संपादकीय

ज़्यादा उत्पादन चाहिए या ज़्यादा दाम?

पवन नागर, संपादक

ज़्यादा उत्पादन चाहिए या ज़्यादा दाम?

लिखें तो क्या लिखें? हाल-ए-दिल लिखें या देश का हाल लिखें? या यह दुनिया क्यों बेहाल है, उसका ख्याल लिखें? या क्यों जनहित के मुद्दे नदारद हैं राष्ट्रीय मीडिया से, क्या है उनकी चाल लिखें?

बहरहाल, लिखने को तो बहुत कुछ है और बहुत सारा लिखा भी जा रहा है और पढ़ा भी बहुत सारा जा रहा है, परंतु लिखने और पढऩे वाले क्या इन बातों पर अमल भी कर रहे हैं? यदि वे जो इतना अच्छा लिखा जा रहा है उसको पढ़कर अपने दैनिक जीवन में उस पर अमल करें तो देश भर में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में सुधार की लहर चल जाएगी और पूरी दुनिया मानवता की राह पर चलने लगेगी। परंतु यहीं पर तो कैमिकल लोचा है कि ज्ञान को अमल में नहीं लाया जा रहा है, बस दिखावट के लिए हम अच्छी से अच्छी बातें करते हैं और बाद में भूल जाते हैं। इसी कारण सभी समस्याओं का जन्म होता है और इसी बुरी आदत के कारण इन समस्याओं का कभी अंत नहीं होता, ये समस्याएँ लाइलाज बीमारी की तरह हमारे जीवन में बनी रहती हैं।

खैर, आगे बढऩे और कुछ लिखने की कोशिश करते हैं। अब इसे वायरल खबर कहें या भारत की बदकिस्मती की खबर कि हम भुखमरी दूर करने की कोशिश करने वाले ११७ देशों की सूची में १०२वें नंबर के देश हैं। अब आप ही तय कर लेना कि इसे क्या कहें। ऐसा कहा जाता है कि हमारा देश कृषि प्रधान है, परंतु १०२वें नंबर पर होने के बाद कोई भी विश्वास नहीं करेगा कि हमारा देश कृषि प्रधान है बल्कि अब तो दुनिया के देश हमारे बारे में यही कहेंगे कि यह तो भुखमरों का देश है। जबकि हमारे देश में हर साल खाद्यान्न उत्पादन के नये-नये रिकॉर्ड बनते हैं। फिर भी हम देश के लोगों की भूख नहीं मिटा पा रहे। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? इसका उत्तर हमारे नीति-निर्माताओं और सत्ता में विराजमान केन्द्र व राज्य सरकारों को देना चाहिए।

जब हम इतना ज़्यादा उत्पादन लेने के बाद भी देश की जनता की भूख नहीं मिटा सकते हैं तो फिर कैसे मिटेगी सबकी भूख? कौन देगा इस सवाल का उत्तर?

बताने की ज़रूरत नहीं है कि भारत ही नहीं वरन पूरी दुनिया का वातावरण प्रदूषित हो चुका है और दिन-ब-दिन हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। आए दिन आप एक नये तूफान की खबर अपने स्मार्टफोन पर पढ़ ही लेते होंगे या फिर इन तूफानों से होने वाले नुकसान के बारे में डराते हुए, चीखते- चिल्लाते हुए एंकर्स के वीडियो आप तक पहुँच ही जाते होंगे। वैसे देखा जाए तो वर्तमान युग ही डराने और धमकाने का चल रहा है, फिर चाहे यह डर आपको टीवी के एंकर दिखाएँ या जनता द्वारा चुनी हुई सरकारें। या एक संपन्न देश दूसरे देश को दिखाए। या फिर ढोंगी बाबा डर दिखाकर भोले-भाले भक्तों को ठगे। लेकिन भाईयो-बहनो! आपको डरने की नहीं बल्कि हालात से डटकर लडऩे की ज़रूरत है क्योंकि किसी ने कहा है कि डर के आगे जीत है। यह डरकर पीछे हटने का समय नहीं है बल्कि अधर्म और असत्य के खिलाफ पूरी ताकत और एकजुटता के साथ लडऩे का समय है। फिर चाहे आपकी लड़ाई प्रदूषित हो रहे पर्यावरण के लिए हो या फिर बढ़ रही मंहगाई और बेरोजगारी के खिलाफ हो या लोकतंत्र की हत्या करने वालों के खिलाफ हो या पॉलीथीन का हद से ज़्यादा प्रयोग करने वालों के खिलाफ हो या भ्रष्टाचार के खिलाफ हो या बेतहाशा रासायनिक कीटनाशकों को बनाने और इनका प्रयोग करने वालों के खिलाफ हो या फिर हमारे देश की भुखमरी के खिलाफ हो। हमें सभी समस्याओं के खिलाफ एकजुटता के साथ लडऩे की ज़रूरत है, डर दिखाने वालों से सतर्क रहने की ज़रूरत है और अपनी समझ का इस्तेमाल करने की ज़रूरत है।

