संपादकीय

आओं बनाएँ जहरमुक्त भारत

पवन नागर, संपादक

आओं बनाएँ जहरमुक्त भारत

एक दिन मेरी धर्मपत्नी के पास उनके रिश्तेदार का फोन आता है। शाम को धर्मपत्नी मुझे बताती हैं कि उनके रिश्तेदार को एक किलो खड़ी मसूर चाहिए, उन को डॉक्टर ने बोला है खाने को, वो भी केमीकल फ्री। जिन रिश्तेदार को खड़ी मसूर चाहिए वो भी एक सक्षम किसान हैं। फिर अगली सुबह ही हमारे ही गाँव के दो लोग घर पर पधारते हैं और पूछते हैं कि क्या आप के पास केमीकल फ्री मूंग की दाल है? ‘ बातचीत आगे बढ़ती है तो वे बताते हैं कि डॉक्टर ने वो वाली मूंग की दाल खाने को बोला है जो बिना केमीकल के उत्पादित हो। चूँकि वर्तमान में चाहे मूंग की फसल हो या अन्य कोई सी भी फसल, उनमें कितना ज़हर इस्तेमाल हो रहा है यह तो जगज़ाहिर है।

वर्तमान को यदि गौर से देखें तो गाँवों में बीमारियों का ताँडव चल रहा है और लगभग हर बड़े शहर में होटलों से भी बेहतर अस्पताल गाँवों के लोगों से भरे पड़े हैं, और नित्य नए अस्पतालों का शुभारंभ हो रहा है।

ऊपर सिर्फ दो उदाहरण दिए, जबकि आए दिन अब मेरे पास फोन आते रहते हैं केमीकल फ्री अनाज या दाल की मांग हेतु। चूँकि मैं कई वर्षों से प्राकृतिक खेती कर रहा हूँ इसलिए ऐसे कई उदाहरण मेरे पास हैं। परंतु कुछ वर्ष पहले ऐसे हालात नहीं थे। तब केमीकल फ्री खेती करने वालों पर लोग हँसते थे। और अभी भी यदि कोई केमीकल फ्री खेती की शुरूआत करता है तो उस पर भी आस-पड़ोस के किसान फबतियाँ कसते हैं। वर्तमान में केमीकल फ्री अनाज की मांग तेजी से बढ़ रही है, परंतु फिर भी केमीकल फ्री खेती करने वाले किसानों की संख्या में उतना इज़ाफा नहीं हो पा रहा है, जितना होना चाहिए। जबकि सरकार द्वारा जैविक खेती या प्राकृतिक खेती के लिए खूब जोर-शोर से प्रचार किया जा रहा है, अनुदान दिया जा रहा है। फिर भी ज़मीनी स्तर पर कोई चमत्कार नहीं हो पा रहा है जैविक खेती को लेकर। आखिर ऐसा क्यों?

आगे बढ़ते हैं और देखते हैं कि कहाँ-कहाँ पर दिक्कत है। तो सबसे पहला सवाल यह है कि जनता केमीकल फ्री अनाज को अपनाने से क्यों कतरा रही है, जबकि वह जानती है कि बाज़ार में जो अनाज मिल रहा है वह पूरी तरह से केमीकल पर आधारित है और उनके लिए हानिकारक साबित हो रहा है? दूसरा सवाल है कि क्या केमीकल फ्री या ज़हरमुक्त अनाज महँगा है? तीसरा प्रश्र यह है कि इसकी क्या गारंटी है कि जैविक किसान केमीकल फ्री अनाज ही दे रहा है? जैविक किसान पर कैसे विश्वास करें? चौथा और आखिरी प्रश्र यह है कि इस समस्या का समाधान क्या है, जिससे जनता, किसान और सरकार सबको फायदा भी हो और सबको केमीकल फ्री अनाज मिलना सुलभ हो जाए और महँगाई से भी निजात मिल जाए सबको?    

