संपादकीय

सरकार ही सिस्टम है, सिस्टम ही सरकार है

-पवन नागर  

अभी की ताज़ा खबर यह है कि हमारा सिस्टम खराब है और देश में जो भी नकारात्मक या नुकसान वाली घटनाएँ हो रही हैं वे सबकुछ इस सिस्टम की वजह से हो रही हैं, और जितनी भी सकारात्मक चीजें संयोग से घटित हो जाती हैं उनमें पूरा योगदान सरकार और सरकार की दूरदर्शिता का होता है। यह सब मैं नहीं कह रहा हूँ, ये तो हमारे देश का चौथा स्तंभ कह रहा है जो इस कोरोना महामारी के कारण उपजीं अनगिनत नकारात्मक समस्याओं व परेशानियों के बावजूद सकारात्मकता की कढ़ाई से निकलने को तैयार ही नहीं है और उसने इन सबका दोष बेचारे सिस्टम पर धर दिया है। लेकिन यह सिस्टम है क्या बला? इस सिस्टम की मुँह दिखाई तो किसी ने अभी तक की ही नहीं है।

तो साथियो! आज हम आपकी मुलाकात इस सिस्टम से कराएँगे और आपको बताएँगे कि यह सिस्टम कौन बनाता है, कैसे बनता है, कौन इसे चलाता है और इस सारे सिस्टम का ज़िम्मेदार कौन है।

इस भीषण महामारी के बावजूद अभी हाल ही में चुनाव आयोग ने पाँच राज्यों के चुनाव संपन्न कराए और उनके परिणाम भी आ चुके हैं। चुनाव में हार-जीत तो होती ही रहती है, इसलिए हम इस हार-जीत की बात न करके अपने देश के सिस्टम की बात करते हैं जिसका सीधा-सीधा संबंध चुनाव से है और तब तक रहेगा जब तक कि हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश होने के दर्जे को छोड़कर एक व्यक्ति विशेष का देश होने का दर्जा न हासिल कर ले।

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चूंकि हमारे देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू है और इस व्यवस्था में चुनाव के द्वारा ही सबकुछ तय होता है, इसलिए असल मायने में चुनाव ही इस सिस्टम की माता है और इस माता के बहुत सारे बच्चे हैं जिनको हम ‘माननीय’ भी कहते हैं। और इन माननीयों का जन्म चुनाव के माध्यम से ही होता है। जैसे ही ये माननीय चुनाव जीत जाते हैं वैसे ही खुद-ब-खुद इस ‘माननीय’ सिस्टम का हिस्सा बन जाते हैं। मैं आपको इन सब माननीयों का परिचय दे देता हूँ ताकि आप किसी भ्रम में न रहें। सरपंच, जनपद सदस्य, जनपद अध्यक्ष, पार्षद, नगर पालिका अध्यक्ष, नगर पंचायत अध्यक्ष, नगर निगम अध्यक्ष, महापौर, मंडी अध्यक्ष, विधायक, सांसद इत्यादि सभी माननीयों कि इस सूची की शोभा बढ़ाते हैं। ये सभी लोग इस सिस्टम का हिस्सा हैं। इनको चुनाव जिताकर हमने ही सिस्टम का हिस्सा बनाया है। ये सब इस सिस्टम के बच्चे ही हैं और इन बच्चों को ही अब इस सिस्टम की देखभाल करना है। इनको ही सिस्टम के नियम-कायदे-कानून बनाने की ज़िम्मेदारी लेनी है और उनको लागू करवाना है। इस देश का भविष्य कैसे बेहतर हो यह तय करने, जनता के स्वास्थ्य व सहूलियतों का ध्यान रखने और जनता के बुरे दिनों को खत्म करके अच्छे दिनों को लाने का काम भी इसी सिस्टम को करना है। इन्हीं सभी बच्चों के सहयोग से जो सरकार बनती है उसी के ऊपर इन्हीं बच्चों की और पूरे देश की ज़िम्मेदारी रहती है। आसान भाषा में यदि यह कहें कि सरकार ही सिस्टम है और सिस्टम ही सरकार है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

और सबसे सरल भाषा में कह सकते हैं कि चुनाव रूपी माता से पैदा हुए बच्चों से मिलकर जो सरकार बनती है वही हमारे देश का सिस्टम है। देश में जो भी सकारात्मक और नकारात्मक घटित हो रहा है उसकी पूरी ज़िम्मेदारी इसी सिस्टम की होती है। फिर चाहे आप 1 दिन में 10 लाख दीपक जलाने का रिकॉर्ड बनाओ या 9 मिनट के लिए पूरे देश में घंटी, ताली, थाली बजवाकर या लाइट जलाकर कोरोना भगाने का श्रेय लो या फिर बिना सूचना के लॉकडाउन लगाने का निर्णय हो जिसके कारण जाने कितने मासूमों की जान बेवजह चली गई, जाने कितने युवाओं की नौकरी चली गई और हैरत की बात तो यह है इन सबके सही आंकड़े तक इस सिस्टम के पास नहीं हैं।

अचानक लगाए गए सख्त लॉकडाउन की नाकामी हो या कोरोना महामारी में हो रही अव्यवस्थाओं के कारण अनगिनत मौतों की जवाबदेही भी इसी सिस्टम की होनी चाहिए। ऐसा नहीं चलेगा कि आम मीठा और अच्छा निकल जाए तो हमारे बाग का है और यदि आम खट्टा और सड़ा हुआ निकल जाए तो आप कहें कि वह तो पड़ोसी के बाग का है। यदि आपमें श्रेय लेने की होड़ और लालसा है तो अपनी नाकामी, अपनी गलतियों को स्वीकार करने की हिम्मत भी होनी चाहिए और इसी को आसान भाषा में राजधर्म कहते हैं।