पता चला है कि वैश्विक भुखमरी सूचकांक, मतलब ग्लोबल हंगर इंडेक्स में दुनिया के ११७ देशों में से भारत १०२वें स्थान पर है। आयरिश एजेंसी ‘कंसर्न वल्र्डवाइड’ और जर्मन संगठन ‘वेल्थ हंगर हिल्फे’ द्वारा संयुक्त रूप से तैयार इस इंडेक्स में भुखमरी और कुपोषण के मामले में भारत बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान जैसे पड़ौसी देशों से भी पीछे है। २०१८ में भारत ११९ देशों में १०३वें स्थान पर था। यह कैसा ‘विकास’ हुआ भाई और इसे कैसे कह सकते हैं हम ‘सबका साथ-सबका विकास’!

ताज़ा आँकड़े बताते हैं कि अभी तक हुई बारिश से जहाँ १८०० से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, वहीं १४ लाख १४ हज़ार हेक्टेयर रकबे की फसल बर्बाद हो चुकी है। और अभी भी बारिश कहीं न कहीं आफत ला ही रही है। हम सिर्फ और सिर्फ विकास और भौतिक सुख-सुविधाओं पर ही पूरा ध्यान लगाए बैठे हैं, पर्यावरण पर किसी का ध्यान नहीं। पूरी दुनिया के देश पर्यावरण के प्रति सिर्फ कोरी बातें, फर्जी भाषण और दिखावा ही कर रहे हैं। हम सभी पर्यावरणीय नुकसान को बहुत ही हल्के में ले रहे हैं, जबकि यह पूरी दुनिया के लिए आतंकवाद से भी ज़्यादा खतरनाक है। पर्यावरण के प्रति इतनी उदासीनता हम सबके के लिए अच्छी नहीं है ।

भारत में इतनी भुखमरी क्यों है? इतना कुपोषण क्यों है? इसका कारण जानने की कोशिश सरकारें क्यों नहीं करतीं और इनका हल क्यों नहीं निकाला जाता है?

इसका सीधा सा कारण है कि हमने किसानों को नगदी फसलों और ज़्यादा से ज़्यादा उत्पादन के जाल में ऐसा फँसा दिया है कि बेचारे किसान सिर्फ दो या तीन नगदी फसलों के अलावा चौथी फसल अपने खेत में लगाते ही नहीं हैं। आज के समय में गेहूँ, कपास, धान, सोयाबीन तथा मक्का (हाईब्रिड मक्का) की गिनती भी नगद फसलों में होने लगी है और नगदी फसल के रूप में मक्का की खेती तेजी से सोयाबीन की फसल के विकल्प के रूप में किसानों को पसंद आ रही है।

बस इसी में किसानों की समस्याओं का समाधान भी है और देश की भुखमरी की समस्या का समाधान भी। जहाँ एक तरफ किसान ज़्यादा उत्पादन तो कर लेता है परंतु उसे अपनी फसल का सही दाम नहीं मिल पाता है और उसके पास इतनी जगह भी नहीं होती है कि वह अपनी फसल को सालभर संग्रहीत करके थोड़े समय बाद भाव ज़्यादा होने पर दाम ले ले। ज़्यादा उत्पादन होने पर उसे तुरंत ही अपनी फसल को मंडी में या न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचना होता है। इतना उत्पादन करने से किसानों को क्या फायदा जब उन्हें सही दाम मिल ही नहीं पा रहे हैं, उल्टा बेमौसम बारिश से उनकी फसल खराब हो जाती है। इस प्रश्न पर किसानों को बहुत ही ठंडे दिमाग से विचार करना चाहिए और मेरे इस प्रश्न को हर किसान को अपने आप से पूछना चाहिए कि वे अपनी धरती माँ को ज़हर खिलाकर और उसे बैंक में गिरवी रखकर खेती किस के लिए कर रहे हैं? अपने परिवार के लिए? सरकार के लिए? या बड़ी-बड़ी कंपनियों की तिजोरी भरने के लिए?

