संपादकीय

मेरे पास समय नहीं है।

पवन नागर

मेरे पास समय नहीं है।

आजकल यह उक्ति बहुत चलन में है और हर कोई इसका इस्तेमाल करता है। आप लोग भी इस उक्ति का कभी न कभी शिकार तो हुए ही होंगे या हो रहे होंगे। आजकल जिसे देखो वही कह देता है कि ‘अभी मेरे पास समय नहीं है! ‘ खासकर कई सारे किसान भाई अनेक महत्वपूर्ण कामों के संदर्भ में इस उक्ति का इस्तेमाल करने लगे हैं। कितने दुख की बात है कि आज उनके पास गाय की देखभाल के लिए समय नहीं है, खेत पर जाने के लिए समय नहीं है, ज़हरमुक्त अनाज उगाने के लिए समय नहीं है, खुद के बगीचे में सब्ज़ी लगाने के लिए समय नहीं है, अपने परिवार को बीमारियों से बचाने के लिए समय नहीं है। बड़ी ही हैरानी की बात है यह तो।

आज आधुनिक तकनीक ने किसान भाइयों का बहुत सारा समय बचाना शुरू कर दिया है, जिससे किसानी का काम आसानी से समय पर हो जाता है और किसान के पास समय ही समय बचता है। आज ट्रैक्टर के इस्तेमाल से कई एकड़ खेत की बोनी-बखरनी एक ही दिन में हो जाती है, जो पहले बैलों से करने में कई दिन लगते थे। हारवेस्टर के उपयोग से फसल की कटाई व निकलाई की प्रक्रिया भी एक ही दिन में पूरी हो जाती है। जबकि पहले मज़दूरों से कटाई करानी पड़ती थी, फिर थ्रेसिंग करके फसल निकालनी होती थी, जो कई दिनों की प्रक्रिया थी और मज़दूरों की उपलब्धता पर निर्भर रहती थी। पहले कई किसानों का अधिकतर समय पीने के पानी का इंतज़ाम करने के लिए आरक्षित रहता था, अब घर-घर नल कनेक्शन हो जाने से वो भी बच गया है। पहले किसान को घर के लिए जलाऊ लकड़ी लाने तीन-चार दिन के लिए बैलगाड़ी से जंगल भी जाना पड़ता था। कुल मिलाकर कहें तो पहले किसान दिन-रात लगा रहता था। परंतु अब उतनी व्यस्तता नहीं है। तो अब तो किसान के पास पहले से ज़्यादा समय होना चाहिए। अब तो उसे पहले से ज़्यादा कामों में हाथ डालने को आतुर होना चाहिए। लेकिन इसके विपरीत अब वह बेहद ज़रूरी कामों के लिए भी समय न होने का रोना रो रहा है। क्यों? आखिर कहाँ जा रहा है उसका समय?

इसी आधुनिक तकनीक ने मोबाईल, टीवी, मोटर-साइकिल, कार तथा फ्रिज जैसी विलासी चीज़ें भी पैदा की हैं, जिन्होंने सुविधा तो बढ़ाई पर इंसान को आलसी एवं विलासी भी बना दिया है। अब लोगों का अधिकांश खाली समय टीवी देखने या सोशल नेटवर्किंग साइट्स की आभासी दुनिया में विचरण करने या मोबाइल पर वीडियो देखने अथवा गेम खेलने में बीतने लगा है या फिर बेवजह यहाँ-वहाँ आने-जाने में बीतने लगा है। इसीलिए अब किसी के पास समय नहीं है। यह देखने और समझने के लिए भी समय नहीं है कि हमारा ढेर सारा समय ज़ाया करने के साथ-साथ इन चीज़ों का अधिकाधिक उपयोग हमें शारीरिक रूप से भी अक्षम करता जा रहा है, मानसिक तनाव बढ़ाता जा रहा है। मैं यहाँ इन साधनों को गलत नहीं बता रहा हूँ। ये साधन समय की माँग हैं और इन्हें अपनाना ही चाहिए। लेकिन इनके इस्तेमाल में विवेक का उपयोग अवश्य होना चाहिए। होना यह चाहिए कि हम इन साधनों को आवश्यकता के आधार पर इस्तेमाल करें, न कि इनकी लत लगा लें। ये हमारी सुविधा बढ़ाएँ वहाँ तक तो ठीक है, पर इन्हें लंबे समय की असुविधा न पैदा करने दें।

मेरा किसान भाइयों से इतना ही कहना है कि चाहे कुछ भी हो जाए पर अपने खेत के लिए समय ज़रूर निकालें, पशुपालन के लिए समय ज़रूर निकालें, शुद्ध अनाज व शुद्ध सब्जि़यों के उत्पादन के लिए समय ज़रूर निकालें। यह बहाना दिमाग में न आने दें कि मेरे पास समय नहीं है। आपके पास पर्याप्त समय है। अपने परिवार, अपनी रोजी-रोटी और अपनी धरती के प्रति अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए कभी किसी के पास समय की कमी नहीं रही और न कभी होगी।

पवन नागर

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