तो साथियो! यह सिस्टम आपके द्वारा बनाया गया है और आपके लिए ही है और आपकी कड़ी मेहनत और खून-पसीने की कमाई से चल रहा है। आपकी खुशहाली के लिए इस सिस्टम रूपी सरकार को बनाया गया है ताकि आपका जीवन सुखमय चलता रहे। सरकार में बैठी कोई भी राजनीतिक पार्टी अपने बैंक खाते से तो पैसा खर्च करती नहीं है हमारे देश की जनता पर। यह सब हो रहा है आपकी मेहनत की कमाई के दम पर और आपके पैसे आपको ही देकर खूब प्रचार-प्रसार किया जाता है कि हमने यह कर दिया, हमने वो कर दिया, हम यह करेगें, हम वो करेंगे। अरे भाई, ज़रा अपनी जेब से खर्च तो करो, फिर खूब प्रचार करो, खूब इमेज बनाओ, पर जनता के पैसे तो फिजूल में मत उड़ाओ।

तो मेरे देश के भाईयो-बहनो! आपके द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि और उनके द्वारा जो सरकार बनती है वही असली सिस्टम है और इस सिस्टम को आप ही दुरुस्त कर सकते हैं क्योंकि यह बनाया ही आपके द्वारा गया है और आपके लिए ही है। यदि सिस्टम खराब है तो कहीं न कहीं आप भी खराब होंगे, तभी तो सिस्टम खराब है। और यदि इस भीषण कोरोना महामारी के भयानक दौर में हर तरफ चीख-पुकार और मदद की गुहार लगातीं दर्दभरी आवाजें आपके कानों और अंतर्मन तक पहुँच रही हों तो इस सिस्टम को बदलने का बीड़ा उठाएँ। पहले खुद सुधरें और फिर इस सिस्टम के जो बच्चे हैं उनको उनकी ज़िम्मेदारी का लेखा-जोखा पेश करने का आदेश दें, नहीं तो उनको उनकी ज़िम्मेदारी से मुक्त करें।

अपने पार्षदों, विधायकों, सांसदों को उनकी ज़िम्मेदारी का अहसास दिलाएँ, उनसे पूछें कि इस महामारी के दौर में क्यों वे जनता के बीच से गायब हैं। उनसे पूछें कि यह सिस्टम कहाँ गायब हो गया है? इतनी कालाबाज़ारी क्यों है? इतनी ऑक्सीजन की कमी क्यों है? अस्पतालों की ऐसी हालत क्यों है? इतनी अव्यवस्थाएँ क्यों हैं? इन सबकी ज़िम्मेदारी लेने वाला सिस्टम कहाँ है? इस सिस्टम से मिलें और उसे याद दिलाएँ कि आप हमारे सेवक हो, हमारी सेवा करने आए हो। हमने आपको हमें परेशान करने के लिए माननीय के रूप में सिस्टम का हिस्सा नहीं बनाया है।

दोस्तो! सिर्फ सिस्टम खराब नहीं है। हमारा पूरा ईको-सिस्टम ही खराब है जिसके कारण इसमें उपस्थित विभिन्न जीवों और वनस्पतियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। और हमारे इस खराब सिस्टम ने इस पूरे ईको सिस्टम को बर्बाद करने की जैसी कसम खाई हुई है। इसी कारण यह ‘अदृश्य शत्रु’ इस सिस्टम के लिए चुनौती बनकर सामने खड़ा है जिसे इस ‘अदृश्य शत्रु’ से लड़ने के लिए हथियार भी विदेश से माँगने पड़ रहे हैं। यह सिस्टम की लाचारी और नाकामी का सबूत है।

इसलिए अभी भी वक्त है कि हम अपने ईको सिस्टम के बारे में सोचें, उसे समझें और उसके अनुसार ही एक समझदार विकास की पक्की रूपरेखा को हमेशा के लिए तैयार करें। चाहे किसी भी दल की सरकार आए या जाए, इस समझदार विकास की रूपरेखा को बदला न जाए, क्योंकि प्रकृति के साथ हम जितनी छेड़छाड़ करेंगे प्रकृति भी उतनी ही छेड़छाड़ हमारे साथ करेगी। आपकी छ़ेडछाड़ तो प्रकृति सहन कर लेगी परंतु प्रकृति की छेड़छाड़ को न तो हमारा सिस्टम झेल पाएगा और न ही वो लोग जिन्होंने इस सिस्टम को चुना है। प्रकृति अपना संतुलन खुद बनाती है। उसे किसी सिस्टम की ज़रूरत नहीं है।

तो मेरे देश के सभी वर्गों के भाईयो-बहनो! आपसे निवेदन है कि प्रकृति को नुकसान न पहुँचाएँ। प्रकृति से ही सारी सृष्टि चल रही है। उसके बिना जीवन  संभव नहीं है। इसीलिए सभी से निवेदन है कि प्राकृतिक खेती करने की शुरुआत करें। रासायनिक खादों और कीटनाशक खेती को जितनी जल्दी हो, छोड़ दें। शुद्ध अनाज और सब्जियाँ खाने और खिलाने की अपने पूर्वजों की परंपरा को फिर से जिंदा करें। करना आपको ही पड़ेगा क्योंकि एक तो हमारा सिस्टम खराब है और दूसरा ईको-सिस्टम भी खराब है। जो कुछ करना है हमसब को मिलकर भाईचारे, दृढ़ इच्छा शक्ति, संकल्प और एक-दूसरे की मदद से ही करना है। और मानवता को नहीं भूलना है यह बात आप हमेशा याद रखना। अदृश्य शत्रु और खराब सिस्टम से डरें नहीं, डटे रहें मैदान में।

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