ऊपर बताई गईं दोनों समस्याओं का हल हमारे देश की विविधता वाली संस्कृति में छुपा है। तीसरी समस्या जो अभी पूरी दुनिया के सामने विकराल रूप लेकर आ रही है, वो है असंतुलित पर्यावरण की समस्या। इन सबका हल प्रकृति के पास है और हमें प्रकृति की व्यवस्था में रहकर प्रकृति के नियम से चलना पड़ेगा और प्रकृति की विविधता की व्यवस्था को समझना पड़ेगा, तभी पूरी दुनिया की आगे की राह आसान होगी, नहीं तो इससे भी भयंकर समय के लिए तैयार रहना होगा।

अब हमें करना क्या चाहिए? तो सबसे पहले हमारा किसान भाइयों से अनुरोध है कि आज हमें ऐसी खेती करने की ज़रूरत है जिससे हमारा उत्पादन घर से ही बिक जाए और फसल आने से पहले ही फसल की एडवांस बुकिंग हो ताकि हम रजिस्ट्रेशन और फसल बेचने की दिक्कतों से बच सकें।

इसका सीधा-सरल उपाय यही है कि हमें अधिक से अधिक किस्म की फसलें लगानी पड़ेंगी और आजकल हम जिन एक-दो नगदी फसलों पर निर्भर हैं उनका रकबा घटाना पड़ेगा। इन एक-दो फसलों का रकबा घटाने से यह होगा कि इनका उत्पादन नियंत्रित हो जाएगा और आपको इनके अच्छे दाम मिलेंगे। इसके अलावा बाकी किस्म की फसलें लगाने से आपको उन फसलों के दाम भी अच्छे मिलेंगे, क्योंकि उनके दाम बाज़ार में पहले से ही बढ़े हुए हैं। यदि आपको वाकई में अपनी उपज का सही दाम लेना है तो एक ही फसल का ज़्यादा से ज़्यादा उत्पादन करने की बजाए ज़्यादा से ज़्यादा किस्म की फसलें लगानी होंगी।

एक बात हमेशा ध्यान रखें, उत्पादन ज़्यादा होगा तो कभी भी आपकी फसल का दाम नहीं मिलेगा और उत्पादन को नियंत्रित करने का सही तरीका यही है कि आप अपने खेत में गिनी-चुनी नकदी फसलों का रकबा कम करते जाएँ और मिश्रित खेती करें जैसी कि हमारे पूर्वज करते थे। वे भले ही साधनों की कमी के कारण ज़्यादा उत्पादन नहीं ले पाते थे परंतु अधिक से अधिक किस्म की फसलें लगाकर कम खर्च में पौष्टिक और शुद्ध भोजन का आनंद लेते थे और अधिक उम्र तक जीया करते थे। उस समय हमारे देश में भुखमरी और कुपोषण से मौतें नहीं हुआ करती थीं और न ही तब कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी थी। ये सब तब से होने लगा है जब से हम अधिकाधिक मात्रा में कीटनाशकों और रासायनिक खादों का प्रयोग करने लगे हैं।

इसको हम एक उदाहरण से समझते हैं। पन्नालाल एक किसान है जो मध्यप्रदेश में २५ एकड़ के रकबे में खेती करता है। अभी वर्तमान में वह रबी सीजन में गेहूँ जबकि खरीफ में धान की फसल ले रहा है। पन्नालाल एक साधन संपन्न किसान है और उसके पास सभी आधुनिक मशीनरी है, साथ में खेती के लिए उसके पास भरपूर पानी है। तभी तो वह दोनों सीज़न में अधिक से अधिक पानी की आवश्यकता वाली फसलें लगा रहा है। इस को उसका अहंकार भी समझ सकते हैं कि वह बड़ी शान से कहता है कि वह धान और गेहूं की अच्छी पैदावार कर लेता है। परंतु जब मैंने उससे प्रश्र किया कि ”भाई पन्नालाल! क्या तुम अपनी फसल के दाम से खुश हो?” तो वह मायूस हो जाता है और कहता है कि ”नहीं भाई!  दाम तो लागत के हिसाब से नहीं मिल पा रहा है।” मैंने तुरंत अगला प्रश्र किया, ”भाई! तुमने कभी इस बात पर विचार किया है कि तुम्हें दाम क्यों नहीं मिल पाता है?” वह बोला, ”नहीं।” मैंने कहा, ”क्योंकि अभी तुम्हारा पूरा ध्यान ज़्यादा से ज़्यादा उत्पादन पर है और इस बात पर तुम कोई समझौता भी नहीं करना चाहते क्योंकि तुम्हें पसंद ही नहीं है कि तुम्हारा उत्पादन कम हो। तुम्हारी यह ज़्यादा से ज़्यादा उत्पादन की सोच ही फसल के सही दाम मिलने में रुकावट है, बस इसे थोड़ा ठीक करना होगा। इसकी जगह तुम्हें ज़्यादा से ज़्यादा फसलों की खेती करने वाली सोच को अपनाना होगा। आओ, तुम्हें समझाता हूँ :

