संपादकीय

क्यों करनी चाहिए ज़हरमुक्त खेती?

पवन नागर

वर्तमान में हाल यह है कि आए दिन अचानक किसी न किसी के मरने की सूचनाओं में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है और इन मरने वालों में बच्चों व युवाओं की संख्या अधिक होना काफी चिंताजनक है। खासकर हार्टअटैक और कैंसर से मौतों में अधिक बढ़ोतरी हुई है। एक अध्ययन के अनुसार देशभर में समग्र स्वास्थ्य में गिरावट की बहुत ही चिंताजनक तस्वीर सामने आई है, जो देश में कैंसर और अन्य गैर संचारी रोगों के बढ़ते मामलों की ओर इशारा करती है।

अध्ययन में बताया गया है कि वर्तमान में हर तीन में से एक भारतीय प्री-डायबिटिक है, हर तीन में से दो प्री-हापरटेंसिव हैं, और हर दस में से एक अवसाद से लड़ रहा है। इस अध्ययन में यह भी बताया गया है कि कैंसर, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, ह़दय रोग, एवं मानसिक स्वास्थ्य विकार जैसी विकट बीमारियाँ अब इतनी प्रचलित हैं कि वे ‘गंभीर स्तर’ तक पहुँच गई हैं। अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि कैंसर के वार्षिक मामलों की संख्या 2025 तक 1.57 मिलियन हो जाएगी। जून माह में दैनिक भास्कर में छपी रिपोर्ट के अनुसार 3 साल में नर्मदापुरम में कैंसर के मरीज 700% तक बढ़ गए हैं।

कुल मिलाकर कहा जाए तो आए दिन हर व्यक्ति किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त हो रहा है और अब विभिन्न प्रकार की बीमारियों के साथ जीना उसकी मजबूरी हो गई है। और इस मजबूरी का सबसे बड़ा कारण है समय का अभाव। लोगों के पास पैसा और भौतिक संसाधन तो बहुत हैं, परंतु समय का अभाव भी बहुत है। सुनने में अक्सर आता है कि ‘हमारे पास समय नहीं है’। भला ऐसा कैसे हो सकता है कि हम अपने स्वास्थ्य के लिए ही समय न निकाल पाएँ! तो फिर इतना पैसा और संसाधन किस काम के लिए एकत्रित किए जा रहे हैं? आए दिन हमारी आँखों के सामने हमसे कम उम्र के युवा व बच्चे किसी न किसी बीमारी से असमय मृत्यु के शिकंजे में जकड़े जा रहे हैं, पर हम लोग चंद दिनों में उसे भुलाकर फिर उसी पैसों की भागमभाग में लग जाते हैं।

6 माह पूर्व एक 40 एकड़ के किसान की माता जी की, जो कि बिल्कुल स्वस्थ थीं, अचानक हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई। यह किसान साल में तीन फसल लेते हैं – गेंहूँ, धान और मूँग। फसलों के अधिकाधिक उत्पादन के लिए अधिकाधिक रासायनिक खादों और कीटनाशकों के प्रयोग से वह बिल्कुल नहीं हिचकते हैं।

इसी तरह एक 10 एकड़ के किसान के युवा बेटे की, जिसकी इसी साल शादी होना थी, मृत्यु भी अचानक हृदयाघात (हार्ट अटैक) से हो गई। ध्यान देने वाली बात यह है कि इनके पिताजी सरकारी नौकरी में हैं। यह किसान साल में दो फसलें लेता है – गेंहूँ और धान।

हमने यहाँ सिर्फ दो घटनाओं का ज़िक्र किया है, जबकि हमारे पास ऐसी घटनाओं के कई और उदाहरण उपलब्ध हैं। सिर्फ हमारे पास ही नहीं, आमजनों को भी आए दिन ऐसे उदाहरण देखने को मिल रहे हैं। क्या गाँव, क्या शहर, वर्तमान में हर जगह यही स्थिति है, अचानक मृत्यु की खबरें हर ओर से आ रही हैं।

यह सिर्फ दो किसानों की बात नहीं है, ऐसे कई किसान हैं जिनके घर असमय मृत्यु दरवाज़ा खटखटा रही है। अब हम आगे इन्हीं दो उदाहरणों के हवाले से आगे बढ़ेंगे और आप को बताएँगे कि किसानों को क्यों करनी चाहिए ज़हरमुक्त खेती।

पहले किसान से, जिनके पास 40 एकड़ ज़मीन है, जब हमने पूछा कि आप अपने परिवार के लिए अनाज, दाल, चावल, सब्जी इत्यादि भोजन की व्यवस्था कैसे करते हैं, तो उनका जवाब था कि हम तो सब बाज़ार से लाते हैं। तो फिर हमारा दूसरा प्रश्न था कि आप जो तीन फसलें लेते हैं -गेंहूँ, धान, और मूँग- इनमें से कौन-कौन सी फसलें अपने खाने के लिए उपयोग करते हैं? इनका जवाब सुनकर कोई भी आश्चर्यचकित हो जाए। जवाब था कि हम गेंहूँ, चावल, और मूँग हमारे खेत के खाते ही नहीं हैं।