तो सबसे पहले, पहले प्रश्र पर बात करते हैं कि जनता केमीकल फ्री अनाज को अपनाने से क्यों कतरा रही है? अक्सर देखने में यह आता है कि जनता या ग्राहक प्रश्र करते हैं कि ‘भईया! गेहूं तो केमीकल फ्री ले लेंगे, पर बाकी चीज़ें कहाँ से लाएँगे? ‘ इसमें ग्राहक जाने-अनजाने उपलब्धता की कमी की ओर इशारा कर रहा है और उपलब्धता के बहाने जो केमीकल फ्री गेहूं मिल रहा है उसे भी लेने से मना कर रहा है। चूँकि केमीकल फ्री खेती करने वाले किसानों की संख्या अभी बहुत कम है, तो उपलब्धता की कमी है इसमें कोई दो राय नहीं है।

अब आते हैं दूसरे प्रश्न पर कि क्या केमीकल फ्री उत्पाद महँगा है? इसका सीधा सा जवाब है – हॉँ। आपको ज़हरमुक्त अनाज भी चाहिए, और वह भी सस्ता, यह कैसे संभव है? जबकि वर्तमान में तो आप केमीकल से परिपूर्ण अनाज महँगा ही इस्तेमाल कर रहे हैं। चूँकि पहले प्रश्र से साफ ज़ाहिर है कि उपलब्ता की कमी है, तो उपलब्धता की कमी के चलते ज़हरमुक्त उत्पाद महँगा तो होगा ही। जैसे-जैसे केमीकल फ्री खेती करने वाले किसानों की संख्या और उपलब्धता बढ़ेगी, वैसे-वैसे ये उत्पाद भी सस्ते मिलने लगेंगे। यदि ग्राहक और किसान समझदारी दिखाएँ तो उपलब्धता और महँगे केमीकल फ्री अनाज की समस्या को आराम से सुलझाया जा सकता है। यदि दोनों ईमानदारी और दृढ़ निश्चय के साथ समझौता करें तो केमीकल फ्री किसान को ग्राहक मिल जाएँगे और ग्राहक को पहले से तय मूल्य में केमीकल फ्री अनाज आसानी से उपलब्ध रहेंगे। इसमें ग्राहक और किसान दोनों की समस्या का निराकरण आसानी से हो जाएगा।

अब आते हैं तीसरे प्रश्र पर कि क्या केमीकल फ्री खेती करने वाले जैविक किसान केमीकल फ्री अनाज ही दे रहे हैं? इसकी क्या गारंटी है? केमीकल फ्री खेती करने वाले जैविक किसान पर कैसे भरोसा करें कि वह हमको वाकई केमीकल फ्री उत्पाद ही उपलब्ध करा रहा है? इसके लिए ग्राहक को चाहिए कि वह जैविक प्रमाणित किसान से खरीदारी करें या उन छोटे किसानों से जो बहुत सालों से प्राकृतिक खेती या जैविक खेती कर रहे हैं, उनसे सामान लें। यदि इसके बाद भी आपको भरोसा नहीं हो तो आप वर्ष में एक या दो बार इन किसानों के खेत पर भ्रमण करके उत्पादन की जो पद्धति है उसका निरीक्षण करें। इससे आपका किसान के ऊपर विश्वास बढ़ेगा और आपके भ्रम भी दूर होंगे। यह इसलिए भी करना चाहिए क्योंकि अनाज, सब्जी इत्यादि रोजमर्रा की ज़रूरत हैं और इनके बिना जीवन बहुत मुश्किल है, इसलिए इनका शुद्ध व गुणवत्तापूर्ण होना हमारे परिवार के स्वास्थ्य हेतु बहुत ही ज़रूरी है।

इसलिए आपको चाहिए कि अपने परिवार के लिए ऐसे किसान तैयार करें जो बिना केमीकल वाला अनाज तथा अन्य सामग्री आप तक पहुँचा सकें। इस प्रकार आपको फिर किसी गारंटी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। केमीकल फ्री अनाज तथा अन्य सामग्री का स्वाद ही असली गारंटी है, जिसे आप इस्तेमाल करने के बाद खुद ही तारीफ के रूप में किसान को दे सकते हैं। इसके लिए ज़रूरत है अपने परिवार के लिए केमीकल फ्री सामग्री का इंतज़ाम करने के दृढ़ निश्चय की, जो आप ही कर सकते हैं।

