकी ग्रोथ और अनाज के दाने का पोषक होना इन्हीं तत्वों पर निर्भर करता है। मिट्टी के पर्याप्त तत्वों वाले अनाज को खाने से ही हमारे शरीर में भी पर्याप्त पोषण मिलता है। ज़्यादातर बीमारियाँ इसीलिए हो रही हैं क्योंकि रासायनिक खाद, कीटनाशक और फसल-चक्र बिगडऩे से ज़मीन की उर्वरता यानी मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व खत्म हो रहे हैं। यही कारण है कि बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं।

इस सबमें सबसे बुरी बात यह है कि हर किसान रासायनिक खाद के दुष्परिणामों को जानने-समझने के बाद भी इन उर्वरकों का लगातार उपयोग अपने खेतों में कर रहा है। इससे मिट्टी कमज़ोर से और कमज़ोर होती जा रही है तथा उत्पादन भी कम होता जा रहा है। किसानों के पास रासायनिक उर्वरकों के विकल्प नहीं हैं। जैविक खाद और जैविक खेती के लिए लगातार किए जा रहे प्रयासों के बावजूद अधिकांश किसान अब भी इससे गुरेज़ करते नज़र आते हैं। न तो किसानों को इस बारे में यथोचित जानकारी है और न ही अब तक सरकार ने इसके लिए कोई ठोस कदम उठाए हैं।

संपर्क कर सकते है:
देवास (मध्यप्रदेश)
मोबाईल: 9826013806

Tags

Related Articles

One Comment

  1. किसानों को इस संकट से बचने के लिए बड़ी मात्रा में जैविक खाद या वर्मी कंपोस्ट का प्रयोग करना चाहिए जैसा कि मेरा मानना है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close