रबी सीज़न में गेहूँ का हिसाब –
रकबा उत्पादन प्रति एकड़ कुल उत्पादन लगभग
२५ एकड़ २० क्विंटल ५०० क्विंटल
खरीफ सीज़न में धान का हिसाब –
रकबा उत्पादन प्रति एकड़ कुल उत्पादन लगभग
२५ एकड़ १५ क्विंटल ३७५ क्विंटल

यहाँ हमने तुम्हारा उत्पादन अधिक ही लिया है। अब तुम बताओ कि इतना गेहूँ और धान तुम स्टोर कैसे करोगे? और यदि स्टोर नहीं कर पाओगे तो तुम्हारे पास एक ही चारा बचेगा कि जितनी जल्दी हो इसे बेचा जाए और नगद पैसे मिलें, ताकि जिसका देना हो उसका दो और बाकी के पैसे से अपना खर्च चलाओ, फिर चाहे बाज़ार में जो भी भाव चल रहा हो। यह तुम्हारी मजबूरी है क्योंकि तुम्हारे पास न तो स्टोर करने की जगह है और न ही इतना पैसा है कि तुम किराए के वेयर हाउस में रख सको, उल्टा फसल की लागत जो लगाई है उसको भी तो चुकाना है, सो तुम्हें फसल आनन-फानन में बेचनी ही पड़ेगी। इसके सिवाए और कोई दूसरा रास्ता नहीं तुम्हारे पास। बस इसी का फायदा उठाती हैं हमारी सरकारें और बड़ी-बड़ी कंपनियाँ। हमारे देश के राजनेताओं की १ रुपये किलो गेहूँ और १ रुपये किलो चावल बाँटने की हिम्मत इसलिए हो पाती है क्योंकि तुम जैसे करोड़ों किसान उनके लिए मुफ्त में इतना उत्पादन कर रहे हो। इस बात को समझो और समझ से खेती करो।

अब मैं तुम्हें एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात बताने जा रहा हँू, गौर से सुनना और उस पर अमल करना, इसी में सब किसानों की, पर्यावरण की और भुखमरी की समस्या का निराकरण है। मेरे हिसाब से तुम्हें अपने २५ एकड़ के रकबे में विविधता लानी होगी और ज़्यादा से ज़्यादा तरह की फसलें लगानी होंगी, जैसे –

रबी सीज़न में २५ एकड़ के रकबे में फसल –
फसल रकबा उत्पादन प्रति एकड़ कुल उत्पादन लगभग
गेहूँ ४ एकड़ २० क्विंटल ८० क्विंटल
चना ४ एकड़ १२ क्विंटल ४८ क्विंटल
अलसी ४ एकड़ ६ क्विंटल २४ क्विंटल
धनिया ४ एकड़ १० क्विंटल ४० क्विंटल
मसूर ४ एकड़ १० क्विंटल ४० क्विंटल
मटर ३ एकड़ ५० क्विंटल (फली) १५० क्विंटल (फली)

 

२ एकड़ रकबा तुम सीज़नेबल सब्जि़यों के लिए आरक्षित रख सकते हो और इसी में फलदार पौधे लगाकर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हो। इसी दो एकड़ से तुम्हारे साल भर के खर्चे निकल जाएँगे।

