संपादकीय

तू हिन्दू बनेगा, न मुसलमान बनेगा इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा।

तू हिन्दू बनेगा, न मुसलमान बनेगा
इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा।

आज हालात ये हैं कि पूरा विश्व ही धर्म और समुदायों के नाम पर कहीं न कहीं लड़ ही रहा है, या संपन्न देश दूसरे देशों को आपस में धर्म के नाम पर लड़ा रहे हैं। परंतु सभी देशों के मुखिया यह भूल जाते हैं कि आखिर वे भी इंसान ही हैं। फिर हम इंसान होकर इंसान से क्यों लड़ रहे हैं? हम इंसानों का शोषण क्यों कर रहे हैं? इंसानों को कैसे बेवजह मरते देख रहे हैं और कैसे बर्दाश्त कर रहे हैं? इन प्रश्रों से आज पूरा विश्व परेशान है, फिर भी आलम यह है कि इंसान के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है। जाने किस भागमभाग में उसे यह दिखाई नहीं दे रहा है कि वह भी एक इंसान है और इंसान यदि इंसान के काम नहीं आएगा तो फिर वह कौन है जो इन इंसानों की आवाज़ बन सके, इनके हक के लिए लड़ सके, इनके अधिकार दिला सके।

कहीं ऐसा तो नहीं कि कुंभकरणी नींद में सोई हुई जनता फिर से किसी अवतार का इंतज़ार कर रही है? यदि इसका जबाव हाँ है तो फिर मैं जनता से कहना चाहूँगा कि यह कलयुग है और कलयुग में कोई अवतार चमत्कार दिखाने नहीं आएगा। इस युग में हर इंसान ही अवतार है, बस ज़रूरत है अपनी शक्तियों को पहचानने की।

इसलिए अपनी अंदरूनी ताकत को पहचानिए। आप उस असीम ईश्वर के प्रतिनिधि हैं जिसने आपको यहाँ इस सुंदर प्रकृति की रक्षा करने भेजा है, इसे संवारने भेजा है। आपस में लडऩे-झगडऩे या पैसों के पीछे भागने के लिए नहीं भेजा है।

अब यहाँ प्रश्र आता है कि इंसान बना कैसा जाए? तो मैं आपको बता दूँ कि यह बहुत ही आसान प्रक्रिया है और इसमें कुछ खर्चा भी नहीं है, उल्टा इसमें तो आपकी बचत हो जाती है। और जब आप इंसान बन जाते हैं तो आपको हर पल आनंद ही आनंद मिलता है। और इस आनंद से आपका जीवन कितनी आसानी से गुज़रता है इसका अंदाज़ा आप तभी लगा सकते हैं जब आप इंसान बन जाएँगे।

आइए, मैं बताता हूँ कि एक मोह-माया में डूबा व्यक्ति इंसान कैसे बन सकता है। इसके लिए हमें हमारे बचपन की यादों में जाना पड़ेगा, शुरुआती जीवन से लेकर 6 वर्षों तक के समय को याद करना पड़ेगा। अब आप सोच रहेे होंगे कि शुरुआती ६ वर्ष का जीवन किसी को भी ठीक तरह याद नहीं रहता है, तो फिर इन वर्षों के अनुभव और यादों को हम वापस कैसे प्राप्त कर सकते हैं। मेरे हिसाब से इसका सबसे सही तरीका यह है कि यदि आप शादीशुदा हैं तो आपके यहाँ जो पहला बच्चा हुआ है उसके जन्म से 6 वर्ष तक के समय को आप अपना बचपन मानकर चलिए और अपने बच्चों के बचपन में अपना बचपन ढूँढिए। जिनकी शादी नहीं हुई वे अपने भतीजे या पड़ोस के किसी भी बच्चे के साथ समय गुज़ारकर उस बच्चे में अपना बचपन देख सकते हैं। और यही वह प्रक्रिया है जिससे आप इंसान बन सकते हैं।

जब बच्चे का जन्म होता है तो वह अपने साथ और कुछ नहीं लाता है सिवाए कुछ किलकारियों के। जब यह किलकारी आप सुनते हैं तो आप भी खुश हो जाते हैं। बच्चा जब इस दुनिया में आता है तो उसे नहीं मालूम होता कि उसका नाम क्या है, उसका धर्म क्या है, उसकी जाति क्या है, उसका पिता कौन है, उसकी माता कौन है। उसे तो बस इतना ही पता है कि उसने एक इंसान के रूप में इस धरती पर अभी-अभी जन्म लिया है।