अब आते हैं हम चौथे प्रश्र पर कि इस समस्या का समाधान क्या है? समस्या के समाधान की चर्चा करने से पहले हम इसकी पड़ताल कर लेते हैं कि यह समस्या बनी ही क्यों? हरित क्रांति से पहले हमारे देश में केमीकल फ्री खेती ही होती थी। जैसे-जैसे हरित क्रांति ने पूरे भारत देश में पैर पसारे, वैसे-वैसे हमारे देश के अनाज, सब्जियाँ, फल इत्यादि सब विषैले होते गए, और आज हम उस मुकाम पर पहुँच गए हैं कि जिस देश का इतिहास प्रकृति और मौसम आधारित खेती से भरा पड़ा है, अब उसी देश में जैविक खेती या प्राकृतिक खेती करने के लिए सरकारों और विभिन्न संस्थाओं को अभियान चलाना पड़ रहा है और किसानों से बार-बार मिन्नतें करना पड़ रहा है कि इस ज़हरीली खेती को छोड़कर हमारे पूर्वजों की गोबर आधारित एवं बहुफसली प्रणाली को अपना लो। तो निष्कर्ष निकलता है कि इस समस्या की असली शुरूआत हरित क्रांति के बाद ही हुई और अब विकराल समस्या के रूप में हमारे सामने खड़ी है।

तो आईए, इस समस्या का क्या समाधान हो सकता है अब उसकी बात करें। वर्तमान में हमारे देश में लगभग १४ करोड़ से ज़्यादा किसान हैं। इन किसानों में कुछ बड़े किसान हैं तो कुछ मध्यम और कुछ छोटे किसान हैं। पर सभी के पास अपनी-अपनी ज़मीन है। ये १४ करोड़ किसान ही हमें केमीकल फ्री खेती करने में भरपूर सहयोग कर सकते हैं। 

इसके लिए सरकार को चाहिए कि प्राकृतिक खेती के नाम पर जितनी भी योजनाएँ चल रही हैं, उनको एकीकृत करके एक ऐसी योजना बनाई जाए जिसमें इन १४ करोड़ किसानों पर ही फोकस किया जाए। यदि इन किसानों से कहा जाए कि आप सिर्फ अपने परिवार के लिए १ एकड़ ज़मीन में प्राकृतिक तरीके से वह सभी सामग्री उत्पादित करें जिसकी ज़रूरत आपके परिवार को साल भर रहती है, तो एक झटके में १४ करोड़ परिवारों को रसायन आधारित भोजन से मुक्ति मिल जाएगी। यदि सरकार वाकई ज़हरमुक्त खेती के लिए गंभीर है तो इन १४ करोड़ किसानों को एक एकड़ में प्राकृतिक या जैविक खेती करने के लिए अनुदान देना होगा, जो अभी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से सरकार दे ही रही है।

अब बात आती है कि इससे सरकार को क्या फायदा होगा? तो अभी वर्तमान में एक किसान एक एकड़ ज़मीन में साल में कम से कम दो बार उत्पादन ले रहा है और इसमें वह सलाना प्रति एकड़ ४ क्विंटल डीएपी और 3 क्विंटल यूरिया का इस्तेमाल करता है। इसके अलावा रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल भी करता है। यदि 14 करोड़ किसान सिर्फ एक एकड़ ज़मीन में यह रसायन छोड़ दें तो सरकार का कितना फायदा होगा इसका अंदाज़ा आप खुद लगा सकते हैं। 14 करोड़ गुणा 4 क्विंटल करेंगे तो आप पाएँगे कि 56 करोड़ क्विंटल डीएपी की बचत होगी। ऐसे ही 42 करोड़ क्विंटल यूरिया की बचत होगी। इसके अलावा रासायनिक कीटनाशकों की खपत भी इन 14 करोड़ किसानों में कम होगी। अभी सरकार जो सब्सिडी इन रासायनिक खादों पर दे रही है वो बचेगी, साथ ही इन खादों के आयात पर जो खर्च आता है, वह बचेगा। साथ ही साथ 14 करोड़ किसानों के सिर्फ एक एकड़ में जैविक खेती करने से इतने परिवार ज़हरमुक्त अनाज का इस्तेमाल कर पाएँगे। चूँकि सरकार विभिन्न योजनाओं में किसानों को अनुदान और नगद पैसा दे ही रही है, तो होना यह चाहिए कि एक ऐसी योजना बने जो सीधे उन किसानों को लाभ दे जो सिर्फ एक एकड़ में जैविक खेती की शुरूआत करें। अभी केन्द्र सरकार 6000 रूपये सालाना किसान सम्मान निधि के रूप में किसानों को दे ही रही है। इसमें राज्य सरकारें भी कुछ योगदान कर रही हैं, जैसे मध्यप्रदेश सरकार पहले 4000 रूपये देती थी और 2023 के चुनावों में इस राशि को 6000 करने का वादा किया था, और अब राज्य में फिर भाजपा की सरकार आ गई है तो मध्यप्रदेश के प्रत्येक  पात्र किसान को राज्य एवं केन्द्र से कुल मिलाकर  12000 रूपये हर साल मिलेंगे।