अब आप सोचिए कि एक 40 एकड़ का सम्पन्न किसान अपने खेत की फसल का उपयोग अपने परिवार के लिए करता ही नहीं, तो आप इस खेती को क्या नाम देंगे? आज किसान के पास सभी आधुनिक साधन उपलब्ध हैं, यदि कुछ नहीं है तो वह है शुद्ध और केमीकल फ्री सब्जियाँ, गेंहूँ, दाल, फल इत्यादि, जो उसके ही खेत में उत्पादित हो सकती हैं। जब किसान खुद अपने खेत में उत्पादित हो सकने वालीं केमीकल फ्री चीज़ों का सेवन नहीं कर पा रहा है तो फिर आम नागरिक, जिनके पास खुद की ज़मीन नहीं है, उनको क्या उपलब्ध हो रहा होगा इसकी कल्पना करना कोई कठिन कार्य नहीं है।

वहीं दूसरे किसान, जिनके पास 10 एकड़ ज़मीन के साथ-साथ सरकारी नौकरी भी है और जो सालभर में दो फसलें लेते हैं, उनका भी हाल यही है कि उनके पास भी अपने परिवार के लिए अपने खेत का उत्पादित भोजन नहीं है और ये भी पूरी तरह से बाज़ार पर आश्रित हैं।

यह सिर्फ दो किसानों की बात नहीं है, देशभर में रासायनिक खेती करने वालों की लगभग यही स्थिति है। कहने को तो हर साल उत्पादन के रिकॉर्ड बन रहे हैं, परंतु हमारे देश के किसानों के पास ही पौष्टिक और शुद्ध भोजन का टोटा पड़ा हुआ है, जिसके कारण अब स्थिति यह है कि लगभग हर किसान के घर पर बीमारी पहुँच चुकी है और इन बीमारियों पर जो खर्च हो रहा है वह इन रासायनिक खेती करने वाले किसानों पर उत्पादन से ज़्यादा भारी पड़ने लगा है।

यह तो सिर्फ किसान परिवारों की व्यथा है, अब आप सोचिए उन नागरिकों का क्या हाल होगा जिनके पास तो ज़मीन भी नहीं है और जो पहले से ही बाज़ार के हवाले हैं।

जिस देश का किसान ही खुद अपने लिए शुद्ध और पौष्टिक भोजन की व्यवस्था करने में असमर्थ हो, उस देश के नागरिकों को कैसे शुद्ध और पौष्टिक भोजन नसीब होगा? इसी प्रश्र के उत्तर में किसानों को अपने खेत में न सिर्फ अपने लिए बल्कि देश के नागरिकों के लिए भी ज़हरमुक्त खेती की ओर कदम बढ़ाना होगा।

बढ़ते जलवायु परिवर्तन संकट के समाधान के तौर पर भी ज़हरमुक्त खेती उपयुक्त है। यदि किसान ज़हरमुक्त खेती करेंगे तो न सिर्फ वे अपने लिए शुद्ध भोजन की व्यवस्था करेंगे बल्कि अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, और देश के नागरिकों के लिए भी शुद्ध और पौष्टिक भोजन की व्यवस्था करने में सहभागी बनेंगे।

वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम का सटीक अनुमान लगाना अब मौसम विशेषज्ञों के लिए कठिन हो गया है। मौसम के इस परिवर्तन के कारण एकल फसल करने में सबसे बड़ी कठिनाई यही है कि यदि बेमौसम बारिश, कम वर्षा, या आवश्यकता से अधिक वर्षा की वजह से हमारी एकल फसल प्रभावित होगी तो हमारे भोजन की व्यवस्था कौन करेगा। और हम सालभर सिर्फ एक ही फसल का उपयोग तो करेंगे नहीं, हमको तो थाली में नाना-नाना प्रकार के व्यंजन ही चाहिए।

फिर हमारे देश के किसानों को उनके खेत में नाना-नाना प्रकार की फसलें लगाने में क्या दिक्कत आ रही है? क्यों ये किसान अपने खुद के लिए नाना-नाना प्रकार की फसलें अपने खेत में लगाने से कतरा रहे हैं? यदि वाकई में हम सब को बीमारियों, जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण, जल संकट, सूखा, और अकाल जैसी विकट समस्याओं से बचना है या इनका डटकर सामना करना है तो हमारे पास अब एक ही विकल्प है कि हम प्रकृति के अनुकूल जीवनशैली अपनाएँ और ऐसा कोई कार्य न करें जिससे प्रकृति को इस सृष्टि का संतुलन बनाने के लिए कठोर कदम उठाना पड़े।

यदि प्रकृति के प्रकोप से बचना है तो किसानों को ज़हरमुक्त खेती करना चाहिए, जिससे न केवल उनको शुद्ध भोजन मिलेगा बल्कि वे जल एवं वायु प्रदूषण को रोकने में भी अपना योगदान देंगे। काम कोई ज़्यादा कठिन नहीं है, बस हर किसान और हर व्यक्ति को अपनी व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी के तौर पर यह निश्चय करना है कि हमें तो पहले अपने परिवार के लिए शुद्ध व पौष्टिक थाली की व्यवस्था करना है, चाहे हमको सुविधा थोड़ी कम मिले। यदि आप चाहते हैं कि पहला सुख निरोगी काया आपको मिले तो आपको ज़हरमुक्त खेती करना ही पड़ेगी। यही समाधान है मानव जाति के लिए प्रकृति के प्रकोप से बचने का।

पवन नागर
www.krishiparivartan.com

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