
ऋषभ यादव
भारत की कृषि नीति में हरित क्रांति के बाद रासायनिक खेती को जिस तरह प्रोत्साहित किया गया, उसने एक ओर उत्पादन बढ़ाया, लेकिन दूसरी ओर मिट्टी, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर गंभीर संकट भी खड़ा कर दिया। आज जब हम कई गांव में पड़ी बंजर जमीन, जहरीला पानी, और गंभीर बीमारियों से जूझते किसान देखते हैं, तब सवाल उठता है क्या यह विकास है या विनाश का रास्ता?क्या यह लाभ की फसल है या हानि की?
रासायनिक खादों और कीटनाशकों के सहारे खेती करना शुरुआत में लाभदायक लगता है। फसल जल्दी तैयार होती है, उत्पादन बढ़ता है और किसान को कुछ समय के लिए राहत मिलती है। लेकिन यह राहत अस्थायी है। यह खेती मिट्टी की जैविक उर्वरता को चुपचाप खत्म कर रही है। हर बार ज़मीन को अधिक रसायन चाहिए, लेकिन फसल की गुणवत्ता और स्वाद दोनों गिरते जाते हैं।
रासायनिक खेती के कारण प्राकृतिक कीट नियंत्रण की प्रणाली टूट चुकी है।खेतों में पक्षी नहीं रहे, केंचुए और जैविक सूक्ष्मजीव मर चुके हैं। नदियों और नलकूपों में रसायन घुल रहे हैं, जिससे पीने का पानी भी विषैला हो रहा है। ऐसे में सवाल उठता है क्या हम केवल पेट भरने के लिए ज़हर उगा रहे हैं?
कई रिपोर्टों में स्वास्थ्य विशेषज्ञ चेतावनी दे चुके हैं कि रासायनिक अवशेषों से कैंसर, हृदय रोग, बांझपन और मानसिक बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। किसानों की हालत और भी दयनीय है उन्हें दवाएं महंगी मिलती हैं, फ़सल की लागत बढ़ती है और लाभ घटता जाता है। कई जगह किसान खुद कह रहे हैं जमीन अब उतना नहीं देती जितना पहले देती थी।
यह स्थिति केवल कृषि संकट नहीं, बल्कि आगामी पीढ़ियों के अस्तित्व का संकट है। ज़रूरत है कि हम समय रहते चेतें और इस रासायनिक चक्रव्यूह से बाहर निकलें। हमें खेती को फिर से प्रकृति के अनुकूल बनाना होगा जैविक खाद, परंपरागत बीज, मिश्रित फसलें और स्थानीय ज्ञान के सहारे व कैमिकल फ्री खेती की दिशा में धीमे धीमे कदम बढ़ाना होगा जिससे हमारी आगामी पीढ़ी स्वस्थ रहे,उनके भविष्य की हमें चिंता करनी होगी।
रासायनिक खेती सिर्फ खेत में ज़हर नहीं घोलती, यह जीवन की जड़ों को भी खोखला करती है। अब सवाल यह नहीं कि हमें क्या बोना है, सवाल यह है हम कैसी ज़मीन आने वाली पीढ़ी को सौंपना चाहते हैं?
रासायनिक खेती के लाभ
उत्पादन में वृद्धि यूरिया, डीएपी, पोटाश जैसे रासायनिक उर्वरकों से फसलों की वृद्धि तेजी से होती है, जिससे प्रति एकड़ उत्पादन बढ़ता है।
• जल्दी फसल तैयार
• रासायनिक दवाओं से फसल तेजी से पकती है, जिससे किसान को कम समय में उपज मिलती है।
• कीट नियंत्रण
• कीटनाशकों और फफूंदनाशकों से फसलें रोगों से बची रहती हैं।
व्यावसायिक लाभ
तेजी से उत्पादन होने के कारण किसान को बाजार में शीघ्रता से फसल बेचने का अवसर मिलता है।
रासायनिक खेती के नुकसान
• मिट्टी की उर्वरता में गिरावट
• लगातार रासायनिक खादों के उपयोग से मिट्टी में मौजूद जैविक तत्व और सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं, • जिससे मिट्टी मृत होने लगती है।
• प्राकृतिक संतुलन में बाधा
• कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से लाभकारी कीड़े, पक्षी और परागण करने वाले जीव भी समाप्त हो जाते हैं।
जल प्रदूषण
खेतों से बहकर रसायन जलस्रोतों में मिलते हैं, जिससे भूजल और नदियां जहरीली हो जाती हैं।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
इन रसायनों के अवशेष खाद्यान्न में मिलकर मनुष्य के शरीर में पहुँचते हैं, जिससे कैंसर, हार्मोन गड़बड़ी, त्वचा रोग और अन्य बीमारियाँ हो सकती हैं।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
रासायनिक खाद व दवाएं महंगी होती हैं और हर साल इनकी मात्रा बढ़ती जाती है, जिससे खेती घाटे का सौदा बनती जा रही है।
विकल्प और समाधान
कैमिकल फ्री ,जैविक खेती – गोबर खाद, हरी खाद, वर्मी कम्पोस्ट, नीम-घोल जैसे प्राकृतिक विकल्प अपनाकर मिट्टी को स्वस्थ बनाए रखा जा सकता है।
मिश्रित व सघन खेती – फसल चक्र और मिश्रित फसलों से मिट्टी की संरचना और पोषक तत्व संतुलन बना रहता है।
कृषक प्रशिक्षण व जागरूकता – किसानों को प्राकृतिक और टिकाऊ खेती के लिए नियमित मार्गदर्शन और सरकारी सहायता आवश्यक है।
मृदा स्वास्थ्य – किसानों को उनकी मिट्टी की जांच कर उचित पोषक तत्वों की जानकारी दी जानी चाहिए।
मौजूदा तरीके और किसानों की स्थिति को देखते हुए हमें किसानों को हमें धीमे धीमे इस चक्र से बाहर लाना होता है यह हम सभी के सामूहिक प्रयास से ही संभव है।बढ़ती आबादी को ध्यान में रखते हुए भी हमें प्रयास करने होंगे जिससे खाद्यान्न की उपलब्धता बनी रहे।रासायनिक खेती ने भारत की खाद्यान्न ज़रूरतें पूरी करने में योगदान दिया है, लेकिन अब समय आ गया है कि हम इसके दुष्परिणामों को स्वीकारें और टिकाऊ, प्रकृति-मैत्रीपूर्ण कृषि की ओर बढ़ें। मिट्टी का संरक्षण केवल खेती नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा का सवाल है। खेती का भविष्य तभी सुरक्षित है जब वह प्रकृति के अनुकूल हो।यह लेख कुछ वर्षों के अनुभव के आधार पर है।
ऋषभ यादव