ध्यान देने वाली बात यह है कि हर राज्य सरकार अलग-अलग राशि दे रही है। सरकार को करना यह चाहिए कि जो किसान एक एकड़ में जैविक खेती की शुरूआत करे उसे ही सालाना 30,000 रूपये किसान सम्मान निधि मिले। और उसके लिए शर्त इतनी ही हो कि वे एक एकड़ में रसायन-मुक्त एवं बहुफसली प्रणाली आधारित खेती को अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए आरक्षित रखें। इससे सरकार की भी बचत होगी और 14 करोड़ परिवारों को केमीकल मुक्त अनाज एवं अन्य सामग्री मिलने लगेगी। यदि हम मानकर चलें कि एक किसान परिवार में 5 सदस्य भी हैं तो यह संख्या 70 करोड़ हो जाएगी। यानी हमारे देश की आधी आबादी अपने खेत में उत्पादित ज़हरमुक्त भोजन का स्वाद चख पाएगी, जो उसे अभी नहीं मिल रहा है, बावजूद अपनी ज़मीन का मालिक होने के बाद भी। इस योजना से कम से कम इतना तो होगा कि 70 करोड़ लोग ज़हरमुक्ति की ओर बढ़ेंगे, जो कि विश्व में एक मिसाल होगी। और इतनी बड़ी संख्या में लोगों को बदलते हुए देखकर देश की बाकी आबादी भी केमीकल फ्री अनाज अपनाने के लिए प्रोत्साहित होगी, जिससे माँग बढ़ेगी। और माँग बढ़ेगी तो यह एक एकड़ का रकबा धीरे-धीरे करके दो एकड़ या उससे अधिक में बदल जाएगा। ऐसा करते-करते एक दिन हमारे देश से रासायनिक खाद और कीटनाशक की पूर्ण विदाई हो जाएगी और हमें फिर से हरित क्रांति से पहले जैसा भोजन मिलने लगेगा।

परंतु यह इतना आसान भी नहीं है। इसके लिए किसान और सरकार दोनों को दृढ़ निश्चय और संकल्प के साथ, पूरी ईमानदारी के साथ कार्य करना होगा, तभी इसके परिणाम ज़मीनी स्तर पर दिखेंगे। इस योजना को सरकार चाहे तो पहले एक गाँव या एक पंचायत या एक राज्य में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लागू करके देख सकती है और उसके परिणाम देखने के बाद पूरे देश में लागू कर सकती है। इस प्रकार एक एकड़ खेती हमारे देश को ज़हरमुक्त खेती का रास्ता दिखा सकती है, देश में रासायनिक खाद और कीटनाशकों की खपत को कम कर सकती है, और इन रसायनों के अधिक इस्तेमाल के कारण असमय हो रहीं मौतों को भी रोक सकती है। साथ ही कुपोषण की समस्या से निजात पाने में भी यह योजना सहायक होगी, क्योंकि जब इतनी बड़ी संख्या में लोगों को पौष्टिक भोजन मिलेगा तो कुपोषण भी कम होगा।

अंत में इतना ही कहना है कि पहले खुद किसान, जो बेशकीमती ज़मीन के मालिक हैं, उनकी जि़म्मेदारी बनती है कि वे अपने परिवार को तो कम से कम केमीकल फ्री अनाज या अन्य सामग्री खिलाएँ। इतना तो वे कर सकते हैं क्योंकि इनके पास खुद की ज़मीन है। साथ में सरकार जो भरसक प्रयास कर रही है कि देश में जैविक खेती हो, उसको इन किसानों पर ही फोकस करना चाहिए। जब किसान अपने परिवार के लिए केमीकल फ्री खेती करने लगेगा तो धीरे-धीरे देश के बाकी लोगों के लिए भी केमीकल फ्री खेती होने लगेगी। वैसे तो काम कठिन है, परंतु मज़बूत इच्छाशक्ति और सही नीयत के साथ किया जाए तो बहुत सरल है।

पवन नागर, संपादक

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