जब आप अपने बच्चे के साथ समय गुज़ारते हैं तो आपको पता लगता है कि उसकी मासूमियत, उसकी इंसानियत, उसका सभी को प्यार करना, सभी के साथ एक सा व्यवहार करना, सभी के साथ खेलना, सभी के साथ खाना, कहीं भी सो जाना; यह सब उसके उसी अबोधपन का प्रमाण होता है। अभी वह तमाम संकीर्णताओं से मुक्त है इसलिए इतना सरल व सहज है। लेकिन जैसे-जैसे वह बच्चा बड़ा होता जाता है, वैसे-वैसे तमाम संकीर्णताओं एवं बंदिशों में बंधता चला जाता है और उसी अनुपात में अपनी सरलता, सहजता व भोलापन खोता जाता है। सबसे पहले बंदिश आती है नाम की, फिर धर्म की, फिर जाति की। और इन सब झूठी पहचानों को ओढ़ते-ओढ़ते वह अपनी असल पहचान भूल ही जाता है। वह भूल जाता है कि वह वास्तव में इंसान के रूप में पैदा हुआ था। जब तक हम इन बंदिशों में फँसे रहेंगे, तब तक इंसान नहीं बन पाएँगे। बंदिशों से मुक्त व्यक्ति ही इंसान बन सकता है और बंदिशों से मुक्त जीवन कैसे जिया जाता है, इसको आप किसी भी ५-6 साल तक के बच्चे में देख सकते हैं। यही वह उम्र होती है जब तक हम इंसान रहते हैं। इसके बाद हमारी हिंदू या मुसलमान या सिख या ईसाई बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, अगड़ा या पिछड़ा बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, हिंदुस्तानी या पाकिस्तानी या अमरीकी या रूसी बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, अमीर या गरीब या मध्यमवर्गीय बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, चपरासी या अफसर बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

अब आपको तय करना है कि आपको ताउम्र एक इंसान बने रहना है या फिर उपरोक्त विभाजनों में पड़कर इंसान का दर्जा खो देना है।

अत: हर एक व्यक्ति से मेरा निवेदन है कि अपने बच्चों को हिन्दू-मुसलमान की बंदिशों में बाँध कर न रखें बल्कि उन्हें इंसान बनने की शिक्षा दें ताकि वे एक बेहतर विश्व के निर्माण में अपना योगदान दे सकें और मानव समाज को विभाजित करके अपना उल्लू सीधा करने वाले स्वार्थी तत्वों से बचे रहें। इससे केवल हमारे देश में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में शांति बनी रहेगी।

अपने बच्चों से सभी धर्मों के बारे में बातचीत करें और उन्हें सभी धर्मों के धर्म-स्थलों पर लेकर जाएँ ताकि वे सभी धर्मों के रीति-रिवाजों व मूल तत्वों से रू-ब-रू हो सकें। इससे होगा यह कि जब आपका बच्चा बड़ा होगा तो उसे कोई धर्म का ठेकेदार या धर्म के नाम पर राजनीति करने वाली पार्टियाँ भटका नहीं सकेंगी, उल्टा आपका बच्चा सभी धर्मों का ज्ञान होने से इस प्रकार के प्रश्र पूछेगा जिनके उत्तर उन लोगों के पास नहीं होंगे। जब आपका बच्चा इन ठेकेदारों के भड़काने से भड़केगा नहीं तो उसका असर देखिए क्या होगा। न तो वह इनकी रैलियों में जाएगा, न इनका झण्डा उठाएगा, न इनका प्रचार करेगा और न ही इनके द्वारा बोले जा रहे झूठ में साथ देगा।

इसके अलावा इंसान बनने का दूसरा तरीका यह है कि यदि आपको परमात्मा के दर्शन हो जाएँ तो भी आप इन बंदिशों से मुक्त हो जाओगे और इंसान बनकर इंसान की भलाई के लिए बिना समय गँवाए कार्य करने की शुरुआत कर दोगे। अब आप कहोगे कि ‘भला परमात्मा के दर्शन इतनी आसानी से हो जाते हैं क्या? क्यों फालतू की बात कर रहे हो भाई, और कोई काम नहीं है क्या तुम्हारे पास!Ó परंतु मेरे पास आपके इन प्रश्रों का सरल और आसान सा जवाब है। परमात्मा के दर्शन करना उतना ही सरल है जितना सरल परमात्मा है, बस ज़रूरत है परमात्मा के बताए हुए रास्तों पर चलने की और उस परमात्मा के असल रूप को पहचानने की। तो आइए मैं आपको बताता हूँ कि भगवान से रू-ब-रू कैसे हो सकते हैं और उसके बाद अपना जीवन उस परमात्मा की सेवा में कैसे लगा सकते हैं।