अब यहाँ गौर करो कि तुम्हारा उत्पादन नियंत्रित हो गया है और तुम्हारे पास फसल अब थोड़ी-थोड़ी करके आएगी और थोड़ी-थोड़ी करके ही जाएगी जिससे तुम्हें मुनाफा भी होगा और तुम अपने खेत की फसल को अपने उपयोग में भी ले सकोगे जबकि अभी तुम सभी कुछ बाज़ार से ले रहे हो। अब तुम्हारा उत्पादन इतना ही है कि तुम अपनी फसल को अपने गाँव के पास स्थित किसी भी कस्बे में मार्केटिंग करके १५-२० लोगों को बेच सकते हो। मार्केटिंग में सिर्फ एक बार मेहनत लगेगी, फिर अगले साल से तो तुम्हारी फसल घर से बिक जाएगी क्योंकि तुम्हारे ग्राहक बन जाएँगे। अब तुम्हें फसल बेचने की जल्दी करने की भी ज़रूरत नहीं होगी क्योंकि अभी मटर से तुम्हारी कमाई शुरू हो जाएगी, फिर धनिया आएगा, फिर मसूर आएगी, फिर चना आएगा और फिर आखिर में गेहूँ आएगा। इस प्रकार तुम सारे समय खेत में व्यस्त भी रहोगे और एक करोबारी की तरह कमाई भी करोगे। कहना का मतलब है कि व्यस्त रहो, मस्त रहो।

जब तुम को यह ख्याल अच्छा लगने लगे और इससे तुम संतुष्ट हो जाओ तो तुम और फसलें भी लगा सकते हो। ज़्यादा से ज़्यादा फसलें लगाने से तुम्हारे खेत में रोग भी कम आएँगे। इसके लिए तुम मिश्रित खेती के बारे में जानकारी का ज्ञान ले लेना। वास्तव में हमने यहाँ तुम्हारा उत्पादन घटाया नहीं है बल्कि उसे नियंत्रित किया है ताकि तुम्हें फसल का सही दाम मिले और नुकसान न उठाना पड़े। एक ही तरह की फसल के ज़्यादा उत्पादन से कभी फायदा नहीं होता यह तुम देख ही रहे हो। उल्टा इसके लिए तुम्हें ज़मीन में रासायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग करना पड़ रहा है और तुम ढेर सारी बीमारियों को आमंत्रित कर रहे हो। इस तरह दिन-ब-दिन तुम्हारी फसल की लागत तो बढ़ रही है परंतु उस अनुपात में आमदनी नहीं बढ़ पा रही है। हाँ, तुम्हारी फसल का उपयोग करके बड़ी-बड़ी कंपनियाँ ज़रूर खूब मुनाफा कमा रही हैं। इसी प्रकार –

खरीफ सीज़न में २५ एकड़ के रकबे में फसल –
फसल रकबा उत्पादन प्रति एकड़ कुल उत्पादन लगभग
धान ६ एकड़ १५ क्विंटल ९० क्विंटल
सोयाबीन ४ एकड़ ८ क्विंटल ३२ क्विंटल
मक्का ४ एकड़ २५ क्विंटल १०० क्विंटल
मूंगफली ४ एकड़ ८ क्विंटल ३२ क्विंटल
मूंग ३ एकड़ ५ क्विंटल १५ क्विंटल
तुअर २ एकड़ ७ क्विंटल १४ क्विंटल

२ एकड़ रकबा तो सीज़नेबल सब्जि़यों के लिए आरक्षित है ही।

इस प्रकार तुम खरीफ सीज़न में भी उत्पादन नियंत्रित करके अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हो और सुखी जीवन व्यतीत कर सकते हो। तुम्हें दोनों सीज़न में जैविक या प्राकृतिक तरीके से खेती करनी है और रासायनिक खेती को छोडऩा है। इस तरह की खेती वर्तमान में बहुत सारे किसान कर रहे हैं। उन्हीं किसानों में से खरगोन जिले के पथोरा गांव के एक किसान है सुधीर पटेल जो इस प्रकार की खेती करके मुनाफा भी कमा रहे हैं और उन्हें इस बात की आत्मसंतुष्टि है कि जहरमुक्त अनाज अपने खेत में उगा रहे और पर्यावरण को भी कोई क्षति नहीं पहुंचा रहे है। किसान सुधीर पटेल से संपर्क कर सकते है:-944794 84800, 6264802028

आज भारत में अधिकतर गेहूँ, चावल या फास्ट फूड ही खाया जा रहा है, मोटा अनाज खाने की आदत अब लोगों में नहीं है। इसीलिए बीमारी और कुपोषण और भुखमरी से इतनी मौतें हो रही हैं। इस प्रकार तुम प्रकृति का साथ देकर देश की जनता को पौष्टिक आहार प्रदान करने में सहायक बनकर एक सच्चे किसान का फजऱ् अदा कर सकते हो। साथ में पर्यावरण सुरक्षा का अपना दायित्व भी निभा सकते हो और सभी की भूख मिटाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हो। ”तभी सही मायने में किसान कहलाओगे।”

पवन नागर, संपादक

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