यह तो सभी जानते हैं कि हमारा शरीर पाँच तत्वों से बना है और उन्हीं पाँच तत्वों में विलीन हो जाना है एक दिन। यही बात हमें याद रखना होगी और इन पाँच तत्वों के महत्व को पहचानना होगा। भगवान यानि भ से भूमि, ग से गगन, व से वायु, ा से अग्नि यानि ऊर्जा और न से नीर। इस प्रकार इन पाँच तत्वों से मिलकर बना है भगवान। और हमें परमात्मा ने इन तत्वों की जि़म्मेदारी निभाने एवं इनकी रक्षा करने के लिए यहाँ भेजा है, इसलिए हर हाल में इंसान को इनके लिए कार्य करते रहना है। वैसे तो खुद ईश्वर कहता है कि वह कण-कण में निवास करता है। फिर भी पता नहीं क्यों मनुष्य उसको मंदिर में, मस्जिद में, गुरुदारों में या चर्च में खोजता रहता है। पता नहीं क्यों वह ऐसे ढोंगी बाबाओं के चक्कर में फँस जाता है जो खुद को भगवान से ऊपर समझने लगते हैं। इसलिए अंत में धोखा खाता है। इसलिए आपको चाहिए कि आप भूमि के महत्व को समझें; गगन की उपयोगिता जानें; वायु कहाँ से आती है, उसका स्त्रोत क्या है यह पता लगाएँ, और उस स्त्रोत को कैसे हम बचा सकते हैं उसके लिए प्रयत्न करें। शुद्ध वायु का एकमात्र स्त्रोत हैं हमारी धरती पर उपस्थित अनगिनत पेड़-पौधे। इन पेड़-पौधों को बचाने और बढ़ाने के लिए हम सबको मिलकर प्रयास करना पड़ेगा। और अग्नि या ऊर्जा को अपने दिल में जलाकर रखें ताकि आप बिना थके, बिना रुके भगवान के कार्य को निरंतर कर सकें। आखिर में आता है नीर या पानी। यह भी अति महत्वपूर्ण है, जैसा कि कहा भी गया है कि बिन पानी सब सून। यदि हम इसी प्रकार पानी की फिजूलखर्ची करते रहे तो वो दिन दूर नहीं कि पानी के भी लाले पड़ जाएँगे। कुल मिलाकर कहा जाए तो प्रकृति के इन पाँच तत्वों में ही भगवान का वास है और इसलिए प्रकृति ही भगवान है और भगवान ही प्रकृति के रूप में हमारे सामने निरंतर दर्शन के लिए उपस्थित रहता है, परंतु हम मोह-माया में इस कदर खोए हुए हैं कि हमें प्रकृति में भगवान दिखाई नहीं देता। और हम लगे रहते हैं आडंबरों को पूरा करने में। बँधे रहते हैं धर्म और जाति की बंदिशों में। इन बंदिशों की बेडिय़ों को तोड़कर प्रकृति के लिए काम करके तो देखिए, आपको भगवान के साक्षात्कार होंगे। और जब आपको भगवान के साक्षात्कार हो जाएँगे तो आप भी इंसान बन जाएँगे और इंसान की भलाई के कार्य में लग जाएँगे। अब आपको तय करना है कि आपको क्या बनना है। आप ही सोचिए कि आप इंसान बनकर इंसान की भलाई के कार्य में लगना चाहते हैं या फिर अपनी मोह-माया वाली दिनचर्या में मगन रहना चाहते हैं, यानि सुबह उठे, नहाये, पूजा-पाठ की, नाश्ता किया, फिर ऑफिस या दुकान चले, फिर वहाँ काम किया, फिर चाय भी, लंच किया। शाम हो गई तो वापस घर को निकले। पर बीच में ही फोन आ गया घर से कि ये सामान ले आना, वो सामान ले आना। तो सामान लेकर आप घर पहुँचे, पानी पिया, हाथ-मुँह धोये, फिर थोड़ी देर बाद टीवी देखते-देखते खाना खाया, टीवी देखते हुए थोड़ा समय बच्चों के साथ बिताया, फिर टीवी देखते-देखते ही थोड़ा समय धर्मपत्नी के साथ बिताया, और इस सबके बाद समय आता है आज की सबसे शक्तिशाली आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करने का, यानि आपके स्मार्टफोन का, वो भी ४ जी की सबसे तेज़ गति से चलने वाला। अब यहाँ आप यूट्यूब पर वीडियो देखेंगे और सोशल नेटवर्किंग पर समय बिताएँगे। फेसबुक, ट्वीटर, इन्स्टाग्राम और जाने कितनी वेबसाईट्स हैं जिन पर आप घंटों समय बिता सकते हैं और आपको अंदाज़ा भी नहीं लगेगा कि आपका समय कब गुज़र गया। और फिर जब आपकी आँखों में दर्द होने लगेगा तो आप सो जाएँगे। जब आपको दर्द का अहसास होगा तब शायद रात का 1, 2 या 3 भी बजा हो सकता है। फिर सुबह उठकर उसी दिनचर्या में आप फिर से लग जाएँगे जिसको आप काफी वर्षों से करते आ रहे हैं और जिसमें अब आपको आनंद नहीं आता है। इतनी लंबी कहानी बताने का हमारा मकसद सिर्फ इतना सा है कि आप इस बँधी-बँधाई दिनचर्या से बाहर निकलें और थोड़ा समय प्रकृति के बीच भी गुज़ारें, प्रकृति और इंसान के संबंध को समझें। इसी में प्रकृति की भलाई है और इंसान की भी।

सभी देशवासियों से निवेदन है कि आने वाले दिनों में देश में नयी सरकार चुनने के लिए चुनाव होने वाले हैं। अत: तर्क-वितर्क भूल जाइए और सतर्क हो जाइए। तर्क-वितर्क बताने वाले राजनीतिक दल आपके पास आएँगे, आपको धर्म के नाम पर फुसलाएँगे, जाति के नाम पर फुसलाएँगे, पर आपके मुद्दों की बात नहीं करेंगे। आप इधर-उधर की बातों में मत आना और खुद से जुड़ी हुई समस्याओं के बारे में ज़रूर पूछना। दूसरी बात यह कि ऐसे न्यूज़ चैनलों को भी देखना बंद कर दीजिए जो आपको दिन-रात डराने का काम कर रहे हैं। इन चैनलों पर यदि आपके मुद्दों की खबर नहीं आ रही है तो इन चैनलों को भी देखना बंद कर दीजिए। और किसान भाइयों से एक बार पुन: निवेदन है कि प्रकृति की रक्षा करने वाली प्राकृतिक खेती अपनाएँ और अपने बच्चों को प्रकृति व खेती के बारे में जानकारी दें ताकि वे भी आगे चलकर इस मोह-माया में न फँसे और इंसान बनकर इंसान की भलाई के लिए कार्य कर सकें और अंत में साहिर लुधियानवी का निम्नलिखित गीत गुनगुनाते रहें ताकि हमें इंसान होने का अहसास होता रहें:

तू हिन्दू बनेगा, न मुसलमान बनेगा
इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा।

अच्छा है अभी तक तेरा कुछ नाम नहीं है
तुझको किसी मज़हब से कोई काम नहीं है
जिस इल्म ने इंसान को तकसीम किया है
उस इल्म का तुझ पर कोई इलज़ाम नहीं है
तू बदले हुए वक्त की पहचान बनेगा
इन्सान की औलाद है…।

मालिक ने हर इंसान को इंसान बनाया
हमने उसे हिन्दू या मुसलमान बनाया
कुदरत ने तो बख्शी थी हमें एक ही धरती
हमने कहीं भारत, कहीं ईरान बनाया
जो तोड़ दे हर बंध, वो तू$फान बनेगा
इन्सान की औलाद है…।

नफरत जो सिखाये वो धरम तेरा नहीं है
इन्सां को जो रौंदे वो कदम तेरा नहीं है
कुरआन न हो जिसमें वो मंदिर नहीं तेरा
गीता न हो जिसमें वो हरम तेरा नहीं है
तू अमन का और सुलह का अरमान बनेगा
इन्सान की औलाद है…।

ये दीन के ताजर, ये वतन बेचने वाले
इंसानों की लाशों के क$फन बेचने वाले
ये महलों में बैठे हुए कातिल ये लुटेरे
काँटों के एवज़ रूह-ए-चमन बेचने वाले
तू इनके लिये मौत का ऐलान बनेगा
इन्सान की औलाद है…।

फिल्म का नाम: धूल का फूल (1959)
संगीतकार: एन. दत्ता
गीतकार: साहिर लुधियानवी
गायक: मो. रफी

पवन नागर
संपादक

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2 Comments

  1. भय कहा तक टाला जाए , रोग कहा तक पाला जाए , तु भी है अनदाता का वंशज, रख ले हिम्मत जब तक टाला जाए ।
    मै नारायण विट्ठल, जैविक खेती , प्रकृति पर कविताएँ लिखता हू ।

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